एक बार देवी पार्वती ने देवों के देव महादेव से पूछा, ऐसा क्यों है कि आप अजर-अमर हैं लेकिन मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर, फिर से बरसों तप के बाद आपको प्राप्त करना होता है? आपके अमर होने के रहस्य क्या हैं? महादेव ने पहले तो देवी पार्वती के उन सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझा, लेकिन पार्वती के हठ के कारण कुछ गूढ़ रहस्य उन्हें बताने पड़े।
शिव महापुराण में मृत्यु से लेकर अजर-अमर तक के कई प्रसंग हैं, जिनमें एक साधना से जुड़ी अमरकथा बड़ी रोचक है। जिसे भक्तजन अमरत्व की कथा के रूप में जानते हैं। हर वर्ष हिम के आलय (हिमालय) में अमरनाथ, कैलाश और मानसरोवर तीर्थस्थलों में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। सैकड़ों किमी की पैदल यात्रा करते हैं, क्यों? यह विश्वास यूं ही नहीं उपजा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमरनाथ की गुफा ही वह स्थान है जहां भगवान शिव ने पार्वती को अमर होने के गुप्त रहस्य बतलाए थे, उस दौरान उन दो ज्योतियों के अलावा कोई तीसरा प्राणी वहां नहीं था। न महादेव का नंदी और न हीं उनका नाग, न सिर पे गंगा और न ही गणपति या फिर कार्तिकेय...!
गुप्त स्थान की तलाश में महादेव ने अपने वाहन नंदी को सबसे पहले छोड़ा, नंदी जिस जगह पर छूटा, उसे ही पहलगाम कहा जाने लगा। अमरनाथ यात्रा यहीं से शुरू होती है। यहां से थोड़ा आगे चलने पर शिवजी ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग कर दिया, जिस जगह ऐसा किया वह चंदनवाड़ी कहलाती है। इसके बाद गंगा जी को पंचतरणी में और कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा।
अमरनाथ यात्रा में पहलगाम के बाद अगला पड़ाव है गणेश टॉप। मान्यता है कि शिव ने एकांत की तलाश में इसी स्थान पर अपने पुत्र गणेश को छोड़ा था। इस जगह को महागुणा का पर्वत भी कहते हैं। इससे आगे महादेव ने पिस्सू नामक कीड़े को भी त्यागा था। जहां पिस्सू को त्यागा था, उस जगह को पिस्सू घाटी कहा जाता है।
इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को स्वंय से अलग किया। इसके पश्चात पार्वती संग एक गुफा में महादेव ने प्रवेश किया। कोई तीसरा प्राणी, यानी कोई कोई व्यक्ति, पशु या पक्षी गुफा के अंदर घुसकर कथा को न सुन सके इसलिए उन्होंने चारों ओर अग्नि प्रज्जवलित कर दी। फिर महादेव ने जीवन के गूढ़ रहस्य की कथा शुरू कर दी।
कहा जाता है कि कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई। महादेव को यह पता नहीं चला, वह सुनाते रहे। उस समय दो सफेद कबूतर कथा सुन रहे थे और बीचबीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। महादेव को लगा कि पार्वती सुन रही हैं। दोनों कबूतर सुनते रहे। कथा समाप्त होने पर महादेव का ध्यान पार्वती पर गया तो उन्हें पता चला कि वे तो सो रही हैं। तो कथा सुन कौन रहा था?
उनकी दृष्टि तब उन कबूतरों पर पड़ी तो महादेव को क्रोध आ गया। वहीं कबूतर का जोड़ा उनकी शरण में आ गया और बोला, भगवन् हमने आपसे अमरकथा सुनी है। यदि आप हमें मार देंगे तो यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर महादेव ने उन्हें वर दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव व पार्वती के प्रतीक की तरह निवास करोगे।
अंततः कबूतर का यह जोड़ा अमर हो गया और यह गुफा अमरकथा की साक्षी हो गई। इस तरह इस स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा। मान्यता है कि आज भी इन दो कबूतरों के दर्शन भक्तों को होते हैं। यहां हर वर्ष इन्हीं दिनों निर्मित होने वाला शिवलिंग किसी आश्चर्य से कम नहीं है।