पब्लिकयूवाच 24.com,पराधीन देश मे स्वतंत्रता और अपने स्वयं के संविधान के लिए आकुल जनता की आवाज को बुलंद करते हुए जनवरी 1938 में पं.नेहरू नें कहा था कि राष्ट्रीय कांग्रेस का लक्ष्य स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना है। उसकी मांग है कि स्वतंत्र भारत का संविधान वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्मित हो। नेहरू और राष्ट्रीय कांग्रेस के इच्छा के अनुरूप भारतीय लोकतंत्र के संविधान के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ हुई। देश की आजादी के पूर्व अंग्रेजी सरकार के प्रयासों से प्रांतीय विधान सभा द्वारा चुने गए एवं रियासतों और प्रांतों के कुल 389 सदस्यों से संविधान सभा का गठन किया जा चुका था। संविधान सभा ने जवाहरलाल नेहरू के साथ 13 दिसंबर, 1946 को भारत के संविधान निर्माण के लिए औपचारिक रूप से पहल आरंभ किया। इसका उदेश्य भारत को एक संप्रभु गणराज्य के रूप में स्वतंत्र घोषित करना और उसके लिए संविधान का निर्माण करना था।
इस बीच देश का विभाजन हो गया और 15 अगस्त को भारत को जब स्वतंत्रता मिली, संविधान सभा में सीटों की कुल संख्या 299 हो गई। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गये। सभा की अगली कार्यवाहियों में 29 अगस्त 1947 को, संविधान सभा में एक प्रस्ताव के माध्यम से मसौदा समिति की नियुक्ती की गई। जिसमें ए. कृष्णस्वामी अय्यर, एन. गोपालस्वामी, बी.आर. अम्बेडकर, के.एम. मुंशी, मो. सादुल्ला, बी.एल. मित्तर और डी.पी. खेतान थे। अगले दिन मसौदा समिति ने अपनी पहली बैठक में बी.आर. अंबेडकर को समिति का अध्यक्ष चुन लिया। सनद रहे कि इस बीच संवैधानिक सलाहकार बी.एन.राऊ द्वारा ड्राफ्ट संविधान तैयार कर लिया गया था।
अक्टूबर 1947 के अंत में मसौदा समिति ने बी.एन.राऊ द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट संविधान की जांच शुरू की। समिति ने इसमें विभिन्न परिवर्तन किए और सुधार के उपरांत 21 फरवरी 1948 को इसे संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया। संविधान सभा में इस पर सदस्यों के बीच व्यापक विचार-विमर्श हुआ, भारतीय संविधान को स्वरूप देनें में इन प्रभावशाली बहसों का अहम योगदान था। संविधान सभा के सदस्यों ने संशोधनों का प्रस्ताव रखा और इन पर बहसें की। संविधान सभा के ज्यादातर वाद-विवाद मसौदा समिति द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट संविधान के चारों ओर घूमती रही। संविधान सभा के 165 सदस्यों में से 114 सदस्यों नें ड्राफ्ट संविधान पर 11 सत्रों में दिनों की संख्या के हिसाब से कुल 165 दिन बहस करते हुए बिताए। मसौदा संविधान के अनुच्छेदों पर बहस के उपरांत संविधान सभा ने संशोधनों को या तो अपनाया या बहुसंख्यक मत के आधार पर अस्वीकार कर दिया। 6 दिसंबर 1946 को, संविधान सभा की पहली बैठक हुई। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में 2 साल और 11 महीने, 18 दिन लगे। मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 12 अनुसूचियां थीं। 26 नवंबर को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया और 26 जनवरी 1950 को यह लागू हुआ।
भारत के इस पवित्र संविधान के निर्माण में मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ.बी.आर.अम्बेडकर का मुख्य योगदान रहा। बाबासाहब ने बी.एन.राऊ द्वारा बनाये गए ड्राफ्ट संविधान में आमूलचूल परिर्वतन किए और संविधान सभा में अनुच्छेदों के संशोधनों पर हो रहे वाद-विवादों में अपने तथ्यात्मक तर्क दिये। संविधान सभा में सदस्यों के बीच, संविधान के अनुच्छेदों, उसमे प्रयुक्त शब्दो पर उसके पक्ष और विपक्ष में तर्कों के साथ बहस होती थी। संविधान सभा में देश के विभिन्न प्रातों के उल्लेखनीय सदस्य भी थे जिन्होंनें संविधान के निर्माण में अहम योगदान दिया उनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, आचार्य जे बी कृपलानी, बी पट्टाभि सीतारमैया, के.एम.मुशी, एन.गोपालस्वामी अयंगार, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, राजकुमारी अमृत कौर, रफी अहमद किदवई एवं पं. कुंजरू आदि का नाम उल्लेखनीय है।
