Thursday, 03 July 2025

 
 पब्लिकयूवाच - कोरोना वायरस का डर इतना ज्यादा मन के अंदर भरा हुआ है कि सोते जागते केवल कोरोना ही दिखाई दे रहा है। ऐसे कोरोनामय जिंदगी जीते जीते कल रात मुझे बहुत सारे लोगों के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी ।मैं सोच में पड़ गया कि इतनी रात को कौन “सोशल डिस्टेस्सिंग” को तोड़कर हंसी खिलवाड़ में जूटा है।
बिस्तर छोड़ कर मैं उस मैदान की ओर गया जहां से खिलखिलाहट की आवाज आ रही थी ।मैंने देखा वहां पर बहुत सारे कोरोना वायरस एकत्रित हुए थे । मैं उनकी बातें सुनने के लिए डरते डरते उनके करीब में पहूंचा और एक बरगद के पेड़ के पीछे छुप गया।उनमें से एक वायरस कह रहा था हमने अपने वायरस खानदान की दबंगता दिखा दी ।आज पूरी दुनियां में हमारे कारण त्राहि-त्राहि मचा हुआ है ।रात दिन भागने वाला इंसान अपने घरों में उल्लू की भांति घुसा बैठा है ।वह हमें कोसने मैं कोई कमी नहीं कर रहा है। सभी एक ही सुर अलाप रहे हैं कि ना जाने कब मरेगा यह कुकर्मी।
इस वायरस की बातपर ठहाका लगाते हुए एक अन्य वायरस ने कहा हमें कुकर्मी कहने वाला मानव ही सही अर्थों में आज कुकर्मी बन बैठा है। वह इस बात को भूल बैठा है कि ,उसके ही कुकर्मों से हम जैसे वायरसों और विविध विकारों का जन्म दूनियां में हो रहा है। धरती माता ने मानव समुदाय को विविध प्रकार की सुख सुविधाएं दी हैं। खाने पीने के लिए एक से बढ़कर एक चीजें भी दी है। इंसान एक बीज धरती पर डालता है तो बदले में उसे धरती माता कई गुना ज्यादा अनाज के दाने लौटा देती है। इसके बावजूद राक्षसनी सुरसा के मुंह की तरह मानव समुदाय के मन में लोभ- लालच बढ़ता ही जा रहा है। घने जंगल में फैलते दावानल की तरह इंसानों के भीतर लालच की आग हर पल धधक रही है। लालच की चासनी में डूबा इंसान अपनी बुद्धि विवेक सब कुछ खो बैठा है। विकटस्थिति तो यहां तक बन गई है कि इंसान धन के पीछे तब तक भाग रहा है जब तक उसका निधन नहीं हो जा रहा है।
इस कोरोना वायरस की बात को आगे बढ़ाते हुए एक अन्य वायरस ने कहा अपनी सुख-सुविधा बढ़ाने के लिए मानव समुदाय ने तरह तरह के कुकर्म किए हैं।जिसके दुष्परिणाम स्वरुप दुनिया में विविध लाईलाज बीमारियों नेआज घर कर लिया है।साथ ही कोरोनावंश में आये नई पीढ़ी के वायरस यानि कि हम कोविड19 भी मनुष्यों के दुष्कर्म से उपजे है। चांद तारों पर पहुंचने का घमंड दिखाने वाले उन्नत देस के लोग हमारे प्रकोप से भयभीत हैं।हमारे आगे नतमस्तक हो गए हैं।चारों खाने चित होकर धूल चाटते नजर आ रहे हैं। दूनियां के कई देशों मेंकोहराम मचाते अब हमने भारत के भीतर प्रवेश कर लिया है। यहां के विभिन्न प्रदेशों के साथ छत्तीसगढ़ में भी अब कोरोना का काला जादू चल पड़ा है।
