भारत मे शिक्षा चुनौतिपूण स्थिती में पहुंच चुकी है, भारत में 0.75 बिलियन नागरिक 25 या उससे कम उम्र के है। निजी शिक्षा की नैतिकता पर सवाल उठाने के बावजूद देश के सभी राज्यों मे निजी शिक्षा के तेजी से प्रसार के साथ एक मौन निजी स्कूल क्रांति हुई है। इस मौनी निजी स्कूली शिक्षा क्रांति या शिक्षा माफिया से सामजिक स्तर के सभी सशक्त लोग जुडे है चाहे व्यवसायी, मीडिया, राजनितिग्य, अफसर समाज के हर ताकतवर लोग इस खेल मे शामिल है वो भी तब जब भारत ने 2009 मे संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के लिये ‘शिक्षा को एक मानव अधिकार के रूप में घोषित किया है’, यह अब केवल कागज में मौजूद है।
देश और प्रदेश की कुल आबादी में मध्यम वर्ग का भाग 60% है उसमें भी 80% का भाग 8000 से 15000 प्रति माह कमाने वाले वेतन भोगी, छोटे मझोले व्यापारी हैं। आने वालों दिनों में इनके बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इस मध्यम वर्ग की मूल तनख्वाह का 35 से 40% खर्चा बच्चों की स्कूल फीस मे निकल जाता है। परन्तु आज कोरोना के मार में आमदनी तो शुन्य हो ही गई है आदमी के यहां खाने के लाले पड़े हैं तो बच्चों की स्कूल की फीस कहां से भरे। इनमे से अधिकांश स्कूलों ने तो जुलाई तक की एडवांस फीस ले चुकी होगी इस फीस मे ट्यूशन फीस के अलावा बस की फीस, खाने की फीस, आदि-इत्यादि फीस सम्मिलित है। निजी स्कूलों में ऐसे समय में अंकुश लगाना अति आवश्यक है। अभिभावक जुलाई की फीस को लेकर अभी से डरे हुए हैं पता नहीं किस दिन स्कूलो से फीस जमा करने का निर्देश जारी हो जाये। शिक्षा माफिया तो प्रदेश में वैसे ही पैर पसार चुका है अब मध्यमवर्ग जाए तो जाए कहां उनके पास तो मां सरस्वती के आशीर्वाद के अलावा कोई आसरा नहीं है शिक्षा ही उनके बच्चों का बेड़ा पार लगा सकती है। एक तरफ तो हम विकसित देशों से प्रतियोगिता करते है वही विकसित देशों ने शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया है, स्कैंडिनेवियाई देशों ने अपने सभी नागरिकों के लिए नि: शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की है। अमेरिका जैसा मुक्त व्यापारिक देश भी स्कूल शिक्षा नि: शुल्क प्रदान करता हैं।
सरकार को चाहिए कि तुरंत ही आदेश निकालकर मध्यमवर्ग को तसल्ली दे दे, होना तो यह चाहिए कि इन दिनों के एडवांस फीस में रियायत होनी चाहिए, ट्यूशन फीस के अलावा कोई फीस नहीं लेनी चाहिए ट्यूशन फीस भी आधी लेनी चाहिये क्योंकि कक्षाएं तो अगस्त सितंबर तक लगनी नहीं है। जहां तक बात ऑनलाइन कक्षाओं की वो तो चाइना के असुरक्षित ज़ूम एप के द्वारा लिया जा रहा है उसे तुरंत ही बंद कर देना चाहिए शिक्षा को टाइमपास बनाया जा रहा है अपने समयनुसार आधा-एक घंटे की क्लास लगा दी जाती है और अभिभावको को एक्टिविटी पकडा दी जाती है। यह शिवराज सरकार के लिए एक बहुत मुश्किल फैसला होगा क्योंकि शिक्षा माफिया बहुत ताकतवर है। प्रदेश के मुख्यमंत्री देश के इकलौते ऐसे नेता होंगे जिन्होंने अपने मध्य प्रदेश के बच्चों के साथ एक रिश्ता कायम किया है वह मध्य प्रदेश के सभी बच्चों के ‘मामा’ कहलाते हैं एवं सबको ‘भांजा-भांजी’ कह कर संबोधित करते हैं! मामाजी, अब जिम्मेदारी आपकी बनती है कि इन बच्चों के अभिभावकों के ऊपर से, बच्चों के ऊपर से स्कूल फीस के दुशचक्र से राहत दिलवाये ताकि ऐसे कठिन समय में अभिभावक वित्तीय राहत एवं आराम और बच्चे उन्मुक्त होकर जीवन जी सके।