पब्लिकयूवाच - रायपुर । वट सावित्री ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है. पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं. इस बार अमावस्या का व्रत 22 मई को है. हिंदू पंचांग के अनुसार जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती भी मनाई जाती है. अमावस्या तिथि 21 मई को अमावस्या लगेगी और 22 मई को अमावस्या रहेगी।
कहा जाता है कि वट सावित्री के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की थी. सावित्री से प्रसन्न होकर यमराज ने चने के रूप में सत्यवान ने प्राण सौपे थे चने लेकर सावित्री सत्यवान के शव के पास आई और सत्यवान में प्राण फूंक दिए इस तरह सत्यवान जीवित हो गए तभी से वट सावित्री के पूजन में चना पूजन का नियम है. वट वृक्ष को दूध और जल से सीखना चाहिए. वट सावित्री के दिन महिलाएं सुबह सवेरे स्नान करके पूजन श्रृंगार करती हैं।
बरगद के पेड़ की विशेष पूजा
वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्व अधिक है. धार्मिक मान्यता के अनुसार सनातन संस्कृति में ऐसा माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है. इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर उसमें कुमकुम अक्षत लगाती हैं. पेड़ में मौली लिपटी जाती है. विधि विधान के साथ वट वृक्ष की पूजा की जाती है ऐसा करने से उन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ऐसे रखा जाता है वट सावित्री का व्रत
महिलाओं के द्वारा वट सावित्री व्रत त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ हो जाता है. हालांकि कुछ महिलाएं केवल अमावस्या के दिन व्रत रखती हैं. इस दिन वट वृक्ष की पूजा के साथ-साथ सावित्री सत्यवान की पौराणिक कथा को भी सुना जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि सावित्री वट सावित्री के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था. इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा।
वट सावित्री व्रत तिथि और मुहूर्त
वट सावित्री अमावस्या तिथि 22 मई 2020 शुक्रवार हो है. अमावस्या तिथि प्रारंभ 21 मई को रात्रि 9:35 से अमावस्या तिथि समाप्त 22 मई 2020 को रात्रि 11:08 तक है।
कैसे करें पूजा
व्रत के पूजन के लिए थाली में प्रसाद, जिसमें गुड़, भीगा चना, आटे से बनी मिठाई, कुमकुम, रोली, मौली, फल, पान का पत्ता, धूप, घी का दिया, लें एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा लेकर बरगद के पेड़ के बैठें. इसके बाद सबसे पहले बरगद के पेड़ के जड़ पर जल चढ़ाना चाहिए और फिर धूप, दीप जलाये इसके बाद इसकी परिक्रमा करनी चाहिए और कच्चे धागे से और मौली धागे को 7 बार बांधे और प्रार्थना करें फिर पति के पैर धोकर आशीर्वाद ले।