Saturday, 15 March 2025

रायपुर। बस्तर में नक्सल संगठन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। अभी अंदर से जो रिपोर्ट आ रही है उससे सुरक्षा बलों की बांछे खिल गई हैं। दरअसल नक्सल संगठन में दरार की सूचना मिल रही है। इस दरार की वजह है नक्सल कमांडर हिड़मा का प्रमोशन। हिड़मा बस्तर का स्थानीय आदिवासी है जबकि नक्सल संगठन में बड़े पदों पर हमेशा आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के नक्सली काबिज होते रहे।
बस्तर के आदिवासी नक्सली फोर्स में सिर्फ लड़ाई के लिए ही रखे जाते थे। 2010 में नक्सलियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और स्थानीय नेतृत्व को मौका देना शुरू किया। हिड़मा का यहीं से उदय हुआ। वह ऐसा कमांडर है जिसकी कोई तस्वीर फोर्स के पास नहीं है।
हिड़मा सुकमा-बीजापुर इलाके में सक्रिय नक्सलियों की पहली बटालियन का कमांडर है। वह साउथ सब जोनल कमेटी का भी हेड है। अब उसे केंद्रीय पालित ब्यूरो में लिए जाने की सूचना है। यही नक्सलियों के बीच दरार की वजह बताई जा रही है।
खुफिया सूत्रों की मानें तो हिड़मा के प्रमोशन से आंध्र के नक्सल कमांडरों में असंतोष है। उन्हें लगता है कि हिड़मा को वामपंथी क्रांति और राजनीति के बारे में उतनी जानकारी नहीं है कि उसे बुद्धिजीवी माना जाए। वह लड़ाका भले ही बड़ा है। इस मुद्दे पर लगातार असंतोष से नक्सलियों के बीच आपसी संघर्ष शुरू हो सकता है। पुलिस इस पर नजर बनाए हुए है।
गांजा की खेती में जुटे स्थानीय नक्सली
खुफिया रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि जगरगुंडा इलाके में नक्सली गांजे की खेती कर रहे हैं। बड़े नक्सली नेताओं और छोटे कैडर के बीच तालमेल का अभाव है। छोटे नक्सली अपने नेताओं की बात नहीं मान रहे हैं और मनमानी उगाही की जा रही है।
पैसे के वितरण को लेकर भी आपस में मतभेद की खबरें हैं। इन स्थितियों में यह आसार बन गए हैं कि नक्सली गुटों में बदलकर आपस में लड़ाई शुरू कर सकते हैं। पुलिस इन सूचनाओं के आधार पर नजर बनाए हुए है। अगर नक्सल संगठन में दरार आई तो इसका सीधा फायदा फोर्स को मिलेगा।
बस्तर में अब तक संगठित रहा है नक्सलवाद
बस्तर में नक्सली क्रांति करने नहीं आए थे। नक्सलबाड़ी और तेलंगाना के वारंगल इलाके में जब फोर्स का दबाव बढ़ा तब नक्सली बस्तर के जंगलों में छिपने आए थे। यहां उन्होंने स्थाई ठिकाना बनाया और बड़ी फोर्स खड़ी की। बस्तर में नक्सली बेहद अनुशासित और संगठित रहे हैं।
पदानुक्रम के मुताबिक आदेश का पालन करने की परंपरा रही है। यही वजह है कि यहां चालीस साल से हरसंभव प्रयास करने के बाद भी नक्सलवाद खत्म नहीं किया जा सका है। अब जबकि नक्सलियों में फूट की खबरें हैं तो इसका फायदा फोर्स को मिल सकता है।

