वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की मासिक शिवरात्रि से शुरू होकर सोमवती अमावस्या तक रहेगा। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के संस्कृत साहित्याचार्य महेन्द्र कुमार पाठक के मुताबिक ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को माह की शिवरात्रि होगी। जोकि अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार 1 जून की तारीख है। इस क्रम में रविवार को 14 तारीख के बाद 3 जून को अमावस्या होगी। उसी दिन सोमवती अमावस्या और वट सावित्री व्रत पूरा होगा।
वट में रहता है इनका वास
महेंद्र कुमार पाठक के अनुसार 3 जून को सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति के जीवन के लिए बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या की थी। और वट के वृक्ष ने सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा ताकि जंगली जानवर शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सके। इसलिए इसे वट सावित्री व्रत कहा जाने लगा। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसमें हल्दी लगा कच्चा सूत लपेटते हुए उसकी 11, 21, 108 बार परिक्रमा की जाती है। साथ ही 11, 21 और 108 की संख्या में ही वस्तुएं भी अर्पित की जाती हैं। उन्होंने बताया कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है। इसलिए उसका पूजन कल्याणकारी होता है।
महिलाएं पहनती हैं शादी का जोड़ा
रहीनगर के कृष्णदेव चतुर्वेदी की पत्नी सुदामा ने बताया कि बीते 37 साल से वह लगातार वट सावित्री व्रत रख रही हैं। उस दिन वह शादी का जोड़ा पहनकर पूजन अनुष्ठान करती हैं। उनका विवाह 1981 में हुआ था। वह हर साल अलग-अलग वस्तुओं का संकल्प लेकर वटवृक्ष को अर्पित करती हैं। अब तक वह पान, धान, केला, मीठा बताशा, अंगूर आदि अर्पित कर चुकी हैं।
यह है सर्वार्थ सिद्धि योग का महत्व
सर्वार्थ सिद्धि योग एक शुभ और मंगल योग है, जो निश्चित वार और ग्रह नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह सभी योग में एक बहुत ही शुभ समय है जो कि ग्रह नक्षत्र के आधार पर गणना करता है। यह योग सभी इच्छाओं तथा मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। इस योग में पूजापाठ करने और दान करने का विशेष महत्व है। साथ ही इस योग में पूजा करने से पितृ दोष दूर होता है और सभी कार्यों में आपको विशेष सफलता प्राप्त होती है।