Friday, 18 October 2024

 
पब्लिकयूवाच - सम्पादकीय - यह गंभीर चिंता की बात है कि कोरोना के खिलाफ जंग के मैदान में उतरे हमारे पुलिस कर्मी भी इस संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। रविवार तड़के मध्य प्रदेश में इंदौर के एक पुलिस निरीक्षक ने कोरोना संक्रमण से दम तोड़ दिया। इससे पहले शनिवार को पंजाब में लुधियाना के सहायक पुलिस आयुक्त की जान भी कोरोना संक्रमण से चली गई। देश में कोरोना न फैल पाए, इसके लिए पूर्णबंदी को सख्ती से लागू कराने के लिए सबसे ज्यादा अगर कोई जान जोखिम में डाल कर अपनी सेवाएं दे रहा है, तो वह इस देश की पुलिस है।
पुलिस का काम और जिम्मेदारियां इस वक्त सबसे ज्यादा जोखिम और चुनौती भरी है। पूर्णबंदी में सरकार के दिशानिर्देशों के पालन से लेकर जिला प्रशासन के सारे काम पुलिस की मदद से ही चल रहे हैं। चाहे कोरोना संदिग्धों का पता लगाना हो, चिह्नित स्थानों की घेराबंदी हो, संदिग्धों को अस्पताल तक पहुंचाना हो, घर-घर जरूरत का सामान बंटवाना हो, सड़कों पर लोगों को आने-जाने से रोकने और वाहनों की जांच करना, न जाने ऐसे कितने ही काम हैं जो पुलिस कर रही है। जाहिर है, ऐसे में सबसे ज्यादा खतरा भी उसके सामने ही है, चाहे कोरोना संक्रमण लगने का हो, या अपने पर होने वालों हमलों का।
कोरोना से लड़ाई अभी बहुत लंबी है। देश में रोजाना जिस तेजी से नए मामले सामने आ रहे हैं, वह भी कम चिंता का विषय नहीं है। पुलिस की भूमिका सिर्फ पूर्णबंदी तक ही तो सीमित है नहीं। जैसे-जैसे पूर्णबंदी खुलेगी, तब चुनौतियां और बढ़ेंगी। लोगों की आवाजाही शुरू होते ही संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ेगा। व्यापक स्तर पर जांच अभियान के तहत जब जांच का दायरा बढ़ेगा, तो यह काम भी पुलिस की मदद के बिना संभव नहीं होगा।
दिल्ली पुलिस का ही उदाहरण लें। इस वक्त पुरानी दिल्ली के चांदनी महल पुलिस थाने के दो जवानों में यह संक्रमण पाया गया है। चांदनी महल सबसे ज्यादा खतरे वाले चिह्नित इलाकों में से है, जहां तबलीगी जमात के लोगों की आवाजाही सबसे ज्यादा रही। दिल्ली पुलिस के नौ जवान अब तक कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में पुलिस के सामने बड़ा संकट अपने को सुरक्षित बनाए रखने का भी है।
देश की थलसेना और नौसेना भी कोरोना संक्रमण की मार से नहीं बची है। थल सेना में अभी तक नौ मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन मुंबई स्थित नौसेना की पश्चिमी कमान में आइएनएस आंग्रे पोत में छब्बीस नाविकों के कोरोना संक्रमित पाए जाने की घटना ने नींद उड़ा दी है। इस पोत से थोड़ी ही दूर तट पर कमान का दफ्तर है और इसी क्षेत्र में जंगी बेड़े और पनडुब्बियां भी तैनात हैं। पश्चिमी कमान के तहत अरब सागर से हिंद महासागर तक इलाका है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारी सेनाएं पहले से सतर्क हैं और जरूरी बचाव के लिए सभी संभव कदम उठाए होंगे। लेकिन अब एक-एक सैनिक पर कड़ी निगरानी रखने की चुनौती है। नौसेना के इन छब्बीस संक्रमितों में एक सैनिक कुछ दिन अपनी मां के पास रह कर आया था। इस सैनिक की मां भी संक्रमित पाई गई। संक्रमण मां से बेटे में फैला या बेटे के जरिए मां में, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। पर इस घटना से यह तो साफ हो गया है कि कोरोना से बचने के लिए सेना को भी खास तरह के बंदोबस्त तो करने ही होंगे।

 
 
