पूर्वजों को समर्पित साल 15 दिन पितृ पक्ष कहलाते हैं। कहते हैं पितृ पक्ष में यमराज पूर्वजों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं ताकि वह अपने परिवार से तर्पण, पिंडदान, ग्रहण कर सकें। इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक रहेंगे।
मान्यता है कि पितृ पक्ष की अवधि में पिंडदान दिवंगत आत्मा को ज्ञान दिखाने में मदद करता है और उन्हें मोक्ष की ओर ले जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं पिंडदान कौन कर सकता है ? पिंडदान में कितने पिंड बनाए जाते हैं, इसकी विधि, नियम.
क्या है पिंडदान ?
‘पिंड’ शब्द का अर्थ है किसी वस्तु का गोलाकार रूप। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड ही कहते है। पिण्ड चावल, जौ के आटे, काले तिल और घी से बना गोल आकार का होता है जिसका दान किया जाता है। इसे ही पिंडदान कहते हैं।
पितृ पक्ष में पिंडदान का महत्व
पितृ पक्ष में अपने मृत परिजनों का पिंडदान करना सुख, समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद प्रेत योनी से बचाने के लिए पितृ तर्पण का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों को किए गए तर्पण से उन्हें मुक्ति मिल जाती है और वो प्रेत योनी से मुक्त हो जाते हैं। मान्यता है कि यदि पिंडदान नहीं किया जाता है तो पितरों की आत्मा दुखी और असंतुष्ट रहती है।
क्या बेटियां कर सकती हैं पिंडदान ?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आत्मा की तृप्ति के लिए सबसे बड़ा पुत्र अपने पिता और अपने वंशज का श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण करता है। पितृऋण से छुटकारा पाने के लिए भी बेटों का पिंडदान करना जरूरी होता है लेकिन अगर किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं, तो ऐसे में परिवार पुत्री, पत्नी और बहू अपने पिता के श्राद्ध और पिंड का दान कर सकती हैं।
पिंडदान की विधि
पिंडदान के लिए सुबह 11.30 से दोपहर 12.30 तक का समय अच्छा रहता है। इसके लिए जौ के आटे या खोये से पिंड बनाकर पके हुए चावल, दूध, शक्कर, शहद और घी को मिलाकर पिंडों का निर्माण करें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके फूल, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, तिल, जौ और दही से पिंड का पूजन करें। पिंडदान करने के बाद पितरों की अराधना करनी चाहिए। इसके बाद पिंड को उठाकर जल में प्रवाहित कर दें। ब्राह्मण भोजन कराएं। पंचबलि भोग निकालें उसके बाद ही घर परिवार के लोग खाना खाएं।
पिंडदान में कितने पिंड बनाए जाते हैं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में तीन पीढ़ियों तक का श्राद्ध किया जाता है। पिंडदान में मुख्यत: पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदाद। अगर पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं।
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