इतना सूनते ही वहां बैठा एक अन्य कोविड किसी भड़कीले सांड की तरह भड़कता उठ खड़ा हुआ। वह हुंकार भरते हुए बोला क्या खाक जादू चल पड़ा है। अरे यहां पर तो अभी हमें बहुत ज्यादा पांव पसारने का मौका ही नहीं मिला है। हम यहां पागल कुत्ते की भांति गांव शहर की गलियों में शिकार की तलाश में लगे हुए हैं। मुझे तो लगता है शायद यहां के लोग जान गए हैं कि अपने अपने घरों में घुसे रहना कोरोना वायरस से बचने का एकमात्र उपाय है। हम तो मौके की ताक में बैठे हैं कि दिल्ली मुंबई जैसे यहां के लोग भी गाय बैल भैंस भेड़ बकरियों की तरह झून्ड के झून्ड बाहर निकले और हम इन्हें लपक के दबोच लें। इन्होंने बाहर निकलने और सोशल डिस्पेंसिंग को तोड़ने कीजरा भी गलती की तो हम इन्हें ऐसे दबोच लेंगे जैसे कि एक मकड़ी अपने जाल में फंसे कीड़े को दबोच कर चूस डालती है।
तभी वहां बैठा एक बूढ़ा सा कोरोना वायरस बोल पड़ा इसे जानते देखते हुए भी बहुत से लोग घर के बाहर निकलने की फिराक में रहते हैं। कई अक्ल के दुश्मन ऐसे भी हैं, जो चावल- दाल साग- सब्जी और खाने -पीने की चीजों को ठूंस ठूंस कर घर भरने में लगे हैं ।
गरीबों और जरूरतमंदों की पीड़ा को अनदेखी करने वाले  ऐसे लोभी लालची इंसानों की सच्चाई को उजागर करते हुए एक छोटी सी कथा की याद आ रही है। गांव का एक किसान बैलगाड़ी में चावल से भरी हुई बोरियां लेकर जा रहा था। तभी पीछे से एक चावल की बोरी गाड़ी से गिर गई ।इससे अनभिज्ञ किसान आगे चला गया ।गाड़ी से गिरी हुई बोरी एक कोने से फट गई थी ।जहां से चावल बिखर गए थे। उसी समय वहां से एक चिड़िया, गिलहरी और गाय गुजरी। इन तीनों ने अपने अपने पेट भर चावल ही खाए और संतुष्ट होकर वहां से चले चले गए। इनके बाद उस रास्ते से एक इंसान गुजरा । चांवल के बोरे को देखते ही  उसकी आंखों में धूर्तता और जीभ में लालच ने रंग दिखाना आरंभ कर दिया।वह बिना देर किए पूरे बोरे को उठाया और तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ा। 
        बूढ़े वायरस की बात सब वायरस ध्यान से सून रहे थे। वह एक लम्बी सांस छोड़ते हूए आगे बोला यह कथा इस बात को स्पष्ट बता रही  है कि छोटे-छोटे जीव जंतु अपने साथ दूसरों के पेट का भी ध्यान रखते हैं, किंतु केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है जो अपना पेट ,अपना घर भरने में जिंदगी भर लगा रहता है। दूसरों का हक मारने में भी वह चूकता नहीं है ।ऐसे ही लोभी लालची मतिभ्रष्ट मानवों का विनाश करने प्रकृति हमें हथियार बनाती है।वैश्विक महामारी जैसी आपदाओं को इंसान के द्वार ले आती है।  समय रहते अगर इंसान नहीं समझा तो हमसे भी बड़े-बड़े वायरस गिद्ध की भांति इंसानों को नोचने नज़रें गड़ाए बैठे हैं। ।
     हां भाई ठीक कह रहे हो कहते हूए वहां बैठा एक और बूढ़ा सा वायरस बोल पड़ा हमारी खौफ की वजह से अभी इंसानों को अपने अपने घरों में पूरे समय रहने का मौका मिला है। ऐसे समय में घर के भीतर रहते हुए बुजुर्गों की सेवा करते , आपसी रिश्तो में आय कड़वाहट को मिटाकर मिठास लाने का सुनहरा अवसर इंसानों को मिला है।
