रायपुर। ''अच्छे संस्कार आदमी को कभी भी अंधेरे की ओर नहीं जाने देते, अच्छे संस्कार हमेशा आदमी को उजाले की तरफ लेकर जाते हैं। जिंदगी में जितनी जरूरत शिक्षा की होती है, उतनी ही जरूरत संस्कारों की हुआ करती है। हम सबने यह पढ़ा और जाना है कि राम-कृष्ण-महावीर बचपन में गुरुकुल जाया करते थे, वहां उन्हें शिक्षा और दीक्षा दोनों दी जाती थी। जीवन में शिक्षा के साथ दीक्षा अर्थात् संस्कारों की महती आवश्यकता होती है। संस्कार ही वो पूंजी होती है जो आदमी के बुढ़ापे तक काम आती है, संस्कार वो पूंजी होती है जो उसके दादा-दादी के, माता-पिता के काम आती है। संस्कार वो पूंजी होती है जो आदमी के पग-पग पर काम आती है।'' ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत परिवार सप्ताह के चतुर्थ दिवस गुरुवार को 'क्यों जरूरी है कार से पहले संस्कार' विषय पर व्यक्त किए। राष्टÑसंत चंद्रप्रभजी द्वारा परिवार की खुशिहाली के राज पर रचित भजन 'चलो हम ऐसा वृक्ष लगाएं, जिसकी शीतल छाया में हम खुशियों को महकाएं...' का गायन करते हुए संतप्रवर ने श्रद्धालुओं को घर में बच्चों-बड़ों को सुसंस्कारों के सृजन की प्रेरणा दी। संतप्रवर ने आगे कहा कि हमें अपने घर में सुख का ऐसा वृक्ष लगाना चाहिए कि उसकी छाया पड़ोसी के घर तक भी जाए। आज के विषय- क्यों जरूरी है कार से पहले संस्कार पर श्रद्धालुओं का ध्यान केंद्रित करते हुए उन्होंने 'हमारी कार-संस्कार' इसे तीन बार बोलकर दुहराने का अनुरोध किया। जिंदगी सांप-सीढ़ी के खेल की तरह संतश्री ने कहा कि जिंदगी तो सांप-सीढ़ी के खेल की तरह है। जीवन में हमेशा यह बोध हमेशा बनाए रखें कि संस्कार उस सांप-सीढ़ी के खेल के सीढ़ी की तरह है जो हमेशा ऊपर ले जाया करती है और गलत आदतें उस सांप की तरह है जो आदमी को हमेशा नीचे गर्त में ले जाया करता है। अंतिम चरण में जाकर भी यदि जीवन में गलत आदतों का सांप यदि पलता रहा तो आदमी ऊपर जाकर सीधा वापस धड़ाम से नीचे गिर जाता है। लिबास बदलोगे तो चेहरा सुंदर लगेगा और पसीना बहाओगे तो जिंदगी सुंदर हो जाएगी। संस्कारों की जरूरत है जन्म से लेकर मृत्यु तक संतप्रवर ने कहा कि संस्कारों की हमारे जिंदगी में पग-पग पर जरूरत है। हमारे यहां तो गर्भ को भी संस्कार माना गया। जन्म, विवाह और यहां तक कि मृत्यु को भी संस्कार माना गया। जन्म से लेकर मृत्यु तक आदमी को संस्कारों की जरूरत होती है। वे माता-पिता अधम होते हैं जो अपने बच्चों को जन्म देकर भाग्य के भरोसे छोड़ देते हैं, वे माता-पिता मध्यम होते हैं जो अपने बच्चों को जन्म से लेकर बहुत सारी सुविधाएं देते हैं। जितना आप बच्चों की शिक्षा और उनकी सुविधाओं के सजग हैं, उतने ही सजग उनमें संस्कारों के बीजारोपण के लिए सजग हो जाएं। ताकि बच्चे अपने अच्छे और नेक भविष्य का निर्माण कर सकें। बच्चों को संस्कारित करने के लिए बड़ों को घर का माहौल हमेशा अच्छा रखना चाहिए। बच्चे रौंधी हुई कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। यह आपके हाथ में हैं, आप चाहे तो उस मिट्टी से मंगल कलश या ठंडा पानी देने वाली सुराही बना लें और चाहे तो जी का जंजाल पैदा करने वाली चिलम बना