Thursday, 21 November 2024

 
 पब्लिकयूवाच- दुनिया में ताकतवर देशों का बढ़ता सैन्य खर्च उनकी साम्राज्यवादी सोच और नीतियों की ओर संकेत करता है। अमेरिका, चीन, रूस जैसे देश अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए जिस तरह पैसा बहा रहे हैं, वह दुनिया की शांति के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। धरती से लेकर अंतरिक्ष तक में सैन्य ताकत बढ़ाते रहना इन देशों के लिए अपरिहार्य हो गया है। अंतरिक्ष में सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए अमेरिका का बाकायदा अलग से बजट है। चीन भी इसमें पीछे नहीं है। हाल में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले साल सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले देशों में अमेरिका, चीन और भारत शीर्ष पर रहे हैं।
इसे वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो 2018 के मुकाबले 2019 में दुनिया का सैन्य खर्च साढ़े तीन फीसद से ज्यादा बढ़ा है। जाहिर है, दुनिया में असुरक्षा की भावना और युद्ध की आशंकाएं भी बलवती हुई हैं। लेकिन आज दुनिया में जिस तरह के हथियार बन रहे हैं, वे थोड़े से वक्त में ही मानव जाति का अस्तित्व समाप्त कर देने को पर्याप्त हैं। ऐसे में यह डर हमेशा बना रहता है कि न जाने कौन कब इनका इस्तेमाल कर डाले और दुनिया के सामने मिट जाने का खतरा खड़ा हो जाए ।
सबसे ज्यादा सैन्य खर्च अमेरिका का है। हथियारों के विकास से लेकर उनके वैश्विक कारोबार तक में उसका दबदबा है। पिछले दो साल में सैन्य साजो-सामान पर अमेरिका के खर्च में पांच फीसद से ज्यादा की वृद्धि हुई है, जो पूरी दुनिया के सैन्य खर्च का अड़तीस फीसद है। चीन का सैन्य खर्च भी दो साल में पांच फीसद से ज्यादा बढ़ा है। इसके अलावा ईरान, इजराइल, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान जैसे देश भी उन देशों में शुमार हैं जो परमाणु ताकत हासिल कर चुके हैं। साफ है कि सैन्य शक्ति पर उनका खर्च भी मामूली नहीं होगा। दरअसल, हथियारों का कारोबार अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में भी बड़ी भूमिका निभाता है ।
ये उन छोटे देशों को हथियार बेचते हैं जो अपने अंदरूनी और बाहरी संकटों से जूझ रहे हैं। जिस देश के पास जितने घातक हथियार होंगे, उसका बाजार भी उतना ही बड़ा होगा। उत्तर कोरिया की ताकत के पीछे चीन का हाथ माना जाता है, जबकि पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य शक्ति के पीछे अमेरिका और चीन दोनों हैं। इसलिए जो देश अपनी सैन्य ताकत पर जितना ज्यादा खर्च कर रहा है, उसे हथियारों का उतना बड़ा बाजार भी मिल रहा है।
हाल के कुछ सालों में भारत ने भी अपने सैन्य आधुनिकीकरण पर जोर दिया है। भारत की शुरू से नीति रही है कि वह हथियारों का विकास और खरीद सेना की क्षमता बढ़ाने के लिए करेगा, न कि किसी अन्य मकसद के लिए। भारत के लिए पाकिस्तान और चीन शुरू से बड़ा खतरा रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए सैन्य क्षमता बढ़ाना जरूरी है। यह भी हकीकत है कि दुनिया के कुछ देश सैन्य क्षमता बढ़ाने के नाम पर हथियारों की होड़ को बढ़ावा दे रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं से लेकर तमाम देश हमेशा से हथियारों की होड़ रोकने के प्रयास करते रहे हैं और इसके लिए कई संधिया भी हुई हैं। लेकिन देखने में यही आया कि जब-जब इन संधियों पर अमल की बारी आई तो वही देश पीछे हट गए जिन्हें नेतृत्व करना था। इसलिए हथियारों की होड़ पर लगाम नहीं लग पाती।

 
