- सम्पादकीय
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स्वतंत्रता दिवस विशेष: गरीबी की गुलामी से आजादी का नारा देकर लड़ाई लड़ने वाले वीर योद्धा भी है हमारे मुख्यमंत्री
पब्लिकयूवाच- देश जब आजाद हुआ था। तब देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की आधी रात को जो भाषण दिया था उसे ट्रिस्ट विद डेस्टिनी के नाम से जाना जाता है। इस ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने गरीबी, अज्ञानता और अवसर की असमानता मिटाने, बीमारी को दूर करने का जिक्र किया था। आधुनिक और नए भारत का इतिहास पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी की निर्णायक भूमिका के बिना पूरा नहीं माना जा सकता। क्योंकि इन दोनों नेताओं ने ही भारत के विकास की वह नींव रखी थी जिसका फल वर्तमान पीढियां खा रही हैं। अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह कंगाल किए गए भारत को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने जो नीतियां बनाईं उसी का परिणाम है कि आज भारत विश्व के औद्योगिक देशों की श्रृंखला में आकर खड़ा हो चुका है। आजादी के पहले से ही नेहरू को जो तथ्य सबसे ज्यादा तकलीफ देता था वह इस देश में चारों तरफ पसरी हुई गरीबी और किसानों की दुर्दशा ही थी। आजादी की लड़ाई से लेकर स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने के सफर में उन्होंने बहुत कुछ बदलते हुए देखा था। यहीं वजह थीं कि पं. नेहरू ने इस देश के विकास का जो रोडमैप तैयार किया उसमें समाज के सबसे पिछड़े और गरीब आदमी को केन्द्र में रखते हुए योजनाएं बनाईं। उन्होंने अपने ऐतिहासिक भाषण में संदेश दिया था कि ‘भविष्य हमें बुला रहा है। हमें किधर जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और कामगारों के लिए आजादी और अवसर ला सकें, हम गरीबी, हम एक समृद्ध और लोकतांत्रिक देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो आदमी औरत के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सकें? हमें बहुत मेहनत करनी होगी, कोई तब तक चैन से नहीं बैठ सकता जब तक हम अपने वादे को पूरा नही कर देते।
वर्ष 1971 में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भी गरीबी हटाओ का ऐतिहासिक नारा दिया था। वर्ष 1975 में गरीबी उन्मूलन के लिए 20 सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत कर गांव के जीवन स्तर को सुधारने और गरीबी को दूर करने का प्रयास हुआ। उनका यह कार्यक्रम प्रभावशाली भी रहा। वर्ष 1971 में गरीबी की दर 57 प्रतिशत थीं वह 1977 में 52 और 1983 में 44, 1987 में 38.9 प्रतिशत हो गई। प्रधानमंत्री बनने के बाद स्व. राजीव गाँधी ने भी निर्धन उन्मूलन की दिशा में कदम बढ़ाते हुए पंचवर्षीय योजना में निर्धन उन्मूलन कोे शामिल किया। पंडित नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक सबने गरीबी हटाने की बात ही नहीं की अपितु किसानों, गरीबों, कामगारों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए योजना बनाकर उसे धरातल पर अमल भी कराया।
प्राकृतिक संसाधनों और अपनी विशिष्ट संस्कृति से परिपूर्ण हमारा छत्तीसगढ़ अन्य कई प्रदेशों की तुलना में हमेशा खुशहाल रहा है। विरासत को देखे तो पाएंगे कि यहा के लोग परिश्रमी और स्वाभीमानी से भी परिपूर्ण रहे हैं। लेकिन धान का कटोरा कहे जाने वाला यह प्रदेश समय के साथ कैसे कंगाल होता गया और यहां के लोग कैसे गरीब होते चले गए ? क्या कुछ ऐसी नीतियां तैयार नही हो पाई जो यहां की वैभवशाली परम्परा, संस्कृति को अपनाने प्रेरित करें और छत्तीसगढ़ को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा सकें? ‘अमीर धरती के गरीब लोग‘ का नारा ही क्यों गूंजता रहां ? हो सकता है कि ठोस रणनीति का अभाव रहा हो। लेकिन ठीक आज से एक साल पहले जब बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा फहराया था तब उन्होंने आम जनता के नाम अपने संदेश में कहा था कि हमने विरासतों के साथ आगे बढ़ने की नीति अपनाई है। उन्होंने गरीबी से आजादी का आह्वान करते हुए नरवा, गरवा, घुरवा, बारी’ के माध्यम से गांवों की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को नया जीवन देने की पहल की। उस वक्त इस नई सरकार को एक साल भी पूरे नही हुए थे बावजूद इसके सरकार ने कई निर्णायक फैसले लेकर प्रदेश के हर वर्गों में नई आस, उत्साह और उमंग भर दिया।