लें। ससुराल भेजने से पहले बेटी को बनाएं परफेक्ट संतश्री ने कहा कि हर महिला अपने जीवन में एक बात हमेशा याद रखे कि वह अपनी बहु के साथ हमेशा मां की भूमिका निभाए और अपनी बेटी के साथ हमेशा सास की भूमिका निभाए। यह बहुत गहराई की बात है, अगर आप चाहते हैं कि आपकी बेटी सुसराल जाकर यश और गौरव लेकर आए तो उसके सुसराल जाने से पांच साल पहले उसके साथ एक सास की भूमिका अदा कर दो, ताकि उसे आप ससुराल के लिए परफेक्ट तैयार कर सकें। अपनी बेटी के लिए इससे बड़ा दहेज और क्या हो सकता है कि आपने अपनी बेटी को उसके पांव पर खड़ा करके, परफेक्ट तैयार करके उसे ससुराल के लिए रवाना किया है। अमरीका के पूर्व राष्टपति अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे के स्कूल शिक्षक को पत्र लिखकर यह कहा कि मैं चाहूता हूं कि आप मेरे बेटे को राष्टपति का बेटा न समझें, उसे एक सामान्य व्यक्ति का बच्चा मानें ताकि वह भी पूरे अनुशासन से गुजरे। उसे उस हर दुविधा से गुजारें जिससे कि हर गरीब का बच्चा गुजरता है ताकि वह अपने जीवन के लिए परफेक्ट तैयार हो सके। बच्चों के मोह में धृतराष्ट न बन जाएं संतश्री ने कहा कि अगर आप बच्चों के मोह में धृतराष्ट बन गए तो मानकर चलना एक दिन आपके बच्चों में से दुर्योधन और दु:शासन बाहर निकलकर आएंगे। याद रखें- दुनिया में जब भी किसी ने खोया है तो सोकर खोया है, और जब भी किसी ने पाया है तो जाग कर पाया है। नौ-नौ, दस-दस बजे तक घर पर बच्चे सोए हुए हैं, यह घर के लिए ज्यादा अच्छी बात नहीं है। ऐसा कर आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दे रहे हैं। जरूरत पड़ने पर आप अपने बच्चों को बहुत लाड़ दीजिए
पर जब बात अनुशासन की आए तो ये हाथ लाड़ करने के लिए भी है और वक्त पड़ने पर मारने के लिए भी है। इतने कमजोर पिता मत बनिए कि बोलने के पहले सोचना पड़े कि इसको बुरा तो नहीं लग जाएगा। आज उसको बुरा लग रहा है पर कल उसका भविष्य सुधर जाएगा। अगर आपने यह सोचकर कि इसको बुरा लगेगा और कुछ नहीं कह रहे हैं तो कल उसका भविष्य बुरा हो जाएगा। अगर आप पिता हैं तो निभाएं कुम्हार की भूमिका संतप्रवर ने कहा कि आपको अपने बच्चों को सुघढ़ बनाने, उन्हें संस्कारवान बनाने कुम्हार की भूमिका अदा करनी होगी, जैसे कुम्हार दो हाथों से घड़ा बनाता है, ऊपर से वह घड़े को ठोंकता भी है और भीतर उसे सहलाता भी है। हर अभिभावक को अपने घर में बच्चों के लिए कुम्हार की भूमिका अदा करनी ही चाहिए। ऐसा कभी न करना- केवल ठोकोगे तो घड़ा बिगड़ जाएगा और केवल सहलाओगे तो भी घड़ा बिगड़ जाएगा। अगर बच्चे में कोई गलत चीज आ गई है तो इसका जवाबदार केवल बच्चा नहीं है, उसके दादा-दादी, मम्मी-पापा, उसके बड़े भाई-बहन भी जवाबदार हैं क्योंकि समय रहते अगर उन्होंने उस बच्चे को ठीक कर दिया होता तो आज ये नौबत नहीं आती। समय रहते आप अपने बच्चों में सही संस्कारों का बीजारोपण कर दें। अपने बच्चों को घर का गमला मत बनाओ कि रोज पानी दो तब ही वह अपने पांव पर खड़ा रहे, उसे रोज पानी देना पड़े, अगर बना सको तो अपने बच्चों को जंगल का पौधा बनाओ जिसे कोई पानी न दे तो भी वह अपने बलबूते खड़ा रहे। ये क्या पौधे