पब्लिकयूवाच - ऐसी घटनाएं हमारे आपके साथ अनेको बार हुई होगी भले ही आप पहले न हो लेकिन दूसरे तीसरे पांचवे दसवें तो जरूर रहे होंगे। आप सड़क पर बाइक या कार से किसी भी साधन से जाते हुए रुक जाइये और किनारे लगे बिजली के खम्भे को देखना शुरू कर दीजिए. कुछ देर में कोई और पक्का रुकेगा वह भी देखेगा धीरे-धीरे एक एक करके दर्जनों लोग रुक कर ऊपर उसी खम्भे को देखने लगेंगे।भले ही किसी को कुछ समझ नहीं आये। किसी ने दूसरे से पूछ लिया कि भाई क्या है तो वह जबाब देगा पता नहीं कुछ तो है ऊपर यह सारा क्रम काफी देर चल सकता है। यह मनुष्य की कौतूहल वाली प्रवित्ति का नतीजा है।
कभी कभी आप घर मे महिलाओं को अचानक किसी अजीबोगरीब क्रिया कलाप में सलंग्न देखते है मसलन पीपल के पेड़ पर सात दिया जलाना या फिर सुहागन को पांच बिंदी दान देना या जिसके जितने बच्चे है उतना फल खाओ या दान करो ।पूछने पर पता चलता है फला दीदी ,भाभी, बुआ ,मामी का फोन आया था वह बता रही थी ऐसा करना है नही तो वो अपशगुन होगा सब कर रहे हैं मैं भी कर लेती हूं टोका टाकी मत करना इस प्रकार के तमाम प्रपंच हिंदुस्तान के कोने कोने में वर्षो से चल रहे है ।हम सबके लिए यह सामान्य बात है।
यह किस्सा मैं आप सबको इसलिए बता रहा हूं कुछ दिन पहले कोरोना से बचाव के लिए देश भर ने ,थाली पीटा, मोमबत्तियां जलाई ।कुछ लोग इसे मोदी जी के आह्वान का प्रभाव मान बड़े खुश हो रहे मोदी जी ने आह्वान किया देश ने उनका समर्थन किया यह उनका जनाधार है।अरे भइया जिस देश में समान्य अफवाह पर लोग गणेश जी को दूध पिलाने लोग मंदिरों में दूध ले लाईन लगा लेते है जिस देश मे महिलाएं बिना किसी ठोस जानकारी के टोटके कर लेती है यह सोच कर ऐसा करने में हमारा जाता क्या है ।जहाँ लोग एक आदमी के सड़क पर ऊपर देखते देख कर कौतूहल में खुद भी ऊपर देखने लगते है उस देश मे यदि प्रधानमंत्री नेशनल टीवी पर दैवीय आपदा के समय कोई टोटका करने का आह्वान करते है तो लोगो को उसको मानना सामान्य बात है। इस घटना को नेता की महिमा और प्रभाव बता कर मगन रहने वाले जान ले यह संक्रमण काल नोटबन्दी के समान नही है कि लोग पर पीड़ा से खुश होंगे हमारा क्या गया ।पैसे वालो का गया जिसने जमा कर के रखा था उसका गया ।कोरोना महामारी है बीमारी अमीर गरीब देख कर नही आती ।वैसे भी कोरोना की मार में देश का गरीब जादा बेहाल है ।
लॉक डाउन से उनको कोई फर्क नही पड़ने वाला जो साधन संपन्न है या जिनके पास घर मे खाने पीने की कुछ महीने कोई दिक्कत नही आने वाली ।इसका सबसे ज्यादा प्रभाव उन पर पड़ रहा जिन्हें रोज कमाना है तभी उनके घरों में चूल्हे जल पाते हैं जब वे दिन भर में कुछ कमा लें। सब्जी फल का ठेला लगाने वालों को छोड़ दिया जाय तो आज सड़क पर व्यवसाय करने वाला तथा मजदूरी कर जीवन यापन करने वाला हर आदमी बेबस और मजबूर है ।उसे या सरकार का सहारा चाहिए या फिर समाज के समृद्ध तबके की मदद की ।इस अनिश्चितता के माहौल में समाज मे भी बहुत बड़ा तबका मदद की स्थिति में खुद को नही पाता , उसे खुद नही मालुम कि वह अपने परिवार की व्यवस्थाओं को कितने दिन पूरी कर पायेगा।अपनी तमाम संवेदनाओं के वावजूद स्वम को असहाय पा रहा है। लॉक डाउन के 21 दिन बाद भी चलने पर दिहाड़ी मजदूरी से ऊपर जो लोग छोटी मोटी नौकरियां दुकानों ,छोटे कार्यालयों में काम करते है छोटे निजी संस्थानों में काम करते है , भृत्य मुंशी आदि की नौकरी कर होने वाली आमदनी से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है उनके पास भी अब पैसे और राशन दोनो खत्म होने को है।
इस वर्ग ने भी अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर अपने परिवार की कुशलता के लिए थाली भी पीटा ,और दिया भी जलाया रैलियां निकलने पर जिंदाबाद के नारे भी लगाया अब जरूरत है प्रधानमंत्री भी थाली मोमबत्ती के प्रपंच से ऊपर उठ कर इन निम्न और मध्यम तबके के लोगो की परेशानियों को दूर करने की कवायद करें। एक शहर से दूसरे शहर एक राज्य से दूसरे राज्य जाने की आपाधापी शौकिया नही थी ।इसके पीछे भूख भय और असुरक्षा की भावना थी ।हजार पांच सौ किलोमीटर पैदल चलने निकलने वाले लोगो ने इसे अंतिम रास्ते के रूप में चुना था।
निसन्देह यह एक वैश्विक महामारी है इससे दुनिया के तमाम ताकतवर देशों मे कोइ नही बचा है।भारत मे इस महामारी ने जनवरी में दस्तक दिया और काफी धीरे धीरे विस्तार किया कह सकते है कि कोरोना ने भारत को बचाव का पूरा अवसर दिया था ।दुर्भाग्य से हमने इस अवसर का सदुपयोग नही किया ।प्रधानमंत्री जी अमीरों को हवाई अड्डो पर रोकने का साहस जब दिखाना था तब तो आप इच्छा शक्ति सुसुप्त थी।यदि कुछ लाख लोगों को आइसोलेशन में रखने का कदम उठाया गया होता तो आज देश के लिए 135 करोड़ लोगों को घरों के अंदर रहने की नौबत नहीं आती और न ही देश के करोङो लोगो को भूख से लड़ने की जद्दोजहद करने की मजबूर होना पड़ता।फरवरी में वेंटिलेटर और पीपीई जैसे आवस्यक चिकित्सीय उपकरणों के निर्यात की अनुमति देने के अदूरदर्शी निर्णयों का जबाब भी कालांतर में जनता को देना ही पड़ेगा।

