Friday, 18 October 2024

सपने में भी सतर्क रहें कोविड 19 से-जनसंपर्क अधिकारी विजय मिश्रा 

 
 पब्लिकयूवाच - कोरोना वायरस का डर इतना ज्यादा मन के अंदर भरा हुआ है कि सोते जागते केवल कोरोना ही दिखाई दे रहा है। ऐसे कोरोनामय जिंदगी जीते जीते कल रात मुझे बहुत सारे लोगों के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी ।मैं सोच में पड़ गया कि इतनी रात को कौन “सोशल डिस्टेस्सिंग” को तोड़कर हंसी खिलवाड़ में जूटा है।
बिस्तर छोड़ कर मैं उस मैदान की ओर गया जहां से खिलखिलाहट की आवाज आ रही थी ।मैंने देखा वहां पर बहुत सारे कोरोना वायरस एकत्रित हुए थे । मैं उनकी बातें सुनने के लिए डरते डरते उनके करीब में पहूंचा और एक बरगद के पेड़ के पीछे छुप गया।उनमें से एक वायरस कह रहा था हमने अपने वायरस खानदान की दबंगता दिखा दी ।आज पूरी दुनियां में हमारे कारण त्राहि-त्राहि मचा हुआ है ।रात दिन भागने वाला इंसान अपने घरों में उल्लू की भांति घुसा बैठा है ।वह हमें कोसने मैं कोई कमी नहीं कर रहा है। सभी एक ही सुर अलाप रहे हैं कि ना जाने कब मरेगा यह कुकर्मी।
इस वायरस की बातपर ठहाका लगाते हुए एक अन्य वायरस ने कहा हमें कुकर्मी कहने वाला मानव ही सही अर्थों में आज कुकर्मी बन बैठा है। वह इस बात को भूल बैठा है कि ,उसके ही कुकर्मों से हम जैसे वायरसों और विविध विकारों का जन्म दूनियां में हो रहा है। धरती माता ने मानव समुदाय को विविध प्रकार की सुख सुविधाएं दी हैं। खाने पीने के लिए एक से बढ़कर एक चीजें भी दी है। इंसान एक बीज धरती पर डालता है तो बदले में उसे धरती माता कई गुना ज्यादा अनाज के दाने लौटा देती है। इसके बावजूद राक्षसनी सुरसा के मुंह की तरह मानव समुदाय के मन में लोभ- लालच बढ़ता ही जा रहा है। घने जंगल में फैलते दावानल की तरह इंसानों के भीतर लालच की आग हर पल धधक रही है। लालच की चासनी में डूबा इंसान अपनी बुद्धि विवेक सब कुछ खो बैठा है। विकटस्थिति तो यहां तक बन गई है कि इंसान धन के पीछे तब तक भाग रहा है जब तक उसका निधन नहीं हो जा रहा है।
इस कोरोना वायरस की बात को आगे बढ़ाते हुए एक अन्य वायरस ने कहा अपनी सुख-सुविधा बढ़ाने के लिए मानव समुदाय ने तरह तरह के कुकर्म किए हैं।जिसके दुष्परिणाम स्वरुप दुनिया में विविध लाईलाज बीमारियों नेआज घर कर लिया है।साथ ही कोरोनावंश में आये नई पीढ़ी के वायरस यानि कि हम कोविड19 भी मनुष्यों के दुष्कर्म से उपजे है। चांद तारों पर पहुंचने का घमंड दिखाने वाले उन्नत देस के लोग हमारे प्रकोप से भयभीत हैं।हमारे आगे नतमस्तक हो गए हैं।चारों खाने चित होकर धूल चाटते नजर आ रहे हैं। दूनियां के कई देशों मेंकोहराम मचाते अब हमने भारत के भीतर प्रवेश कर लिया है। यहां के विभिन्न प्रदेशों के साथ छत्तीसगढ़ में भी अब कोरोना का काला जादू चल पड़ा है।
इतना सूनते ही वहां बैठा एक अन्य कोविड किसी भड़कीले सांड की तरह भड़कता उठ खड़ा हुआ। वह हुंकार भरते हुए बोला क्या खाक जादू चल पड़ा है। अरे यहां पर तो अभी हमें बहुत ज्यादा पांव पसारने का मौका ही नहीं मिला है। हम यहां पागल कुत्ते की भांति गांव शहर की गलियों में शिकार की तलाश में लगे हुए हैं। मुझे तो लगता है शायद यहां के लोग जान गए हैं कि अपने अपने घरों में घुसे रहना कोरोना वायरस से बचने का एकमात्र उपाय है। हम तो मौके की ताक में बैठे हैं कि दिल्ली मुंबई जैसे यहां के लोग भी गाय बैल भैंस भेड़ बकरियों की तरह झून्ड के झून्ड बाहर निकले और हम इन्हें लपक के दबोच लें। इन्होंने बाहर निकलने और सोशल डिस्पेंसिंग को तोड़ने कीजरा भी गलती की तो हम इन्हें ऐसे दबोच लेंगे जैसे कि एक मकड़ी अपने जाल में फंसे कीड़े को दबोच कर चूस डालती है।