      हां ताऊ आपकी बात सही है पर लोग तो घर के बाहर निकल कर काल के गाल में समाने और अपने साथ-साथ अपने सगे संबंधियों की जान के दुश्मन बनने पर तुले हुए हैं। झूठी शान शौकत के दिखावा में डूबे अनेक लोग लॉक डाउन की स्थिति में भी फर फर मोटर गाड़ी मैं धूल उड़ाते उड़ाते घूम रहे हैं। ऐसे अज्ञानियों को संदेश देना होगा कि "क्यों  इतराते हो अपने ठाठ बाट पर ,खाली रहेगा हाथ जब जाओगे घाट पर।"
               इन पंक्तियों पर वाह भाई वाह, कहते हूए एक अन्य वायरस ने कहा -हमने सुना है कि छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । तीन मई तक वे अगर  लॉक डाउन के दौरान ज्यादा तीन पांच ना करें तो हम कोरोना वायरसों को खुद ही यहां से नौ दो ग्यारह होना ही पड़ेगा। इतना कहते हुए वह वायरस अचानक पीछे की ओर पलटा तो उसकी नजर मुझ पर पड़ गई । मुझे देखते ही वह   झपटने के लिए  दौड़ पड़ा। मैं उसे अपनी ओर आते देख कर बदहवास भागने लगा।        
    भागते भागते एक बड़े से गड्ढे में धड़ाम से जा गिरा। मैं जोर जोर  से चिल्लाया बचाओ बचाओ 

 
पब्लिकयूवाच - संपादकीय - साथियों आपको यह तो अवगत होगा ही कि आज न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया मे कोविड19 जैसी महामारी ने अपने पांव पसार कर एक बार फिर से इंसान को चुनौती दी है। इस महामारी से कई लाखों लोग संक्रमित हुए है तथा एक लाख से भी ज्यादा लोग इसकी चपेट मे आ गए हैं।
इस महामारी से बचाने के लिए दुनिया के देशों के साथ हमारे यहां भी लाकडाउन चल रहा है। जिसमें न केवल हवाई जहाज बल्कि ट्रेन, बस टैक्सी आटो, रिक्शा सब कुछ थम गए है. लेकिन समाज का एक वर्ग हैं जो स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मी और प्रशासनिक कर्मियों के अतिरिक्त भी है, जो उतनी ही सक्रियता से बिना थके अपना फर्ज निभा रहा है और वो है मीडिया कर्मी (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, वेब पोर्टल)।
मीडिया के साथी भी कोरोना योद्धाओं की तरह मैदान में डटे हुए हैं। लोगों को अपनी कलम और आवाज के माध्यम से न केवल जागरूक कर रहे हैं, बल्कि उनकी समस्याओं को शासन- प्रशासन तक भी पहुंचा रहे है. समाजसेवी लोग जो पीड़ित लोगों की मदद कर रहे है प्रशासन के लोग जो दिन रात जुटे हुए है उनके अच्छे कार्यों को समाज में दिखाकर उनका भी हौसला बढ़ा रहे हैं।
इसके लिए ये साथी सैकड़ों किमी यात्राएं गांवों, बीहडों में करके तथ्यात्मक जानकारी निकाल कर पुलिस प्रशासन को उपलब्ध कराने में लगे हैं। जिससे प्रशासन को और बेहतरी से काम करने मे मदद मिल रही हैं। आम लोगों को इसका फायदा मिल रहा है। यह सब करते हुए हमेशा उन पर भी कोविड से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है, लेकिन यह अपने फर्ज को तरजीह देकर अपना चौथे स्तंभ का दायित्व निभा रहे हैं।
देश दुनिया में कई मीडिया कर्मियों के संक्रमित होने की खबरें आती रहती हैं फिर भी इनके हौसले में कोई कमी नहीं दिखाई देती हैं।
ये सब कोरोना योद्धा की तरह डटे हुए हैं। मैं पुलिस विभाग और देशवासियों की तरफ से आपका अभिन्दन करता हूँ, सलाम करता हूँ।
लेखक- रतन लाल डांगी, पुलिस महानिरीक्षक, सरगुजा रेंज, छत्तीसगढ़.