 पब्लिकयूवाच - कोरोना वायरस का डर इतना ज्यादा मन के अंदर भरा हुआ है कि सोते जागते केवल कोरोना ही दिखाई दे रहा है। ऐसे कोरोनामय जिंदगी जीते जीते कल रात मुझे बहुत सारे लोगों के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी ।मैं सोच में पड़ गया कि इतनी रात को कौन “सोशल डिस्टेस्सिंग” को तोड़कर हंसी खिलवाड़ में जूटा है।
बिस्तर छोड़ कर मैं उस मैदान की ओर गया जहां से खिलखिलाहट की आवाज आ रही थी ।मैंने देखा वहां पर बहुत सारे कोरोना वायरस एकत्रित हुए थे । मैं उनकी बातें सुनने के लिए डरते डरते उनके करीब में पहूंचा और एक बरगद के पेड़ के पीछे छुप गया।उनमें से एक वायरस कह रहा था हमने अपने वायरस खानदान की दबंगता दिखा दी ।आज पूरी दुनियां में हमारे कारण त्राहि-त्राहि मचा हुआ है ।रात दिन भागने वाला इंसान अपने घरों में उल्लू की भांति घुसा बैठा है ।वह हमें कोसने मैं कोई कमी नहीं कर रहा है। सभी एक ही सुर अलाप रहे हैं कि ना जाने कब मरेगा यह कुकर्मी।
इस वायरस की बातपर ठहाका लगाते हुए एक अन्य वायरस ने कहा हमें कुकर्मी कहने वाला मानव ही सही अर्थों में आज कुकर्मी बन बैठा है। वह इस बात को भूल बैठा है कि ,उसके ही कुकर्मों से हम जैसे वायरसों और विविध विकारों का जन्म दूनियां में हो रहा है। धरती माता ने मानव समुदाय को विविध प्रकार की सुख सुविधाएं दी हैं। खाने पीने के लिए एक से बढ़कर एक चीजें भी दी है। इंसान एक बीज धरती पर डालता है तो बदले में उसे धरती माता कई गुना ज्यादा अनाज के दाने लौटा देती है। इसके बावजूद राक्षसनी सुरसा के मुंह की तरह मानव समुदाय के मन में लोभ- लालच बढ़ता ही जा रहा है। घने जंगल में फैलते दावानल की तरह इंसानों के भीतर लालच की आग हर पल धधक रही है। लालच की चासनी में डूबा इंसान अपनी बुद्धि विवेक सब कुछ खो बैठा है। विकटस्थिति तो यहां तक बन गई है कि इंसान धन के पीछे तब तक भाग रहा है जब तक उसका निधन नहीं हो जा रहा है।
इस कोरोना वायरस की बात को आगे बढ़ाते हुए एक अन्य वायरस ने कहा अपनी सुख-सुविधा बढ़ाने के लिए मानव समुदाय ने तरह तरह के कुकर्म किए हैं।जिसके दुष्परिणाम स्वरुप दुनिया में विविध लाईलाज बीमारियों नेआज घर कर लिया है।साथ ही कोरोनावंश में आये नई पीढ़ी के वायरस यानि कि हम कोविड19 भी मनुष्यों के दुष्कर्म से उपजे है। चांद तारों पर पहुंचने का घमंड दिखाने वाले उन्नत देस के लोग हमारे प्रकोप से भयभीत हैं।हमारे आगे नतमस्तक हो गए हैं।चारों खाने चित होकर धूल चाटते नजर आ रहे हैं। दूनियां के कई देशों मेंकोहराम मचाते अब हमने भारत के भीतर प्रवेश कर लिया है। यहां के विभिन्न प्रदेशों के साथ छत्तीसगढ़ में भी अब कोरोना का काला जादू चल पड़ा है।
