Thursday, 21 November 2024

रायपुर । नवरात्रि महापर्व पर माता रानी की पूजा अर्चना करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में बताए गए मां के 9 स्वरूपों का अपना एक विशेष महत्व होता है. आज नवरात्रि के छठवें दिन मां नव दुर्गा के कात्यानी स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है. धार्मिक पुराणों के अनुसार देवी मां ने महिषासुर का मर्दन किया था. देवी कात्यायनी की पूजा करने से मन की शक्ति मजबूत होती है और साधक इन्द्रियों को वश में कर सकता है  । 
मां कात्‍यायनी की पूजा विधि
नवरात्रि के छठे दिन यानी कि षष्‍ठी को स्‍नान कर लाल या पीले रंग के वस्‍त्र पहनें.
 सबसे पहले घर के पूजा स्‍थान नया मंदिर में देवी कात्‍यायनी की प्रतिमा या चित्र स्‍थापित करें.
 अब गंगाजल से छिड़काव कर शुद्धिकरण करें.
अब मां की प्रतिमा के आगे दीपक रखें
 अब हाथ में फूल लेकर मां को प्रणाम कर उनका ध्‍यान करें.
 इसके बाद उन्‍हें पीले फूल, कच्‍ची हल्‍दी की गांठ और शहद अर्पित करें.
धूप-दीपक से मां की आरती उतारें.
 आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित कर स्‍वयं भी ग्रहण करें.
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

एक बार भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए काशी पहुंच गए। वहां पर भगवान शिव अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे। उसी समय पार्वती ने पीछे से आकर अपने हाथों से भगवान शिव की आंखों को बंद कर दिया। ऐसा करने पर उस पल के लिए पूरे संसार में अंधेरा छा गया। दुनिया को बचाने के लिए शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे संसार में पुनः रोशनी बहाल हो गई।
दूसरी तरफ तीसरी आंख खुलने से पैदा हुई गर्मी से पार्वती को पसीना आ गया। उस पसीने की बूंदों से एक बालक प्रकट हुआ। उस बालक का मुंह बहुत बड़ा और भंयकर था। बालक को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से उसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा। शिव ने बताया कि चूंकि उसकी उत्पत्ति तुम्हारे पसीने से हुई है इसलिए यह हमारा पुत्र है। अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से उसका नामअंधक रखा गया।
कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष ने भगवान शिव से पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। तब शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया। अंधक ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि 'वह तभी मरे जब वो यौन लालसा से अपनी मां की और देखे।' अंधक ने सोचा था कि ऐसा कभी नहीं होगा क्योकि उसकी कोई मां ही नहीं है। वरदान मिलने के बाद अंधक देवताओं को परास्त करके तीनों लोकों का राजा बन गया।
फिर उसने विवाह करने का विचार किया। तय किया कि वह तीनों लोकों की सबसे सुन्दर स्त्री से विवाह करेगा। उसे पता चला कि तीनों लोकों में पर्वतों की राजकुमारी पार्वती से सुन्दर कोई नहीं है। जिसने अपने पिता का वैभव त्याग कर शिव से विवाह कर लिया है। वह तुरंत पार्वती के पास गया और उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। पार्वती के मना करने पर वह पार्वती को जबरदस्ती ले जाने लगा तो देवी ने शिव का आह्वान किया।
पार्वती के आह्वान पर शिव वहां उपस्थित हुए और उन्होंने अंधक को बताया कि तुम पार्वती के ही पुत्र हो। ऐसा कहकर उन्होंने अंधक का वध कर दिया।
विशेष
वामन पुराण की कथा में अंधक शिव-पार्वती का पुत्र बताया गया है जिसका वध शिव करते है। एक अन्य मतानुसार अंधक, कश्यप ऋषि और दिति का पुत्र था जिसका वध शिव ने किया था।

 
 