 
पब्लिकयूवाच - सम्पादकीय - यह गंभीर चिंता की बात है कि कोरोना के खिलाफ जंग के मैदान में उतरे हमारे पुलिस कर्मी भी इस संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। रविवार तड़के मध्य प्रदेश में इंदौर के एक पुलिस निरीक्षक ने कोरोना संक्रमण से दम तोड़ दिया। इससे पहले शनिवार को पंजाब में लुधियाना के सहायक पुलिस आयुक्त की जान भी कोरोना संक्रमण से चली गई। देश में कोरोना न फैल पाए, इसके लिए पूर्णबंदी को सख्ती से लागू कराने के लिए सबसे ज्यादा अगर कोई जान जोखिम में डाल कर अपनी सेवाएं दे रहा है, तो वह इस देश की पुलिस है।
पुलिस का काम और जिम्मेदारियां इस वक्त सबसे ज्यादा जोखिम और चुनौती भरी है। पूर्णबंदी में सरकार के दिशानिर्देशों के पालन से लेकर जिला प्रशासन के सारे काम पुलिस की मदद से ही चल रहे हैं। चाहे कोरोना संदिग्धों का पता लगाना हो, चिह्नित स्थानों की घेराबंदी हो, संदिग्धों को अस्पताल तक पहुंचाना हो, घर-घर जरूरत का सामान बंटवाना हो, सड़कों पर लोगों को आने-जाने से रोकने और वाहनों की जांच करना, न जाने ऐसे कितने ही काम हैं जो पुलिस कर रही है। जाहिर है, ऐसे में सबसे ज्यादा खतरा भी उसके सामने ही है, चाहे कोरोना संक्रमण लगने का हो, या अपने पर होने वालों हमलों का।
कोरोना से लड़ाई अभी बहुत लंबी है। देश में रोजाना जिस तेजी से नए मामले सामने आ रहे हैं, वह भी कम चिंता का विषय नहीं है। पुलिस की भूमिका सिर्फ पूर्णबंदी तक ही तो सीमित है नहीं। जैसे-जैसे पूर्णबंदी खुलेगी, तब चुनौतियां और बढ़ेंगी। लोगों की आवाजाही शुरू होते ही संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ेगा। व्यापक स्तर पर जांच अभियान के तहत जब जांच का दायरा बढ़ेगा, तो यह काम भी पुलिस की मदद के बिना संभव नहीं होगा।
दिल्ली पुलिस का ही उदाहरण लें। इस वक्त पुरानी दिल्ली के चांदनी महल पुलिस थाने के दो जवानों में यह संक्रमण पाया गया है। चांदनी महल सबसे ज्यादा खतरे वाले चिह्नित इलाकों में से है, जहां तबलीगी जमात के लोगों की आवाजाही सबसे ज्यादा रही। दिल्ली पुलिस के नौ जवान अब तक कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में पुलिस के सामने बड़ा संकट अपने को सुरक्षित बनाए रखने का भी है।
देश की थलसेना और नौसेना भी कोरोना संक्रमण की मार से नहीं बची है। थल सेना में अभी तक नौ मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन मुंबई स्थित नौसेना की पश्चिमी कमान में आइएनएस आंग्रे पोत में छब्बीस नाविकों के कोरोना संक्रमित पाए जाने की घटना ने नींद उड़ा दी है। इस पोत से थोड़ी ही दूर तट पर कमान का दफ्तर है और इसी क्षेत्र में जंगी बेड़े और पनडुब्बियां भी तैनात हैं। पश्चिमी कमान के तहत अरब सागर से हिंद महासागर तक इलाका है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारी