दंतेवाड़ा । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद राज्य में सक्रिय नक्सली संगठनों व सरकार के बीच शांति वार्ता की अटकलों के बीच नक्सलियों ने एक बार फिर अपना खूनी चेहरा दिखाया है। दंतेवाड़ा के भाजपा विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर नक्सलियों ने हमला कर उनकी जान ले ली।
यही नहीं, उनकी सुरक्षा में तैनात चार अन्य पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया है। इस घटनाक्रम के बाद एक बार फिर नक्सलियों का क्रूर चेहरा सामने आ गया है। माना जा रहा है कि नक्सली अभी भी बातचीत के जरिए शांति के रास्ते पर आने के बजाय हिंसा पर उतारू हैं।
राज्य में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ये चर्चा अटकलों के साथ सामने आ रही थी कि राज्य सरकार व नक्सलियों के बीच शांति के लिए वार्ता होने की संभावना है। दरअसल इन चर्चाओं का आधार बस्तर से आई मीडिया रिपोर्ट की वजह से बनी थी।
बस्तर से ऐसी खबरें आई थीं कि नक्सलियों ने कुछ स्थानों पर पोस्टर लगाकर ये संदेश देने की कोशिश की कि वे सरकार के साथ बाचतीत को तैयार हैं। इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा था कि ये बात उनके समक्ष मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से आई है। नक्सलियों ने सरकार से बातचीत के लिए कोई पेशकश नहीं की है।
इसके बाद मुख्यमंत्री ने फिर ये बयान दिया कि नक्सली अगर संविधान में विश्वास जताएं व हथियार छोड़कर आएं, तो उनके साथ बातचीत की जा सकती है। मुख्यमंत्री के इन दोनों बयानों के बाद नक्सलियों की ओर से न कोई बयान जारी किया गया, न किसी माध्यम से कोई संदेश दिया गया।
लिहाजा नक्सलियों से वार्ता की पहल केवल अटकल साबित हुई। नक्सली अगर शांति के रास्ते पर जाने की सोच रखते, तो एक चुने हुए जनप्रतिनिधि पर इस तरह का कायराना हमला नहीं करते।
पुलिस का खुफिया तंत्र फिर फेल
छत्तीसगढ़ में जब कभी नक्सली हमले की कोई बड़ी वारदात होती है, सबसे पहले यही सवाल सामने आता है कि पुलिस या उससे संबंधित खुफिया विभाग को नक्सलियों के आने-जाने या किसी प्रकार की गतिविधि की कोई जानकारी क्यों नहीं मिली। मंगलवार को हुई घटना के बाद भी यही सवाल सामने आ रहा है।
इससे पहले झीरम घाटी कांड से लेकर कई अन्य बड़े हमलों के दौरान भी ये बात सामने आई है कि नक्सलियों के बड़ी संख्या में जमा होने के बाद भी खुफिया तंत्र को इसकी जानकारी क्यों नहीं मिल पाती। कई अवसरों पर पुलिस व सरकार के उच्चाधिकारियों ने खुफिया तंत्र फेल होने की बात स्वीकार करते हुए इसमें सुधार करने की बात कही है, लेकिन क्या सुधार किया गया, यह पता नहीं लगता।
दूसरी ओर जानकार ये भी मानते हैं कि बस्तर दंतेवाड़ा के दूरदराज के इलाकों में पुलिस से लिए सूचनाएं एकत्र करना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है। दूसरी ओर नक्सलियों का अपना सूचना तंत्र है, जिसके माध्यम से वे पुलिस व सुरक्षा बलों की आवाजाही पर पूरी नजर रखे होते हैं। मौका मिलते ही हमला करते हैं।
झीरम घाटी कांड की याद हुई ताजा
बस्तर में एक और जनप्रतिनिधि की नक्सल हमले में मौत के साथ ही करीब 6 साल पहले हुए झीरम घाटी कांड की याद एक बार फिर ताजा हो गई। 2013 में राज्य विधानसभा चुनाव के कुछ महीना पहले तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस की परिवर्तन रैली निकाली गई थी ।
इस रैली पर नक्सलियों ने भीषण हमला किया था। नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेश पटेल सहित कई नेताओं तथा सुरक्षा कर्मियों सहित कई लोगों की मौत हो गई थी ।
नक्सलियों का खूनी खेल, पुलिस का इंटेलिजेंस फेल- झीरम घाटी कांड की याद हुई ताजा
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