हमारे प्रदेश के लिए भी यह गर्व की बात है कि संविधान निर्माण के इस महायज्ञ में छत्तीसगढ़ का योगदान रहा। इस प्रदेश के गुरू अगमदास, ठाकुर छेदीलाल, पं.रविशंकर शुक्ल, किशोरी मोहन त्रिपाठी, रामप्रसाद पोटई एवं धनश्याम सिंह गुप्त संविधान सभा के सदस्य थे। संविधान के अनुच्छेदों पर हो रहे वाद-विवादों में पं.रविशंकर शुक्ल एवं धनश्याम सिंह गुप्त नें हिस्सा लिया जिसमें गुप्त सबसे लम्बे समय तक संविधान निर्माण के कार्य में दिल्ली में डटे रहे। पं.रविशंकर शुक्ल 12, 13 और 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा में उपस्थित रहे जिसमें 13 सितम्बर को शुक्ल जी नें राष्ट्रभाषा हिन्दी के पक्ष में लम्बा और एतिहससिक अभिभाषण दिया था। संविधान सभा के बहसों में गुप्त जी ने लगातार भाग लिया और महीनों काम करते हुए संविधान का हिन्दी अनुवाद किया। संविधान सभा में वे संशोधनों के लिए नियत अलग-अलग तिथियों में लगभग 30 दिन तक पूरी कार्यवाही तक उपस्थित रहे। उन्होंनें संविधान के अनुच्छेदों और शब्दों के संशोधनों में अपना दमदार हस्तक्षेप प्रस्तुत किया।
विधान सभा के द्वारा गुप्त जी को संविधान के हिन्दी ड्राफ्ट कमेंटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वे दिन-प्रतिदिन के बहसों में भाग लेते रहे और अपने 41 विशेषज्ञों की टीम को लीड करते हुए संविधान के अनुवाद कार्य में तल्लीन रहे। अनुवाद विशेषज्ञ समिति में सर्वश्री राहुल सांकृत्यायन, डा. सुनीति कुमार चटर्जी, जयचंद विद्यालंकार, मोटुरि सत्यनारायण और यशवंत आर दाते का विशेष सहयोग गुप्त जी को मिलता रहा। 24 जनवरी, 1950 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नें सदन में अध्यक्ष की आसंदी से कहा कि माननीय घनश्याम सिंह गुप्त जी संविधान के हिन्दी अनुवाद की प्रति प्रस्तुत करें तब घनश्याम गुप्त नें हिन्दी अनुवाद की प्रति सदन में प्रस्तुत किया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की इच्छा के अनुरूप 2 वर्ष 6 माह की अवधि में घनश्याम सिंह गुप्त के नेतृत्व में संविधान का हिन्दी ड्राफ्ट सदन में प्रस्तुत कर दिया गया। संविधान के हिन्दी अनुवाद के लिए उन्होंनें अपनी संपूर्ण उर्जा लगा दी थी। अनुवाद समिति के विद्वान सदस्यों के बीच तालमेल बैठाते हुए दुरूह और कठिन संवैधानिक शब्दों का अनुवाद आसान नहीं था। एक-एक शब्दों के सटीक अनुवाद में विद्वानों नें कई-कई दिन बिताये तब जाकर संविधान का वह स्वरूप सामने आया जिसे भारत की बहुसंख्यक जनता पढ़ और समझ पाने में सक्षम हुई।
हिन्दी जनमानस के हृदय में आज भी संविधान के इसी हिन्दी पाठ का आदर विराजमान है। ‘वी द पीपल आफ इंडिया के स्थान पर हमारी जिव्हा ‘हम भारत के लोग…’ कहने के लिए ज्यादा सहज होती है। संविधान जैसे तकनीकी ग्रन्थ को इतना सहज और ग्राह्य बनाने के लिए जिन मनीषियों नें कार्य किया उनमें घनश्याम सिंह गुप्त का नाम हमेशा भुला दिया जाता है जबकि वे इस समिति के अध्यक्ष और विद्वान विधि वेत्ता थे। पद-प्रतिष्ठा और नाम की ज्याद फिक्र ना करने के कारण ही उन्होने अपने इस कार्य को प्रचारित भी नहीं किया। सरकार नें उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें आगे इंडिया