K.W.N.S.- विश्वकर्मा जयंती के दिन समस्त उपकरणों की पूजा के साथ कारखानों में इनके पूजा की परंपरा है. टेक्निकल कार्यों में इनका आशीर्वाद बहुत जरूरी होता है. देवलोक के सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार तथा वास्तु शास्त्र के प्रणेता हैं भगवान विश्वकर्मा जी. वह ब्रह्मा जी के वंशज हैं. इनके ज्ञान को समझने के लिए पहले सरस्वती जी को समझना होगा, जो विद्या एवं संगीत की देवी हैं. जबकि, विश्वकर्मा जी तकनीक के देवता है. कोई युवा बीटेक, एमटेक तो सरस्वती की कृपा से करता है, किंतु नौकरी में सफल इंजीनियर बनने के लिए विश्वकर्मा जी की कृपा की आवश्यकता होती है. इसलिए टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्य करने वाले युवाओं को सफलता के लिए सरस्वती जी और विश्वकर्मा जी की पूजा करनी चाहिए. विश्वकर्मा जी ने ही किया था मां दुर्गा के शस्त्रों का निर्माण धर्म शास्त्रों के वर्णन के अनुसार, देवासुर संग्राम में राक्षसों का वध करने के लिए शक्ति स्वरूप दुर्गा जी का अवतार हुआ तो त्रिशूल, फरसा, गदा उनके अस्त्र-शस्त्र का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी ने ही किया था. कुछ ऋषियों ने उनसे कहा कि वास्तुशास्त्र तो देव विद्या है, इसे मानव जाति को क्यों दिया जाए तो स्वयं विश्वकर्मा जी ने कहा, यह विद्या मानव को अवश्य देनी चाहिए, ताकि उनका जीवन शांतिमय एवं सुखमय हो ताकि, यह विद्या कभी भी लुप्त न हो. इसका यह अर्थ है कि विश्वकर्मा जी इतने कल्याणकारी देवता हैं कि दूसरों की सुख-सुविधा, संतुष्टि, शांति एवं रक्षा के लिए ही कार्य करते हैं. पूर्ण रूप से उनमें सकारात्मक ऊर्जा है. विश्वकर्मा जी सदैव आध्यात्मिक और भौतिक उत्थान के लिए ही कार्य करते हैं. सबसे खास बात यह है कि वह देवताओं के पक्षधर रहे हैं न कि असुरों के यानी असुरी प्रवृत्ति के विरोधी हैं. लंका को जलाकर हनुमान जी ने बिगाड़ा था वास्तु भगवान विश्वकर्मा जी ने ही लंका का निर्माण महादेव के लिए किया था, जिसको रावण ने शिवजी से प्राप्त कर लिया था. रावण की अथाह शक्तियों और वैभव के पीछे लंका के वास्तु की भी बहुत अहम भूमिका थी. हनुमान जी के लंका दहन करने का कारण भी यही था कि वहां का वास्तु बिगड़ जाए, ताकि महाशक्तिशाली रावण कुछ डिस्टर्ब हो जाए और हुआ भी ऐसा ही. दैवीय वास्तु शास्त्र पांच तत्वों अग्नि, जल, पृथ्वी वायु और आकाश, तीनों बलों गुरुत्व, चुम्बकीय और सौर ऊर्जा, अष्ट दिशाओं, ग्रहों, नक्षत्रों की गति पर आधारित एक सुपर साइंस हैं. प्रकृति के इन कारकों के अनुरूप ही लोगों को आवास का निर्माण करना, जिससे इन शक्तियों को भवन में संतुलित व व्यवस्थित रखकर जीवन को सुखमय बनाया जा सके, इसी विज्ञान को वास्तु शास्त्र कहते हैं.