इतना सूनते ही वहां बैठा एक अन्य कोविड किसी भड़कीले सांड की तरह भड़कता उठ खड़ा हुआ। वह हुंकार भरते हुए बोला क्या खाक जादू चल पड़ा है। अरे यहां पर तो अभी हमें बहुत ज्यादा पांव पसारने का मौका ही नहीं मिला है। हम यहां पागल कुत्ते की भांति गांव शहर की गलियों में शिकार की तलाश में लगे हुए हैं। मुझे तो लगता है शायद यहां के लोग जान गए हैं कि अपने अपने घरों में घुसे रहना कोरोना वायरस से बचने का एकमात्र उपाय है। हम तो मौके की ताक में बैठे हैं कि दिल्ली मुंबई जैसे यहां के लोग भी गाय बैल भैंस भेड़ बकरियों की तरह झून्ड के झून्ड बाहर निकले और हम इन्हें लपक के दबोच लें। इन्होंने बाहर निकलने और सोशल डिस्पेंसिंग को तोड़ने कीजरा भी गलती की तो हम इन्हें ऐसे दबोच लेंगे जैसे कि एक मकड़ी अपने जाल में फंसे कीड़े को दबोच कर चूस डालती है।
तभी वहां बैठा एक बूढ़ा सा कोरोना वायरस बोल पड़ा इसे जानते देखते हुए भी बहुत से लोग घर के बाहर निकलने की फिराक में रहते हैं। कई अक्ल के दुश्मन ऐसे भी हैं, जो चावल- दाल साग- सब्जी और खाने -पीने की चीजों को ठूंस ठूंस कर घर भरने में लगे हैं ।
गरीबों और जरूरतमंदों की पीड़ा को अनदेखी करने वाले  ऐसे लोभी लालची इंसानों की सच्चाई को उजागर करते हुए एक छोटी सी कथा की याद आ रही है। गांव का एक किसान बैलगाड़ी में चावल से भरी हुई बोरियां लेकर जा रहा था। तभी पीछे से एक चावल की बोरी गाड़ी से गिर गई ।इससे अनभिज्ञ किसान आगे चला गया ।गाड़ी से गिरी हुई बोरी एक कोने से फट गई थी ।जहां से चावल बिखर गए थे। उसी समय वहां से एक चिड़िया, गिलहरी और गाय गुजरी। इन तीनों ने अपने अपने पेट भर चावल ही खाए और संतुष्ट होकर वहां से चले चले गए। इनके बाद उस रास्ते से एक इंसान गुजरा । चांवल के बोरे को देखते ही  उसकी आंखों में धूर्तता और जीभ में लालच ने रंग दिखाना आरंभ कर दिया।वह बिना देर किए पूरे बोरे को उठाया और तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ा। 
        बूढ़े वायरस की बात सब वायरस ध्यान से सून रहे थे। वह एक लम्बी सांस छोड़ते हूए आगे बोला यह कथा इस बात को स्पष्ट बता रही  है कि छोटे-छोटे जीव जंतु अपने साथ दूसरों के पेट का भी ध्यान रखते हैं, किंतु केवल मनुष्य ऐसा प्राणी है जो अपना पेट ,अपना घर भरने में जिंदगी भर लगा रहता है। दूसरों का हक मारने में भी वह चूकता नहीं है ।ऐसे ही लोभी लालची मतिभ्रष्ट मानवों का विनाश करने प्रकृति हमें हथियार बनाती है।वैश्विक महामारी जैसी आपदाओं को इंसान के द्वार ले आती है।  समय रहते अगर इंसान नहीं समझा तो हमसे भी बड़े-बड़े वायरस गिद्ध की भांति इंसानों को नोचने नज़रें गड़ाए बैठे हैं। ।
     हां भाई ठीक कह रहे हो कहते हूए वहां बैठा एक और बूढ़ा सा वायरस बोल पड़ा हमारी खौफ की वजह से अभी इंसानों को अपने अपने घरों में पूरे समय रहने का मौका मिला है। ऐसे समय में घर के भीतर रहते हुए बुजुर्गों की सेवा करते , आपसी रिश्तो में आय कड़वाहट को मिटाकर मिठास लाने का सुनहरा अवसर इंसानों को मिला है।