 
 
 
 
आतंक की राह पर चलते रहने को आमादा पाकिस्तान यही जाहिर कर रहा है कि वह भारत समेत दुनिया के लिए सिरदर्द बना रहेगा ।
सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का यह कथन पाकिस्तान के आतंकी चरित्र को ही बयान करता है कि बालाकोट में आतंकियों के ठिकाने को फिर से सक्रिय कर दिया गया है। यह वही आतंकी ठिकाना है, जिसे पुलवामा हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने हवाई हमले के जरिए ध्वस्त किया था। माना जाता था कि इस हवाई हमले के बाद पाकिस्तान के होश ठिकाने आ जाएंगे, लेकिन अब पता चल रहा है कि ऐसा नहीं हुआ। इसे देखते हुए यह सर्वथा उचित है कि सेना प्रमुख ने बिना किसी लाग लपेट कहा कि अगली बार बालाकोट से भी बड़ी कार्रवाई होगी। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि पाकिस्तान से कम से कम पांच सौ आतंकी भारत में घुसने की फिराक में हैं। इसका मतलब है कि पाकिस्तान आसानी से मानने वाला नहीं है। कश्मीर पर उसके गर्जन-तर्जन से यह जाहिर भी हो रहा है। वह इस तरह बौराया हुआ है जैसे जम्मू-कश्मीर पर वही शासन कर रहा हो। कश्मीर पर पाकिस्तान की बौखलाहट यही बताती है कि कोई देश किस तरह दिवास्वप्न से ग्रस्त होकर खुद को बर्बादी के रास्ते पर ले जा सकता है। उसे सिर्फ यही मुगालता नहीं था कि मुस्लिम जगत की ठेकेदारी उसके पास है, बल्कि वह इस सनक से भी ग्रस्त था कि एक दिन कश्मीर उसका होगा। वह इस सनक का शिकार तब है, जब उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में है और उसे एक तरह से भीख मांग गुजारा करना पड़ रहा है।
हालांकि पाकिस्तान के आम लोग यह जान-समझ रहे हैं कि विश्वव्यापी बदनामी के कारण दुनिया उस पर ध्यान नहीं दे रही है, लेकिन पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और खासकर उसकी सेना को शायद इसकी परवाह नहीं। हैरानी इस पर है कि क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान सच को स्वीकार करने के बजाय अपनी आतंकपरस्त सेना की कठपुतली बनना पसंद कर रहे हैं। पाकिस्तान एक ओर खुद को आतंक पीड़ित बताता है और दूसरी ओर किस्म-किस्म के आतंकियों को पालने-पोसने का भी काम करता है। उसकी इसी दुष्प्रवृत्ति को पिछले दिनों ह्यूस्टन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और साथ ही एक तरह से विश्व समुदाय के समक्ष इस सवाल के जरिए बयान किया कि आखिर 9/11 और 26/11 के आतंकी हमलों के साजिशकर्ता कहां पाए गए? आतंक के रास्ते पर चलते रहने पर आमादा पाकिस्तान यही जाहिर कर रहा है कि वह अभी भारत समेत दुनिया के लिए सिरदर्द बना रहेगा। हालांकि दुनिया पाकिस्तान का रोना-धोना सुनना पसंद नहीं कर रही है, लेकिन उसकी हरकतों को देखते हुए भारत को उससे नए सिरे से निपटने की तैयारी रखनी चाहिए। यह तैयारी निर्णायक ही होनी चाहिए।

