Thursday, 21 November 2024

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की मासिक शिवरात्रि से शुरू होकर सोमवती अमावस्या तक रहेगा। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के संस्कृत साहित्याचार्य महेन्द्र कुमार पाठक के मुताबिक ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को माह की शिवरात्रि होगी। जोकि अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार 1 जून की तारीख है। इस क्रम में रविवार को 14 तारीख के बाद 3 जून को अमावस्या होगी। उसी दिन सोमवती अमावस्या और वट सावित्री व्रत पूरा होगा।
वट में रहता है इनका वास
महेंद्र कुमार पाठक के अनुसार 3 जून को सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति के जीवन के लिए बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या की थी। और वट के वृक्ष ने सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा ताकि जंगली जानवर शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सके। इसलिए इसे वट सावित्री व्रत कहा जाने लगा। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसमें हल्दी लगा कच्चा सूत लपेटते हुए उसकी 11, 21, 108 बार परिक्रमा की जाती है। साथ ही 11, 21 और 108 की संख्या में ही वस्तुएं भी अर्पित की जाती हैं। उन्होंने बताया कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है। इसलिए उसका पूजन कल्याणकारी होता है।
महिलाएं पहनती हैं शादी का जोड़ा
रहीनगर के कृष्णदेव चतुर्वेदी की पत्नी सुदामा ने बताया कि बीते 37 साल से वह लगातार वट सावित्री व्रत रख रही हैं। उस दिन वह शादी का जोड़ा पहनकर पूजन अनुष्ठान करती हैं। उनका विवाह 1981 में हुआ था। वह हर साल अलग-अलग वस्तुओं का संकल्प लेकर वटवृक्ष को अर्पित करती हैं। अब तक वह पान, धान, केला, मीठा बताशा, अंगूर आदि अर्पित कर चुकी हैं।
यह है सर्वार्थ सिद्धि योग का महत्व
सर्वार्थ सिद्धि योग एक शुभ और मंगल योग है, जो निश्चित वार और ग्रह नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह सभी योग में एक बहुत ही शुभ समय है जो कि ग्रह नक्षत्र के आधार पर गणना करता है। यह योग सभी इच्छाओं तथा मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। इस योग में पूजापाठ करने और दान करने का विशेष महत्व है। साथ ही इस योग में पूजा करने से पितृ दोष दूर होता है और सभी कार्यों में आपको विशेष सफलता प्राप्‍त होती है।

वेबडेस्क:- अगर आपका बच्चा पढ़ता तो बहुत है लेकिन इसके बाद भी एग्जाम में उसके नंबर कम आते हैं तो शास्त्रों के अनुसार उसे पढ़ने के साथ ही एक खास मंत्र का जाप करने की भी आवश्यकता है। बच्चा अगर प्रतिदिन माता सरस्वती की पूजा करने के साथ ही इस मंत्र का जाप करें तो इससे विद्याध्ययन में आ रही रूकावटें दूर होती हैं और बच्चे का मन पढ़ाई में लगने लगता है। इसी के साथ इससे बच्चे की याददाश्त भी तेज होती है, आइए जानते हैं इस सरस्वती मंत्र के बारे में
सरस्वती मंत्रः-
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।
या ब्रह्माच्युत्त शंकरः प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता ।
सा माम पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्या पहा ।।
मंत्र का अर्थ :-
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके, हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें और हमें विधा और बुद्धि प्रदान करें।
  