कोड के अनुवाद की जिम्मेदारी दी एवं अंग्रेजीमय सरकारी काम-काज के हिन्दीकरण के कई अहम दायित्व उन्हें प्रदान किया गया। वे गांव के जोगी जोगड़ा बने रहे उनके खुद के गृह नगर दुर्ग में लोगों को पता नहीं था कि घनश्याम दाउ राष्ट्र के लिए क्या कर रहे हैं। न उन्होंनें प्रचारित किया ना ही बताया, बाद की पीढ़ी नें आर्य समाज की परम्परा के मुताबिक स्वर्गवासी व्यक्ति के अवदानों पर चर्चा को औचित्यहीन समझा। उन्हें ना गांव नें समझा और ना ही उनके स्वयं के प्रदेश छत्तीसगढ़ नें जिसकी भाषा को सबसे पहले उन्होंनें ही सी.पी.एण्ड बरार विधान सभा में प्रयोग की अनुमति दी थी। देश के संविधान के निर्माण में सक्रिय योगदान देने वाले घनश्याम सिंह गुप्त के संवैधानिक अवदानों की चर्चा छत्तीसगढ़ में हुई ही नहीं, हुई भी तो बहुत कम हुई।
दुर्ग में मोती सूबेदार के वंश में 22 दिसंबर 1885 को जन्में घनश्याम सिंह गुप्त की प्राथमिक शिक्षा दुर्ग एवं हाईस्कूल की शिक्षा रायपुर में हुई थी। सन 1906 में जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज से उन्होंनें बीएससी की डिग्री गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की। छात्र जीवन से ही उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास होने लगा था, राबर्टसन कॉलेज में लम्बे समय तक चलने वाले हड़ताल का उन्होंनें नेतृत्व किया था। वे हाकी के अच्छे खिलाड़ी भी थे और कालेज हाकी टीम के कैप्टन थे। आगे उन्होंनें सन 1908 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएल बी की उपाधि प्राप्त की फिर गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में फिजिक्स के प्राध्यापक के रूप में सेवा देनें लगे।
वहां से सन् 1910 में वापस आकर दुर्ग में वकालत आरंभ कर दिया। यहां उन्होंनें छत्तीसगढ़ में चल रहे स्वतंत्रता आन्दोंलन में सक्रिय भागीदारी देना आरंभ किया। 1915 में मध्य प्रांत एवं बरार के प्रांतीय परिषद के सदस्य चुने गए और आन्दोंलन में छत्तीसगढ़ के शीर्ष स्वतंत्रता संगा्रम सेनानियों के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभाते रहे। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1921 में उन्होंनें वकालत का परित्याग कर दिया। 1923 से 1926 सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार विधानसभा के निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हुए, 1927-1930 के कार्यकाल में भी आप निर्वाचित हुए और प्रदेश विधान सभा के कांग्रेस दल के नेता चुने गए। इस बीच आप सन् 1926 में दुर्ग नगर निगम के भी अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। सन् 1933 में गांधी जी जब दुर्ग आए तब इनके घर में ठहरे थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में वे कई बार गिरफ्तार किये गए और देश के स्वतंत्र होते तक कई बार लम्बे समय तक जेल की सजा भी काटे।
सन् 1930 में दिल्ली के सेंट्रल असेंबली सदस्य के लिए हुए चुनाव में डॉ. हरिसिंह गौर को हराकर आप सदस्य निर्वाचित हुए जहां सन् वे 1937 तक आपने छत्तीसगढ़ की दमदार उपस्थिति दर्ज की। आपने विधिवेत्ता और आईसीएस वी.एन. राव के साथ सांविधिक कोड के पुनरीक्षण कार्य मे सहयोग किया। बाद में यही बीएन राउ बंगाल हाईकोर्ट के जस्टिस भी बने। केन्द्रीय संसद में इस अवधि में गुप्त जी ने गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट सहित कई महत्वपूर्ण कानूनों का प्रणवन किया जिसमें माल बिक्री अधिनियम, भागीदारी अधिनियम, बाल श्रम निषेध अधिनियम, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, गन्ना अधिनियम, विमान अधिनियम, पेट्रोलियम अधिनियम, मजदूरी भुगतान अधिनियम, आर्य विवाह मान्यता अधिनियम, बीमा अधिनियम आदि प्रमुख है। देश-विदेश के कानूनों का अध्ययन कर भारत के अनुरूप इन सभी कानूनों का ड्राफ्ट स्वयं घनश्याम सिंह गुप्त नें ही तैयार किया है। ये कानून संसद में वाद-विवाद के उपरांत लागू किया गया जो आज भी देश में लागू है। इतिहास के पन्नों पर भी उनके इन अवदानों का उल्लेख है किन्तु हम अनजान बने हुए हैं।
