पब्लिकयूवाच- दुनिया में ताकतवर देशों का बढ़ता सैन्य खर्च उनकी साम्राज्यवादी सोच और नीतियों की ओर संकेत करता है। अमेरिका, चीन, रूस जैसे देश अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए जिस तरह पैसा बहा रहे हैं, वह दुनिया की शांति के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। धरती से लेकर अंतरिक्ष तक में सैन्य ताकत बढ़ाते रहना इन देशों के लिए अपरिहार्य हो गया है। अंतरिक्ष में सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए अमेरिका का बाकायदा अलग से बजट है। चीन भी इसमें पीछे नहीं है। हाल में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले साल सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले देशों में अमेरिका, चीन और भारत शीर्ष पर रहे हैं।
इसे वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो 2018 के मुकाबले 2019 में दुनिया का सैन्य खर्च साढ़े तीन फीसद से ज्यादा बढ़ा है। जाहिर है, दुनिया में असुरक्षा की भावना और युद्ध की आशंकाएं भी बलवती हुई हैं। लेकिन आज दुनिया में जिस तरह के हथियार बन रहे हैं, वे थोड़े से वक्त में ही मानव जाति का अस्तित्व समाप्त कर देने को पर्याप्त हैं। ऐसे में यह डर हमेशा बना रहता है कि न जाने कौन कब इनका इस्तेमाल कर डाले और दुनिया के सामने मिट जाने का खतरा खड़ा हो जाए ।
सबसे ज्यादा सैन्य खर्च अमेरिका का है। हथियारों के विकास से लेकर उनके वैश्विक कारोबार तक में उसका दबदबा है। पिछले दो साल में सैन्य साजो-सामान पर अमेरिका के खर्च में पांच फीसद से ज्यादा की वृद्धि हुई है, जो पूरी दुनिया के सैन्य खर्च का अड़तीस फीसद है। चीन का सैन्य खर्च भी दो साल में पांच फीसद से ज्यादा बढ़ा है। इसके अलावा ईरान, इजराइल, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान जैसे देश भी उन देशों में शुमार हैं जो परमाणु ताकत हासिल कर चुके हैं। साफ है कि सैन्य शक्ति पर उनका खर्च भी मामूली नहीं होगा। दरअसल, हथियारों का कारोबार अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में भी बड़ी भूमिका निभाता है ।
ये उन छोटे देशों को हथियार बेचते हैं जो अपने अंदरूनी और बाहरी संकटों से जूझ रहे हैं। जिस देश के पास जितने घातक हथियार होंगे, उसका बाजार भी उतना ही बड़ा होगा। उत्तर कोरिया की ताकत के पीछे चीन का हाथ माना जाता है, जबकि पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य शक्ति के पीछे अमेरिका और चीन दोनों हैं। इसलिए जो देश अपनी सैन्य ताकत पर जितना ज्यादा खर्च कर रहा है, उसे हथियारों का उतना बड़ा बाजार भी मिल रहा है।
हाल के कुछ सालों में भारत ने भी अपने सैन्य आधुनिकीकरण पर जोर दिया है। भारत की शुरू से नीति रही है कि वह हथियारों का विकास और खरीद सेना की क्षमता बढ़ाने के लिए करेगा, न कि किसी अन्य मकसद के लिए। भारत के लिए पाकिस्तान और चीन शुरू से बड़ा खतरा रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए सैन्य क्षमता बढ़ाना जरूरी है। यह भी हकीकत है कि दुनिया के कुछ देश सैन्य क्षमता बढ़ाने के नाम पर हथियारों की होड़ को बढ़ावा दे रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं से लेकर तमाम देश हमेशा से हथियारों की होड़ रोकने के प्रयास करते रहे हैं और इसके लिए कई संधिया भी हुई हैं। लेकिन देखने में यही आया कि जब-जब इन संधियों पर अमल की बारी आई तो वही देश पीछे हट गए जिन्हें नेतृत्व करना था। इसलिए हथियारों की होड़ पर लगाम नहीं लग पाती।