मुख्यमंत्री ने गरीबी की गुलामी से आजादी के लिए सरकार बनते ही पहले दिन से वादा निभाने की शुरूआत कर दी थी। किसानों को 2500 रू. प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी कर तत्काल प्रभाव से भुगतान की प्रक्रिया शुरू तो किया ही, वर्षों से लंबित 17 लाख 82 हजार किसानों का 8 हजार 755 करोड़ रू. का कृषि ऋण, 244 करोड़ रू. का सिंचाई कर माफ किया। लोहंडीगुड़ा में 1700 से अधिक आदिवासी किसानों की 4200 एकड़ जमीन वापिस कर दी। तेन्दूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक 2500 रू. प्रति मानक बोरा से बढ़ा कर 4000 रू. प्रति मानक बोरा कर दिया। बिजली बिल हाफ करने के साथ ही 19.78 लाख गरीब परिवारों को 30 यूनिट तक निःशुल्क बिजली की सुविधा से लाभान्वित किया गया। महात्मा गांधी के 150वीं जयंती पर प्रदेश में दो अक्टूबर को मुख्यमंत्री सुपोषण योजना, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, छत्तीसगढ़ सर्वभौम पीडीएस की शुरूआत की। गरीबी की वजह से बीमारी का इलाज नही करा पाने वाले लोगों को जहां सरल व सहज स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई, वहीं महिलाओं, किशोरियों को पोषण आहार, जरूरतमंद सभी गरीब परिवारों को पीडीएस के माध्यम से खाद्यान्न उपलब्ध कराने की नई पहल की। मुख्यमंत्री ने डाॅ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना लागू कर प्रदेश के 56 लाख परिवारों को 5 लाख रुपए तक का उपचार, 9 लााख परिवारों को 50 हजार रुपए तक इलाज की सुविधा दी। मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता के तहत 20 लाख रू. तक उपचार की सुविधा देने वाला पहला राज्य भी बन गया।
अभी नई सरकार ने दो वर्ष पूरे नही किए है लेकिन गरीबी से आजादी का आह्वान करने के ठीक एक साल के भीतर ही बड़े से बड़े फैसले ने किसानों, गरीबों और आम नागरिकों को राहत पहुचानें में अहम भूमिका निभाई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री बघेल ने नरवा, गरवा, घुरवा, बारी’ का जो खाका बुना था अब वह धरातल पर साकार होता दिख रहा है। प्रदेश में 5300 गौठान स्वीकृत होने के साथ 2600 पूर्ण हो चुके हैं। इन गौठानों में तैयार जैविक खाद और इसकी उपयोगिता ने गाय और गोबर की महत्ता को भी बढ़ाया है। देश में एक अलग तरह की योजना गोधन न्याय योजना की शुरूआत भी इन्हीं उपयोगिताओं और महत्व का परिणाम है। किसानों से 2 रुपए प्रति किलो गोबर खरीदने और गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए स्वसहायता समूहों को जोड़ने के साथ बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा रही है। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति तथा लैम्प्स के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट को 8 रू. प्रति किलो की दर से किसानों को बेचकर एक नये अध्यााय की शुरूआत की जा रही है। गोधन न्याय योजना ने देश भर में प्रशंसा बटोरी है। इस योजना में महज 15 दिन बाद ही गोबर बेचने वाले 46 हजार 964 हितग्राहियों को 1 करोड़ 64 लाख रुपए का भुगतान भी आॅनलाइन किया गया है। निश्चित ही इन प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवरने के साथ पर्यावरण संतुलन सफल होगा।