      हां ताऊ आपकी बात सही है पर लोग तो घर के बाहर निकल कर काल के गाल में समाने और अपने साथ-साथ अपने सगे संबंधियों की जान के दुश्मन बनने पर तुले हुए हैं। झूठी शान शौकत के दिखावा में डूबे अनेक लोग लॉक डाउन की स्थिति में भी फर फर मोटर गाड़ी मैं धूल उड़ाते उड़ाते घूम रहे हैं। ऐसे अज्ञानियों को संदेश देना होगा कि "क्यों  इतराते हो अपने ठाठ बाट पर ,खाली रहेगा हाथ जब जाओगे घाट पर।"
               इन पंक्तियों पर वाह भाई वाह, कहते हूए एक अन्य वायरस ने कहा -हमने सुना है कि छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । तीन मई तक वे अगर  लॉक डाउन के दौरान ज्यादा तीन पांच ना करें तो हम कोरोना वायरसों को खुद ही यहां से नौ दो ग्यारह होना ही पड़ेगा। इतना कहते हुए वह वायरस अचानक पीछे की ओर पलटा तो उसकी नजर मुझ पर पड़ गई । मुझे देखते ही वह   झपटने के लिए  दौड़ पड़ा। मैं उसे अपनी ओर आते देख कर बदहवास भागने लगा।        
    भागते भागते एक बड़े से गड्ढे में धड़ाम से जा गिरा। मैं जोर जोर  से चिल्लाया बचाओ बचाओ 

 
पब्लिकयूवाच - संपादकीय - साथियों आपको यह तो अवगत होगा ही कि आज न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया मे कोविड19 जैसी महामारी ने अपने पांव पसार कर एक बार फिर से इंसान को चुनौती दी है। इस महामारी से कई लाखों लोग संक्रमित हुए है तथा एक लाख से भी ज्यादा लोग इसकी चपेट मे आ गए हैं।
इस महामारी से बचाने के लिए दुनिया के देशों के साथ हमारे यहां भी लाकडाउन चल रहा है। जिसमें न केवल हवाई जहाज बल्कि ट्रेन, बस टैक्सी आटो, रिक्शा सब कुछ थम गए है. लेकिन समाज का एक वर्ग हैं जो स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मी और प्रशासनिक कर्मियों के अतिरिक्त भी है, जो उतनी ही सक्रियता से बिना थके अपना फर्ज निभा रहा है और वो है मीडिया कर्मी (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, वेब पोर्टल)।
मीडिया के साथी भी कोरोना योद्धाओं की तरह मैदान में डटे हुए हैं। लोगों को अपनी कलम और आवाज के माध्यम से न केवल जागरूक कर रहे हैं, बल्कि उनकी समस्याओं को शासन- प्रशासन तक भी पहुंचा रहे है. समाजसेवी लोग जो पीड़ित लोगों की मदद कर रहे है प्रशासन के लोग जो दिन रात जुटे हुए है उनके अच्छे कार्यों को समाज में दिखाकर उनका भी हौसला बढ़ा रहे हैं।
इसके लिए ये साथी सैकड़ों किमी यात्राएं गांवों, बीहडों में करके तथ्यात्मक जानकारी निकाल कर पुलिस प्रशासन को उपलब्ध कराने में लगे हैं। जिससे प्रशासन को और बेहतरी से काम करने मे मदद मिल रही हैं। आम लोगों को इसका फायदा मिल रहा है। यह सब करते हुए हमेशा उन पर भी कोविड से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है, लेकिन यह अपने फर्ज को तरजीह देकर अपना चौथे स्तंभ का दायित्व निभा रहे हैं।
देश दुनिया में कई मीडिया कर्मियों के संक्रमित होने की खबरें आती रहती हैं फिर भी इनके हौसले में कोई कमी नहीं दिखाई देती हैं।
ये सब कोरोना योद्धा की तरह डटे हुए हैं। मैं पुलिस विभाग और देशवासियों की तरफ से आपका अभिन्दन करता हूँ, सलाम करता हूँ।
लेखक- रतन लाल डांगी, पुलिस महानिरीक्षक, सरगुजा रेंज, छत्तीसगढ़.
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