 
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल पर लोकसभा की मुहर के साथ ही यह उम्मीद बढ़ गई है कि जल्द ही राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन होगा। इस आयोग के गठन का एक बड़ा उद्देश्य भारत को विश्वस्तरीय चिकित्सा शिक्षा का केंद्र बनाना है। मेडिकल कमीशन बिल को कानूनी स्वरूप दिए जाने का इंतजार इसलिए हो रहा है, क्योंकि ऐसा होने पर ही उस मेडिकल काउंसिल से छुटकारा मिल सकेगा, जिसके बारे में इस नतीजे पर पहुंचा गया था कि वह एक अक्षम और भ्रष्टाचार से ग्रस्त संस्था है।
हालांकि नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के कुछ प्रावधानों का विरोध भी हो रहा है, लेकिन ऐसा तो करीब-करीब हर विधेयक के मामले में देखने को मिलता है। इतने बड़े देश में ऐसे किसी विधेयक का निर्माण मुश्किल ही है, जिसके सभी प्रावधानों पर हर कोई सहमत हो सके। देखना है कि सरकार इस मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करती है या नहीं कि मेडिकल छात्रों को एक्जिट परीक्षा देने का अवसर एक से अधिक बार मिले? जो भी हो, उचित यही है कि विपक्षी राजनीतिक दल यह समझें कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन का समय आ गया है। इस आयोग के जरिए केवल चिकित्सा शिक्षा की विसंगतियों को ही दूर करने में मदद नहीं मिलेगी, बल्कि चिकित्सकों और खासकर विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को दूर करने का लक्ष्य भी पूरा किया जा सकेगा। फिलहाल यह एक कठिन लक्ष्य दिख रहा है।
चिकित्सा शिक्षा और शोध में सुधार की पहल एक ऐसे समय हो रही है, जब शिक्षा के अन्य क्षेत्रों में भी सुधार की कवायद चल रही है। नई शिक्षा नीति के मसौदे को इसी सिलसिले में देखा जाना चाहिए। वर्तमान में शिक्षा के हर स्तर पर व्यापक सुधार की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए यह समय की मांग है कि शिक्षा संबंधी कोई ऐसा राष्ट्रीय आयोग भी बने जो विभिन्न् क्षेत्रों के शिक्षा संस्थानों के तौर-तरीकों और मानकों में एकरूपता लाने का काम कर सके। ऐसा कोई आयोग ही विभिन्न् मंत्रालयों से जुड़े शिक्षा संस्थानों को समान धरातल पर लाने और उनकी गुणवत्ता को एक स्तर प्रदान करने का काम कर सकता है। यह आयोग मानव संसाधन विकास मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के शिक्षा संस्थानों में समन्वय बैठाने का भी काम कर सकता है। ध्यान रहे कि आज की जरूरत केवल यही नहीं है कि हमारी चिकित्सा शिक्षा विश्वस्तरीय हो, बल्कि यह भी है कि तकनीक, कृषि, प्रबंधन आदि से जुड़ी शिक्षा का भी स्तर सुधरे। यह जरूरत इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि सरकार इस कोशिश में है कि विदेशी छात्र भी भारत आकर उच्च शिक्षा ग्रहण करें।

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