आपने खड़े कर दिए कि गमले में एक दिन पानी न दिया तो पौधे मुरझा जाए। इसीलिए आज हम एक मानसिकता बनाते हैं कि हम अपने बच्चों को कार देने की योजना बाद में बनाएंगे, संस्कार देने की योजना पहले बनाएंगे। याद रखें अगर संस्कार दिए बगैर कार दे दी तो कार गलत रास्ते पर जाएगी, पर पहले दिए हैं संस्कार उसके बाद दी है कार तो वह कार सही दिशा में जाएगी। बच्चों को केवल चाँद-सितारे छूने की प्रेरणा मत दो, अगर दे सको तो उन्हें माँ-बाप और बड़ों चरण छूने के संस्कार दो। ताकि बुढ़ापे में आपके साथ, आपके पास रहकर सुख-दुख में आपके भागीदार बन सकें। 70 फीसदी माँ-बाप आज घर में अकेले पड़े हैं और बच्चे अपनी बीवीयों को साथ लेकर बाहर निकल गए हैं। अमरीका में रहने वाले बेटे को अपनी माँ की तब याद आती है जब उसकी पत्नी की डिलिवरी का समय आता है। यही आज अनेक परिवारों की कड़वी सच्चाई है। मैं ये नहीं कहता कि बच्चों का भविष्य ना संवारों। पह इतना जरूर कहुंगा कि उनका भविष्य संवारने की चक्कर में अपना भविष्य ना बिगाड़ लेना। उनको इस तरह लायक भी ना बना दें कि वे एक दिन आपको कुछ भी ना समझें। दुनिया में सबसे पहले प्यार आदमी को अपनी माँ से मिलता है, एकमात्र माँ है जिसका प्यार जन्म से पहले नौ महीने पहले ही मिलना शुरू हो जाता है। गर्भ धारण करने के समय से ही अपनी आने वाली संतान में शुभ संस्कारों के बीजारोपण के लिए अच्छे कार्य, सद्साहित्य का अध्ययन करें। बच्चों के सामने घर पर ना बोलें झूठ जितना आप अपने बच्चों को लाड़-प्यार, सुविधाएं देने के लिए सजग हैं, उतने ही सजग उनके संस्कार निर्माण के लिए हो जाएं। बच्चा बड़ा हो रहा है तो सावधान रहें, घर पर आपस में कभी भी उसके सामने झूठ ना बोलें। चाहे जैसी घर में बात बिगड़ जाए पर बच्चों के सामने पति, पत्नी से और पत्नी पति से झूठ ना बोलें। संतान वो नहीं होती जो माँ-बाप के मरने के बाद उनका अग्नि संस्कार करने के लिए आती है और संपत्ति पर कब्जा करने के लिए आती है, संतान वो होती है जो माँ-बाप के जीतेजी और उनके बुढ़ापे में उनकी सेवा में लगी होती है। जिसने माँ-बाप की सेवा नहीं की, उसे माँ-बाप की संपत्ति लेने का भी हक नहीं। बच्चों को संस्कारवान बनाने स्वयं में लाएं सुधार बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए आप अपने जीवन में यह नियम बना लें कि मैं घर का माहौल हमेशा अच्छा बनाए रखुंगा। घर के सदस्यों से हमेशा सम्मान भरी भाषा ही बोलुंगा। क्योंकि बच्चे वो नहीं सीखते जो आप कहते हैं, बच्चे वो सीखते हैं जो आप करते हैं। दूसरा यह कि घर में केवल उपदेशक मत बनिए। बातों के बादशाह बनने की बजाय आचरण के महावीर बनना ज्यादा अच्छा है। अगर सिखा सको तो बच्चों को सद्गुण सिखाएं। अपने बच्चों के साथ रोज टाइम का इनवेस्टमैंट करिए। जीवन प्रबंधन का उन्हें गुर सिखाइए। यदि बच्चा संस्कारों से हटकर जी रहा है तो उसे नजरअंदाज मत करिए। संस्कारों के प्रति हमेशा सजग-सावधान रहिए। बच्चों को दें ये सुसंस्कार बच्चों को विनम्रता का और पहनावे का संस्कार दीजिए। उन्हें सम्मान, सहनशीलता, सेवा-सहयोग के सद्गुण, भाषा का संस्कार अर्थात् सम्मान की भाषा बोलना सिखाएं। तपस्वी का श्रीसंघ ने किया बहुमान श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट सहित रायपुर श्रीसंघ व दिव्य चातुर्मास समिति द्वारा आज धर्मसभा में 6 उपवास की तपस्वी वृद्धि बैद आत्मज विनय बैद का बहुमान किया गया।