रायपुर। चेक बाउंस के दो मामले में 11 साल तक चली सुनवाई के बाद आखिरकार कोर्ट ने पीड़ित को राहत दी है। बलौदाबाजार निवासी आरोपित राइस मिलर रमेश केडिया को कोर्ट ने छह-छह महीने की सजा तथा 2.70, 2.70 लाख रुपये के जुर्माने से दंडित किया है।
न्यायालीयन सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2007 में राजा तालाब निवासी बृजमोहन सिंह चावला, रणवीर सिंह चावला से संबंधों के आधार पर सेठ बंशीधर केडिया राइस प्रोसेसिंग प्लांट के संचालक रमेश केडिया ने ढाई-ढाई लाख रुपये उधार लिया था। 8 दिसम्बर 2007 को उधार की रकम चुकाने रमेश ने दो चेक दोनों को थमाए थे, जो बैंक में जमा करने पर खाते में पर्याप्त रकम न होने पर बाउंस हो गए। बृजमोहन व रणवीर ने अपने अधिवक्ता राजेश भावनानी के माध्यम से लीगल नोटिस भेजा, लेकिन रमेश ने पैसे का भुगतान नहीं किया तब परेशान होकर पीड़ितों ने वर्ष 2008 में कोर्ट में परिवाद पत्र दाखिल किया। इस दौरान रमेश ने कई आपत्तियां लगाई, जिससे प्रकरण सत्र न्यायालय तक गया और पुनः वापस न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी श्रीमती संजूलता देवांगन के समक्ष आया। कोर्ट में दोनों पक्षों के साथ बैंक मैनेजरों का बयान दर्ज करने के बाद जज संजूलता देवांगन ने विभिन्ना न्याय दृष्टांतों का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया कि आरोपी रमेश केडिया को उधार की रकम चेक से प्राप्त हुई थी और उसके द्वारा जो चेक जारी किया गया वह बैंक में बाउंस हुआ है। पीड़तों द्वारा पेश किए गए साक्ष्‌य से संपूर्ण प्रकरण प्रमाणित होता है। अंतः धारा 138 का दोष रमेश केडिया पर सिद्ध होता है। लिहाजा छह-छह माह की सजा के साथ ही आरोपी को 2.70 लाख, 2.70 लाख रुपये से दंड़ित किया जाता है। जुर्माने की रकम का भुगतान न करने पर आरोपी को दो माह अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी।

रायपुर । बीजेपी सांसद रमेश बैस का एक बड़ा सामने आया है । सांसद बैस ने आज कहा कि वे लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं । अगर टिकट नहीं मिली तो वे एक कार्यकर्ता की तरह की काम करेंगे । अब तक सियासी गलियारों में सांसद रमेश बैस को लेकर ख़बरें थीं कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे । आज इस बात का भी पटाक्षेप हो गया है ।
सांसद रमेश बैस ने लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है । उन्होंने कहा है कि पार्टी ने अब तक जो भी आदेश दिया है वे उनका पालन करते आये हैं । मगर उन्होंने साफ कह दिया है कि वे टिकट नहीं मांगेंगे । पार्टी टिकट देगी तो वे चुनाव जरूर लड़ेंगे । टिकट नहीं मिलने पर भी उन्हें कोई असंतोष नहीं होगा । वे आगे एक पार्टी कार्यकर्ता की तरह कार्य करते रहेंगे ।

रायपुर। केंद्र की मोदी सरकार ने सरकारी खरीदी के लिए जो जेम पोर्टल बनाया है उससे छत्तीसगढ़ के सरकारी विभाग अब सामग्री क्रय नहीं कर पाएंगे। राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में निर्णय लिया गया है कि जेम से पहले प्रदेश में जो व्यवस्था लागू थी उसे ही दोबारा लागू किया जाएगा। सरकार छत्तीसगढ़ भंडार क्रय नियम 2002 में संशोधन करेगी और प्रदेश स्तर पर सरकारी खरीदी के लिए एक अलग पोर्टल बनाएगी।
जब तक पोर्टल बन नहीं जाता है तब तक सीएसआईडीसी के माध्यम से खरीदी की जाएगी। कैबिनेट की बैठक के बाद मंत्री मोहम्मद अकबर ने बताया कि सरकार का उद्देश्य है कि स्थानीय उद्योगों का मदद मिले और ज्यादातर सरकारी खरीदी स्थानीय स्तर पर ही हो। इसीलिए अलग पोर्टल बनाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि नया पोर्टल तैयार होने में चार-छह महीने का वक्त लगेगा। तब तक सीएसआईडीसी से जैसे जेम के पहले खरीदी होती थी वैसे ही अब भी होगी।
सीधी भर्ती में कोरबा भी शामिल-
राज्य सरकार पहले से ही बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी बहुल जिलों में तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की सीधी भर्ती स्थानीय स्तर पर करती रही है। अब सरगुजा और बस्तर संभाग के अलावा कोरबा जिले में भी सीधी भर्ती की जाएगी। राज्यपाल ने इस संबंध में जो अध्यादेश जारी किया है उसे दो साल के लिए आगे बढ़ाया जाएगा।
भूमि डायवर्सन की अलग प्रक्रिया बनेगी-
मंत्री ने बताया कि प्रदेश में भूमि डायवर्सन की प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाएगा। भूमि के डायवर्सन के लिए कई प्रकार की अनुमति की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया को सरल कर नया फार्मूला बनाया जा रहा है। कैबिनेट की बैठक में प्रदेश में बिजली बिल हाफ करने पर कोई चर्चा नहीं हुई।

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