वेबडेस्क :- श्रावण माह के पहले सोमवार पर आज 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. सोमवार तड़के सुबह तीन बजे भगवान महाकालेश्वर का दूध-दही से अभिषेक किया गया, जिसके बाद विधि-विधान से पंडे-पूजारियों ने महाकाल की भस्म आरती की. खास बात है कि आज डेढ़ घंटे पहले ही महाकाल की आरती की गई.श्रावण में शिव भक्ति और आराधना की विशेष महत्व है. ऐसे में श्रावण के पहले सोमवार पर हजारों की तादात में श्रद्धालु विश्व प्रसिद्ध उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर पहुंचे. देर रात 12 बजे से ही महाकाल के दर्शन के लिए भक्तों की लाईन लगना शुरू हो गई.सुबह ढाई बजे महाकालेश्वर के गर्भगृह के पट खोले गए, जिसके बाद श्रद्धालुओं ने महाकाल को जल चढ़ाया. पंडे-पुजारियों ने दुध, दही, पंचामृत, दृव्य प्रदार्थ, फलों के रस से महाकाल का अभिषेक किया. महानिर्वाणी अखाड़े के प्रतिनिधि द्वारा विधि-विधान महाकालेश्वर की भस्म आरती की गई, जिसके बाद महाकालेश्वर का आकर्षक श्रंगार किया गया.इस दौरान श्रद्धालु भोले की भक्ति में लीन हो गए और महाकाल के जयकारों से मंदिर परिसर गूंज उठा. पंडे-पुजारियों ने ढोल-नगाडों के साथ महाकाल की श्रंगार आरती की और फिर श्रद्धालुओं के दर्शन करने का सिलसिला शुरू हो गया. अब दिनभर देश भर से आए सैकड़ों श्रद्धालु महाकाल के दर्शन कर आशिर्वाद लेंगे. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर प्रशासन ने विशेष प्रबंध किए है । 
इसके अलावा सावन के पहले सोमवार पूरी की पूरी काशी नगरी शिवमय हो गई. न केवल पूर्वांचल बल्कि देश और विदेश के कोने-कोने से शिवभक्त बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए जुट गए.बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए कांवडियां देर रात से ही गंगा स्नान करके विश्वनाथ के दर्शन के लिए कतार में लग गए. अनुमान लगाया जा रहा है कि आज सावन के पहले सोमवार लगभग दो लाख से दर्शनार्थी बाबा काशी विश्वनाथ का दर्शन करेंगे.सावन के पहले सोमवार के दर्शन के मद्देनजर बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में पूरी तरह से तैयारियों के दावे भी किए जा रहें हैं, जिसमें श्रद्धालुओं के लिए हवा-पानी से लेकर फ्री लॉकर और दवा के अलावा पहली बार चार गेट से इंट्री की बात बताई गई.पहली बार बाबा काशी विश्वानाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का प्रवेश गर्भगृह में रोका गया है और झांकी दर्शन की व्यवस्था की गई है, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके । 

 
 वेबडेस्क । हिंदू धर्म में नवरात्रि का काफी ज्यादा महत्व है. इस दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. साल में कुल 4 नवरात्र पड़ते हैं जिसमें से ज्यादातर लोग 2 नवरात्र के बारे में जानते हैं. इनमें पहली नवरात्र चैत्र महीने में आती है जिसे वासंतिक नवरात्र कहते हैं और दूसरी आश्विन माह में आती है जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं. लेकिन इन दोनों नवरात्रियों के अलावा दो नवरात्रि और भी है जिनका काफी महत्व बताया गया है. इन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. इनमें से पहला गुप्त नवरात्र माघ महीने के शुक्ल पक्ष में और दूसरा आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।
इस साल की दूसरी गुप्त नवरात्रि आज यानी 3 जुलाई से शुरू हो गई है और 10 जुलाई तक चलेगी. बता दें इस नवरात्रि में मां भगवती के गुप्त स्वरूपों की पूजा होती है इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. ये नवरात्रि तंत्र विद्या को मानने वाले लोगों के लिए काफी खास होती है.  मान्यता है कि इन दिनों तांत्रिक प्रयोगों का फल मिलता है और धन प्रात्ति के रास्ते खुलते हैं।
कैसे होती है पूजा
गुप्त नवरात्रि में भी बाकी दोनों नवरात्रियों की तरह कलश स्थापना होती है और 9 दिनों तक व्रत का संकल्प लिया जाता है. तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले लोग इन महाविद्दाओं की पूजा करते हैं जिनमें मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी जैसी देवियां शामिल है।
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