मन, वचन और काया से बनें विनयवान: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि विनम्रता यह सद्गुणों का राजा है। भगवान श्रीमहावीर ने यही संदेश दिया कि विनय गुण मोक्ष का द्वार है। जो विनयवान होता है वही देव-गुरु-धर्म की आराधना कर सकता है। देशणा देने से पूर्व भगवान भी पहले धर्म संघ को प्रणाम करते हैं उसके बाद पाट पर विराजित होते हैं। नमस्कार महामंत्र का पहला शब्द णमो है। जो नमता है, वही औरों के दिलों में राज करता है। झुकाने वाला कभी महान नहीं होता, जो झुका हुआ होता है वही सबसे महान हुआ करता है। हम न केवल स्वयं विनम्र बनें अपितु बच्चों को भी विनम्र बनने की प्रेरणा दें। विनय और मुस्कान ये डेबिट कार्ड की तरह होते हैं, पहले चुकाते रहो और फिर लाभ लेते चलो। अहंकार क्रेडिट कार्ड की तरह होता है जो पहले निकाल लो तो बाद में उसे ब्याज समेत चुकता करते रहो। बड़ों को भरपूर सम्मान देना और छोटों को भरपूर प्यार देना, इसी का नाम विनम्रता है। क्योंकि बड़ों में सद्गुण हमसे ज्यादा होते हैं और छोटों के गुनाह हम सबसे कम हुआ करते हैं। हमें मन, वचन और काया से विनयवान होना चाहिए। यदि विनय गुण को धारण करना है तो सबसे पहले अपने जीवन में प्लीज, थैंक्यू और सॉरी बोलना सीख जाएं। बड़ों की आज्ञा का पालन और उनका आदर-सम्मान करें। जब बड़े बैठे हों तो कभी-भी उनके सामने स्वयं ऊपर न बैठें। जब भी कोई आपसे मिले तो सबसे पहले उन्हें हाथ जोड़कर अभिवादन करें। इन अतिथियों ने प्रज्जवलित किया ज्ञानदीप श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि गुरुवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथि गण श्यामसुंदर अग्रवाल, कैलाश अग्रवाल, श्रीमती उमा अग्रवाल-मूर्तिजापुर, श्रीमती सरला दफ्तरी-जयपुर, अशोक सेठिया, महेंद्र धाड़ीवाल, चंचलमल सिंघवी, किशोर झाबक, समकित झाबक द्वारा ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथि सत्कार श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, समिति के वरिष्ठ सदस्य विमल गोलछा द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। आज सभी श्रद्धालुओं को राष्टÑसंतश्री चंद्रप्रभजी रचित ज्ञानवर्धक किताब 'कैसे करें जीवन की एम.बी.ए.' भेंट की गई। जिसके सौजन्यकर्ता स्व. कन्हैयालाल स्व. श्रीमती कमलाबाई डाकलिया स्मृति में राजेंद्रकुमार, जयकुमार, विजयकुमार, पदमकुमार, जितेंद्रकुमार डाकलिया परिवार खैरागढ़-रायपुर का प्रवचनोपरांत समिति की ओर से बहुमान किया गया। आज प्रवचन 'बच्चों का टेलेन्ट निखारने की जरूरी बातें' विषय पर दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि शुक्रवार, 5 अगस्त को परिवार सप्ताह के पंचम दिवस 'बच्चों का टेलेन्ट निखारने की जरूरी बातें' विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।
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