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी सदैव ही किसानों के हिमायती थे। वे किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम उठाने के साथ आधुनिक टेक्नोलाॅजी के सहयोग से फसल उत्पादन बढ़ाने पर भी जोर देते रहें। शायद उनका यह विश्वास था कि किसान आत्मनिर्भर और मजबूत बनेंगे तो सही मायने में आजादी सार्थक सिद्ध होगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी किसान है। किसानों की व्यथा को महसूस करने के साथ उनकी जरूरतों को भी भलीभांति जानते समझते हैं। पहले साल धान के किसानों को 2500 रूपए प्रति क्विंटल का दाम देने के बाद जब दूसरे साल में एक बड़ी बाधा आई तो भी उन्होंने अपना वायदा पूरा किया और कोरोना संकटकाल में मुसीबतों से घिरे किसानों के सच्चे हमदर्द बने और राजीव गांधी किसान न्याय योजना शुरू कर उनके खाते में राशि डाली। ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना’ के माध्यम से धान, मक्का और गन्ना के 21 लाख से अधिक किसानों को उनके बैंक खातों में डीबीटी के माध्यम से 5700 करोड़ रू. की राशि का भुगतान 4 किस्तों में किया जाना है। जिसकी पहली किस्त 1500 करोड़ रू. 21 मई को किसानों की खाते में डाल दी गई है। 20 अगस्त को राजीव गांधी जी के जन्म दिन के अवसर पर दूसरी किस्त की राशि भी किसानों के खाते में जमा की जाएगी। मुख्यमंत्री ने ऐसे ग्रामीण परिवार जिनकेे पास खेती के लिए अपनी जमीन नहीं है उनके लिए ‘भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना’ की घोषणा भी की है ताकि ऐसे परिवारों को निश्चित आय हासिल हो।
कोरोना संक्रमणकाल में लॉकडाउन के दौरान भी प्रदेश के मुख्यमंत्री गरीबों के मसीहा बने। उन्होंने इस संकटकाल में राशन कार्डधारियों सहित प्रवासी मजदूर परिवारों के लिए खाद्यान्न की व्यवस्था कराई। जरूरतमंदों को निःशुल्क खाद्यान्न देने के निर्देश दिए। आंगनबाड़ी, स्कूल से जुड़े बच्चों को सूखा अनाज घर-घर तक देने का काम किया। मनरेगा के तहत काम और समय पर मजदूरी भुगतान, लघु वनोपज संग्रह के लिए पारिश्रमिक देने में भी छत्तीसगढ़ अव्वल रहा है। इस दौरान लाॅकडाउन में फंसे परिवारों के खाते में पैसा डालने के साथ ही प्रवासी मजदूरों और बाहर अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की सुरक्षित घर वापसी कर हर किसी को विपरीत परिस्थितियों में सम्हलनें का अवसर दिया।
अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी को वन अधिकार पट्टा देने सरकार द्वारा निरस्त वन अधिकार पट्टों की समीक्षा की जा रही है। राज्य में जून 2020 तक 8 लाख 45 से अधिक व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार के आवेदन प्राप्त हुए है जिसमें से 4 लाख 51 हजार से अधिक वन अधिकर पत्र स्वीकृत व वितरित भी कर दिए गए हैं। तेंदूपत्ता संग्रहण करने वाले संग्राहकों के लिए शहीद महेन्द्र कर्मा तेंदूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना लागू कर प्रदेश के लगभग 12.50 लाख संग्राहकों को सुरक्षा का भरोसा दिलाया है। उन्होंने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर इंदिरा मितान योजना शुरू करने की घोषणा भी की है। इसके माध्यम से आदिवासी अंचल के दस हजार गांव में युवाओं का समूह गठित कर वन आधारित आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जाएगा। प्रदेश में गरीब वर्गो के कल्याण की दिशा में योजना बनाने के साथ उसका प्रभावी अमल भी किया जा रहा है। आज हम आजादी की 73वीं सालगिरह मना रहे हैं। पंडित नेहरू भी गुलाम भारत को आजाद कराना चाहते थे और आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में गरीब आदमी की सभी क्षेत्रों में भागीदारी चाहते थे ताकि उसका खोया हुआ आत्म सम्मान और गौरव वापस आ सकें। प्रदेश के मुखिया भी शायद यह बात भलीभांति जानते हैं। इसलिए कोरोना संक्रमण के बीच किसी तरह की आर्थिक चुनौतियों की परवाह न कर अपनी जनहितैषी योजनाओं से गरीबों, किसानों, कामगारों सहित छत्तीसगढ़ियों के दिल में अपनी छाप छोड़ते जा रहे हैं और गरीबी की गुलामी को दूर करने की दिशा में एक वीर योद्धा की तरह लड़ाई लड़ रहे हैं।