सन् 1937 के अंत में संजारी बालोद से सी पी एंड बरार एसेंबली के चुनाव में जीत कर मेंबर चुने गए जहां आप मध्य प्रांत और बरार विधान सभा के अध्यक्ष मनोनीत किये गए। इस प्रकार से अविभाजित छत्तीसगढ़ के पहले विधान सभा अध्यक्ष आप माने जावेंगें क्योंकि तत्कालीन राज्य में छत्तीसगढ़ का संपूर्ण हिस्सा सम्मिलित था। आप लगातार विभाजित मध्य प्रदेश के गठन एवं प्रथम विधान सभा के अध्यक्ष को चार्ज देते समय तक (सन् 1952) विधान सभा अध्यक्ष बने रहे।
संविधान निर्माण के लिए गठित संविधान सभा के लिए उनका मनोनयन 1939 में किया गया था। जहां वे सन् 1949-1950 तक संविधान सभा के हिंदी समिति के अध्यक्ष और संविधान के हिन्दी अनुवाद विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष रहे। धनश्याम सिंह गुप्त के अवदानों में भारतीय संविधान के हिन्दी अनुवाद संबंधी किए गए कार्य एवं संविधान के अनुच्छेदों पर संशोधनों के लिए संविधान सभा में किए गए बहस महत्वपूर्ण है। उन्हें विश्व के अन्यान्य प्रजातांतित्रक देशों में लागू संविधानों को विषद ज्ञान था। वे जानते थे कि संविधान सभा में संविधान निर्माण के महायज्ञ लिए अपने-अपने हिस्से की आहुति देनें वाले सदस्यों के इस योगदान का प्रभाव कितना दीर्घजीवी होगा। उनके द्वारा संविधान सभा में किए गए बहसों में उनके संवैधानिक ज्ञान एवं देश की जनता के प्रति दायित्व का बोध होता है।
संविधान सभा में वे कितने स्पष्टवादी एवं मुखर थे इसका उदाहरण दिनांक 25.05.1949 को हुए बहस में दृष्टिगत होता है। उस दिन सदन के अध्यक्ष डॉ.राजेन्द्र प्रसाद सदन की कार्यवाही प्रारंभ होने के 10 मिनट देर से पहुंचे। उनके सदन में आते ही गुप्त जी नें कहा कि हम सब अपना घर-द्वार, परिवार, रोजी-रोजगार छोड़कर इस पुनीत कार्य के लिए अपना पल-पल दे रहे हैं, हमें समय का पाबंद होना चाहिए। इस पर डॉ.राजेन्द्र प्रसाद नें अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा कि मैं यहां आ गया था किन्तु सदन से आने में देरी हुई, इसके लिए मैं सदन से माफी मांगता हूं।
संविधान सभा में गुप्त जी के द्वारा किये गए लम्बे एवं उल्लेखनीय बहसों में दिनांक 04.11.1948 को हुए राष्ट्रभाषा के संबंध में उनका वक्तव्य मैं सरल हिंदुस्तानी भाषा को खोज रहा हूं एवं दिनांक 15.11.1948 को संघ और राज्य शब्द के प्रयोग के संबंध में अर्थान्वयन, दिनांक 18.11.1948 को संशोधन के प्रस्तावक के पास संशोधन का अधिकार होता है कि नहीं विषय पर, दिनांक 30.11.1948 को राज्य की परिभाषा के संबंध में एवं दिनांक को 03.12.1948 धर्म के संबंध में, दिनांक 19.05.1949 को अनुच्छेद के शब्द ‘और-या’ का अंतर, दिनांक को 20.05.1949 ‘केवल’ शब्द के प्रयोग, दिनांक 10.09.1949 को इसके बावजूद-बशर्ते कि में अंतर आदि पर गंभीर बहसें एवं संशोधन प्रस्तुत किए गए हैं। इसके अतिरिक्त दिनांक 06.12.1948 को उपराष्ट्रपति से वार्ता एवं दिनांक 17.09.1949 को अनुवाद समिति के गठन पर उनका उद्बोधन देश के लिए धरोहर है। अभी पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय में जयराम नरेश नें आधार कार्ड के संबंध में एक याचिका प्रस्तुत किया था जिसमें संविधान सभा मे घनश्याम सिंह गुप्ता के अंग्रेजी के ओनली शब्द पर किये गए बहस का