सेनाएं पहले से सतर्क हैं और जरूरी बचाव के लिए सभी संभव कदम उठाए होंगे। लेकिन अब एक-एक सैनिक पर कड़ी निगरानी रखने की चुनौती है। नौसेना के इन छब्बीस संक्रमितों में एक सैनिक कुछ दिन अपनी मां के पास रह कर आया था। इस सैनिक की मां भी संक्रमित पाई गई। संक्रमण मां से बेटे में फैला या बेटे के जरिए मां में, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। पर इस घटना से यह तो साफ हो गया है कि कोरोना से बचने के लिए सेना को भी खास तरह के बंदोबस्त तो करने ही होंगे।

 
 
पब्लिकयूवाच - ऐसी घटनाएं हमारे आपके साथ अनेको बार हुई होगी भले ही आप पहले न हो लेकिन दूसरे तीसरे पांचवे दसवें तो जरूर रहे होंगे। आप सड़क पर बाइक या कार से किसी भी साधन से जाते हुए रुक जाइये और किनारे लगे बिजली के खम्भे को देखना शुरू कर दीजिए. कुछ देर में कोई और पक्का रुकेगा वह भी देखेगा धीरे-धीरे एक एक करके दर्जनों लोग रुक कर ऊपर उसी खम्भे को देखने लगेंगे।भले ही किसी को कुछ समझ नहीं आये। किसी ने दूसरे से पूछ लिया कि भाई क्या है तो वह जबाब देगा पता नहीं कुछ तो है ऊपर यह सारा क्रम काफी देर चल सकता है। यह मनुष्य की कौतूहल वाली प्रवित्ति का नतीजा है।
कभी कभी आप घर मे महिलाओं को अचानक किसी अजीबोगरीब क्रिया कलाप में सलंग्न देखते है मसलन पीपल के पेड़ पर सात दिया जलाना या फिर सुहागन को पांच बिंदी दान देना या जिसके जितने बच्चे है उतना फल खाओ या दान करो ।पूछने पर पता चलता है फला दीदी ,भाभी, बुआ ,मामी का फोन आया था वह बता रही थी ऐसा करना है नही तो वो अपशगुन होगा सब कर रहे हैं मैं भी कर लेती हूं टोका टाकी मत करना इस प्रकार के तमाम प्रपंच हिंदुस्तान के कोने कोने में वर्षो से चल रहे है ।हम सबके लिए यह सामान्य बात है।
यह किस्सा मैं आप सबको इसलिए बता रहा हूं कुछ दिन पहले कोरोना से बचाव के लिए देश भर ने ,थाली पीटा, मोमबत्तियां जलाई ।कुछ लोग इसे मोदी जी के आह्वान का प्रभाव मान बड़े खुश हो रहे मोदी जी ने आह्वान किया देश ने उनका समर्थन किया यह उनका जनाधार है।अरे भइया जिस देश में समान्य अफवाह पर लोग गणेश जी को दूध पिलाने लोग मंदिरों में दूध ले लाईन लगा लेते है जिस देश मे महिलाएं बिना किसी ठोस जानकारी के टोटके कर लेती है यह सोच कर ऐसा करने में हमारा जाता क्या है ।जहाँ लोग एक आदमी के सड़क पर ऊपर देखते देख कर कौतूहल में खुद भी ऊपर देखने लगते है उस देश मे यदि प्रधानमंत्री नेशनल टीवी पर दैवीय आपदा के समय कोई टोटका करने का आह्वान करते है तो लोगो को उसको मानना सामान्य बात है। इस घटना को नेता की महिमा और प्रभाव बता कर मगन रहने वाले जान ले यह संक्रमण काल नोटबन्दी के समान नही है कि लोग पर पीड़ा से खुश होंगे हमारा क्या गया ।पैसे वालो का गया जिसने जमा कर के रखा था उसका गया ।कोरोना महामारी है बीमारी अमीर गरीब देख कर नही आती ।वैसे भी कोरोना की मार में देश का गरीब जादा बेहाल है ।