 
गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की सभी तैयारी पूर्ण कर ली गई है। अक्षय तृतीया के पर्व पर शुभ मुहूर्त में विधिवत पूजा अर्चना के बाद आज वैदिक मंत्रोचारण के साथ 11:30 पर गंगोत्री व 1:15 मिनट पर यमुनोत्री धाम के कपाट देश विदेश के श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये जायेंगे। जहां आगामी छह माह तक श्रद्धालु मां गंगा व यमुना के दर्शन कर सकेंगे। मंगलवार को मां गंगा की डोली गंगोत्री धाम पहुंच चुकी है। जबकि मां यमुना की डोली खरसाली से यमुनोत्री धाम के लिए रवाना हो रही है।
इससे पहले छह माह तक अपने शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव में निवास करने के बाद सोमवार को मां गंगा की डोली अपने शीतकालीन प्रवास स्थल गंगोत्री धाम के लिए रवाना हो गई थी। डोली को पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ सवा मन (50 किलो) का कलेऊ, स्थानीय पकवान देकर दोपहर 12:35 पर मुखबा के ग्रामीणों ने मां गंगा को विदाई दी। सोमवार सुबह विशेष पूजा अर्चना और आरती के बाद गंगा की उत्सव डोली को सजाया गया। इसके बाद तय मुहूर्त के अनुसार 12:35 पर मां गंगा की उत्सव डोली आर्मी बैंड की धुन पर मुखबा से गंगोत्री धाम के लिए रवाना हुई। गंगा की डोली यात्रा में मुखबा के साथ ही धराली, हर्षिल समेत उपला टकनौर के ग्रामीणों तथा कई तीर्थयात्रि शामिल हुए। मार्कण्डेय पुरी स्थित दुर्गा मंदिर में पहुंचने के बाद मां गंगा के साथ भक्तों ने अल्प विश्राम किया। मुखबा के प्राचीन पैदल यात्रा पथ से होते हुए डोली शाम को भैरों घाटी पहुंची।
चारधाम यात्रा के पहले धाम यमुनोत्री के लिए मां यमुना की डोली शनिदेव की अगुवाई में मंगलवार (आज) अपने शीतकालीन प्रवास खरसाली से सुबह 9 बजे यमुनोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी। जो दोपहर 11 बजे यमुनोत्री मंदिर पहुंचेगी। जहां विधिवत पूजा अर्चना एवं हवन के बाद दोपहर 1:15 बजे यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इसके साथ ही प्रदेश में मंगलवार को चारधाम यात्रा का विधिवत शुरू हो जायेगी।

 
 
7 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है. इस तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का भी जन्म हुआ था. परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे. परशुराम भगवान शिव के परमभक्त होने के साथ न्याय के देवता भी माने जाते हैं. उन्होंने क्रोध में न सिर्फ 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया बल्कि भगवान गणेश भी उनके गुस्से का शिकार हो चुके हैं. आइए जानते हैं परशुराम से जुड़ी ऐसी ही 5 खास बातें जो शायद ही अब तक आपने कभी सुनी होंगी.ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, परशुराम एक बार भगवान शिव से मिलने उनके कैलाश पर्वत पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें रास्ते में ही उऩके पुत्र भगवान गणेश ने रोक दिया. इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था. जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाए. त्रेतायुग में सीता स्वयंवर के दौरान टूटने वाला धनुष भगवान परशुराम का ही था. अपने धनुष के टूटने से क्रोधित परशुराम का जब लक्ष्मण के साथ संवाद हुआ तो भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंप दिया था. यह वहीं सुदर्शन चक्र था जो द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पास था । 
महाभारत से जुड़ीं प्रचलित कथाओं के अनुसार भीष्म पितामह परशुराम के ही शिष्य थे. एक बार जब भीष्म ने अपने छोटे भाई से विवाह करवाने के लिए काशीराज की तीनों बेटियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण कर लिया. लेकिन जब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती हैं, तो भीष्म ने उसे छोड़ दिया. लेकिन शाल्व ने अंबा के हरण होने के बाद उससे विवाह करन से इंकार कर दिया. अंबा ने जब यह बात परशुराम को बताई तो उन्होंने भीष्म को उससे विवाह करने का आदेश दिया. लेकिन आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रतिज्ञा लेने वाले भीष्म ने ऐसा करने से मना कर दिया. जिसके बाद परशुराम और भीष्म के बीच युद्ध हुआ. हालांकि बाद में अपने पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए थे । 
भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा के बाद अपनी मां का वध कर दिया था. जिसकी वजह से उन्हें मातृ हत्या का पाप भी लगा. उन्हें अपने इस पाप से मुक्ति भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद मिली. भगवान शिव ने परशुराम को  मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, यही वजह थी कि वो बाद में परशुराम कहलाए.एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना समेत भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनी के आश्रम पहुंचा. मुनि ने अपनी कामधेनु गाय के दूध से पूरी सेना का स्वागत किया लेकिन सहस्त्रार्जुन ने लालचवश मुनि की चमत्कारी कामधेनु को अपने बल का प्रयोग कर छीन लिया. जिसके बाद परशुराम ने इस बात का पता लगते ही सहस्त्रार्जुन को मौत के घाट उतार डालासहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने परशुराम से बदला लेने के लिए उनके पिता का वध कर दिया. जिसके बाद उनकी मां भी अपने पति के वियोग में उनकी चिता पर ही सती हो गईं. मां और पिता की मौत से गुस्साए परशुराम ने शपथ ली कि वह धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर देंगे. उन्होंने एक या दो बार नहीं बल्कि पूरे 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की । 
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