उल्लेख किया गया था। उस समय देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में घनश्याम सिंह गुप्ता का संदर्भ लगातार आते रहा। उनके सभी अभिभाषण भारत सरकार के द्वारा प्रकाशित संविधान सभा के वाद विवाद खंडों में संग्रहित हैं। गुप्त जी के द्वारा दिनांक 24.01.1950 को संविधान का हिन्दी अनुवाद सदन में राष्ट्रपति को समर्पित किया गया और उसमें सभी सदस्यों नें हस्ताक्षर किये। यह हमारे छत्तीसगढ़ के लिए बहुत गर्व का क्षण था जब इस भू-भाग का एक महापुरूष देश को संविधान का पुष्प अर्पित कर रहा था।
उनके संवैधानिक अवदानों के अतिरिक्त उन्होंनें सन् 1938-40 में हैदराबाद आर्य समाज आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंनें सन् 1944-47 में सिंध प्रदेश में सत्यार्थ प्रकाश के बैन के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया। सन् 1953-55 में भारत सरकार द्वारा जस्टिस एम बी नियोगी कमेटी के सदस्य बनाये गए, जो ईसाई मिशनरीज के द्वारा छलपूर्वक किये जा रहे धर्मानंतरण क्रियाकलापों की जांच के लिए बनाई गई थी। आपने सन 1957 में हुए पंजाब सूबा हिन्दी आंदोलन का भी नेतृत्व किया। आप राजभाषा आयोग, भारत सरकार, के दिनांक 15.11.1961 से 13.06.1964 तक सदस्य भी रहे। आपने सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम का ड्राफ्ट तैयार किया।
इसके अतिरिक्त वे ऑल इंडिया बैकवर्ड कम्युनिटी पूर्णकालिक सदस्य और अध्यक्ष रहे। आप सन् 1961-1965 तक ऑफिशियल लैंग्वेज लेजिस्लेटिव कमीशन, भारत सरकार के सदस्य रहे, जिसमें आधिकारिक रूप से से मूल केंद्रीय कानूनों को हिंदी में अनुवाद किया गया। आप एक्सपर्ट ट्रांसलेशन कमेटी, भारत सरकार के भी सदस्य रहे, जो तकनीकी शब्दों के हिंदीकरण के लिए कार्य करती थी। उस समय मीडिया जगत में सिरमौर हिंदुस्तान समाचार राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी के आप प्रथम अध्यक्ष रहे। रिहैबिलिटेशन फाइनेंसियल एडमिनिस्ट्रेशन कमीशन, भारत सरकार, के 10 साल तक आप स्थाई चेयरमैन रहे, जो पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थियों के आर्थिक पुनर्वास से संबंधित था।
इसके साथ ही आप सार्वदेशिक भाषा स्वतंत्र समिति के अध्यक्ष रहे, इस समिति ने हिंदी के लिए ऐतिहासिक आंदोलन किया। आप विलेज बोर्ड ऑफ रायपुर डिवीजन के भी 1955 से 1957 तक चेयरमैन रहे। आप आर्य प्रतिनिधि सभा के सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार प्रदेश के लगभग 30 वर्ष तक अध्यक्ष रहे। आपने छत्तीसगढ़ में नारी शिक्षा का अलख जगाया जिसके लिए आपने दुर्ग में तुला राम आर्य कन्या शाला का संचालन आरंभ किया। आप सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा जो आर्य समाजियों का वैश्विक प्रतिनिधित्व करता है के 1938 से कई वर्षो तक अध्यक्ष रहे। आपकी मृत्यु 13 जून 1976 को हुई। वे संसदीय परम्परा और विधि-विधाई कार्यवाहियों के मानक सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता थे। यह बड़ी विडंबना है कि विधान-सभा के रूप में अब सी.पी.एण्ड बरार का अस्तित्व नहीं है परन्तु भौतिक रूप से छत्तीसगढ़ का यह संपूर्ण भू-भाग उसी सी.पी.एण्ड बरार विधान-सभा का अंग रहा जिसके वे पहले स्पीकर थे। सी.पी.एण्ड बरार विधान-सभा पहले दो प्रदेश क्रमश: महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में विभाजित हुआ। सी.पी.एण्ड बरार से विधि-विधाई मंत्रों से अभिमंत्रित कुर्सियां मध्य प्रदेश होते हुए छत्तीसगढ़ विधान सभा में जमा दी गई किन्तु इस विधाई व्यवस्था के लिए मंगलाचरण पढ़ने वाले धनश्याम सिंह गुप्त छत्तीसगढ़ विधान सभा में आज भी अनचिन्हार हैं।
साभार : आरंभ