लॉक डाउन से उनको कोई फर्क नही पड़ने वाला जो साधन संपन्न है या जिनके पास घर मे खाने पीने की कुछ महीने कोई दिक्कत नही आने वाली ।इसका सबसे ज्यादा प्रभाव उन पर पड़ रहा जिन्हें रोज कमाना है तभी उनके घरों में चूल्हे जल पाते हैं जब वे दिन भर में कुछ कमा लें। सब्जी फल का ठेला लगाने वालों को छोड़ दिया जाय तो आज सड़क पर व्यवसाय करने वाला तथा मजदूरी कर जीवन यापन करने वाला हर आदमी बेबस और मजबूर है ।उसे या सरकार का सहारा चाहिए या फिर समाज के समृद्ध तबके की मदद की ।इस अनिश्चितता के माहौल में समाज मे भी बहुत बड़ा तबका मदद की स्थिति में खुद को नही पाता , उसे खुद नही मालुम कि वह अपने परिवार की व्यवस्थाओं को कितने दिन पूरी कर पायेगा।अपनी तमाम संवेदनाओं के वावजूद स्वम को असहाय पा रहा है। लॉक डाउन के 21 दिन बाद भी चलने पर दिहाड़ी मजदूरी से ऊपर जो लोग छोटी मोटी नौकरियां दुकानों ,छोटे कार्यालयों में काम करते है छोटे निजी संस्थानों में काम करते है , भृत्य मुंशी आदि की नौकरी कर होने वाली आमदनी से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है उनके पास भी अब पैसे और राशन दोनो खत्म होने को है।
इस वर्ग ने भी अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर अपने परिवार की कुशलता के लिए थाली भी पीटा ,और दिया भी जलाया रैलियां निकलने पर जिंदाबाद के नारे भी लगाया अब जरूरत है प्रधानमंत्री भी थाली मोमबत्ती के प्रपंच से ऊपर उठ कर इन निम्न और मध्यम तबके के लोगो की परेशानियों को दूर करने की कवायद करें। एक शहर से दूसरे शहर एक राज्य से दूसरे राज्य जाने की आपाधापी शौकिया नही थी ।इसके पीछे भूख भय और असुरक्षा की भावना थी ।हजार पांच सौ किलोमीटर पैदल चलने निकलने वाले लोगो ने इसे अंतिम रास्ते के रूप में चुना था।
निसन्देह यह एक वैश्विक महामारी है इससे दुनिया के तमाम ताकतवर देशों मे कोइ नही बचा है।भारत मे इस महामारी ने जनवरी में दस्तक दिया और काफी धीरे धीरे विस्तार किया कह सकते है कि कोरोना ने भारत को बचाव का पूरा अवसर दिया था ।दुर्भाग्य से हमने इस अवसर का सदुपयोग नही किया ।प्रधानमंत्री जी अमीरों को हवाई अड्डो पर रोकने का साहस जब दिखाना था तब तो आप इच्छा शक्ति सुसुप्त थी।यदि कुछ लाख लोगों को आइसोलेशन में रखने का कदम उठाया गया होता तो आज देश के लिए 135 करोड़ लोगों को घरों के अंदर रहने की नौबत नहीं आती और न ही देश के करोङो लोगो को भूख से लड़ने की जद्दोजहद करने की मजबूर होना पड़ता।फरवरी में वेंटिलेटर और पीपीई जैसे आवस्यक चिकित्सीय उपकरणों के निर्यात की अनुमति देने के अदूरदर्शी निर्णयों का जबाब भी कालांतर में जनता को देना ही पड़ेगा।
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