तभी वहां बैठा एक बूढ़ा सा कोरोना वायरस बोल पड़ा इसे जानते देखते हुए भी बहुत से लोग घर के बाहर निकलने की फिराक में रहते हैं। कई अक्ल के दुश्मन ऐसे भी हैं, जो चावल- दाल साग- सब्जी और खाने -पीने की चीजों को ठूंस ठूंस कर घर भरने में लगे हैं ।
गरीबों और जरूरतमंदों की पीड़ा को अनदेखी करने वाले  ऐसे लोभी लालची इंसानों की सच्चाई को उजागर करते हुए एक छोटी सी कथा की याद आ रही है। गांव का एक किसान बैलगाड़ी में चावल से भरी हुई बोरियां लेकर जा रहा था। तभी पीछे से एक चावल की बोरी गाड़ी से गिर गई ।इससे अनभिज्ञ किसान आगे चला गया ।गाड़ी से गिरी हुई बोरी एक कोने से फट गई थी ।जहां से चावल बिखर गए थे। उसी समय वहां से एक चिड़िया, गिलहरी और गाय गुजरी। इन तीनों ने अपने अपने पेट भर चावल ही खाए और संतुष्ट होकर वहां से चले चले गए। इनके बाद उस रास्ते से एक इंसान गुजरा । चांवल के बोरे को देखते ही  उसकी आंखों में धूर्तता और जीभ में लालच ने रंग दिखाना आरंभ कर दिया।वह बिना देर किए पूरे बोरे को उठाया और तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ा। 
        बूढ़े वायरस की बात सब वायरस ध्यान से सून रहे थे। वह एक लम्बी सांस छोड़ते हूए आगे बोला यह कथा इस बात को स्पष्ट बता रही  है कि छोटे-छोटे जीव जंतु अपने साथ दूसरों के पेट का भी ध्यान रखते हैं, किंतु केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है जो अपना पेट ,अपना घर भरने में जिंदगी भर लगा रहता है। दूसरों का हक मारने में भी वह चूकता नहीं है ।ऐसे ही लोभी लालची मतिभ्रष्ट मानवों का विनाश करने प्रकृति हमें हथियार बनाती है।वैश्विक महामारी जैसी आपदाओं को इंसान के द्वार ले आती है।  समय रहते अगर इंसान नहीं समझा तो हमसे भी बड़े-बड़े वायरस गिद्ध की भांति इंसानों को नोचने नज़रें गड़ाए बैठे हैं। ।
     हां भाई ठीक कह रहे हो कहते हूए वहां बैठा एक और बूढ़ा सा वायरस बोल पड़ा हमारी खौफ की वजह से अभी इंसानों को अपने अपने घरों में पूरे समय रहने का मौका मिला है। ऐसे समय में घर के भीतर रहते हुए बुजुर्गों की सेवा करते , आपसी रिश्तो में आय कड़वाहट को मिटाकर मिठास लाने का सुनहरा अवसर इंसानों को मिला है।
      हां ताऊ आपकी बात सही है पर लोग तो घर के बाहर निकल कर काल के गाल में समाने और अपने साथ-साथ अपने सगे संबंधियों की जान के दुश्मन बनने पर तुले हुए हैं। झूठी शान शौकत के दिखावा में डूबे अनेक लोग लॉक डाउन की स्थिति में भी फर फर मोटर गाड़ी मैं धूल उड़ाते उड़ाते घूम रहे हैं। ऐसे अज्ञानियों को संदेश देना होगा कि "क्यों  इतराते हो अपने ठाठ बाट पर ,खाली रहेगा हाथ जब जाओगे घाट पर।"
               इन पंक्तियों पर वाह भाई वाह, कहते हूए एक अन्य वायरस ने कहा -हमने सुना है कि छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । तीन मई तक वे अगर  लॉक डाउन के दौरान ज्यादा तीन पांच ना करें तो हम कोरोना वायरसों को खुद ही यहां से नौ दो ग्यारह होना ही पड़ेगा। इतना कहते हुए वह वायरस अचानक पीछे की ओर पलटा तो उसकी नजर मुझ पर पड़ गई । मुझे देखते ही वह   झपटने के लिए  दौड़ पड़ा। मैं उसे अपनी ओर आते देख कर बदहवास भागने लगा।        
    भागते भागते एक बड़े से गड्ढे में धड़ाम से जा गिरा। मैं जोर जोर  से चिल्लाया बचाओ बचाओ 

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