यह एक और बड़ा आघात ही है कि पुलवामा में भीषण आतंकी हमले में शहीद सीआरपीएफ जवानों की चिता की आग बुझने भी न पाई थी कि आतंकियों से लोहा लेते हुए पांच और जवानों के बलिदान होने की खबर आ गई। इनमें एक मेजर भी हैं। पुलवामा हमले की साजिश रचने वाले आतंकियों को पुलवामा में ही मार गिराने के अभियान में ब्रिगेडियर, लेफ्टिनेंट कर्नल, मेजर, कैप्टन और डीआईजी समेत सात जवान घायल भी हुए हैं। इस अभियान में हताहत अधिकारियों और जवानों की यह संख्या यही बताती है कि कश्मीर में खतरा किस तरह बढ़ता जा रहा है।
नि:संदेह यह सेना, सुरक्षा बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस के अदम्य साहस और संकल्प का प्रमाण है कि उन्होंने मिलकर पुलवामा हमले की साजिश रचने वाले आतंकियों को सौ घंटे के अंदर खोजकर मौत के मुंह में धकेल दिया, लेकिन उनका दमन करने के क्रम में उन्हें जो क्षति उठानी पड़ी, वह चिंता का विषय है। यह सही है कि घिनौनी नफरत से भरे और मरने-मारने पर आमादा आतंकियों के सफाए के हर अभियान में जोखिम होता है, लेकिन आखिर कश्मीर में ऐसा कब तक चलता रहेगा? जनता के मन में यह सवाल उठ रहा है कि कश्मीर में हमारे जवान आखिर कब तक इसी तरह बलिदान देते रहेंगे? यह सवाल इसलिए गंभीर हो गया है, क्योंकि कश्मीर में आतंकियों की विषबेल खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। कश्मीर एक संवेदनशील क्षेत्र है, जहां देश भर के जवान तैनात हैं। जब वे यूं वीरगति को प्राप्त होते हैं तो इससे पूरे देश का वातावरण प्रभावित होता है। जवानों के परिजन कश्मीर में तैनात अपने लोगों की कुशल-क्षेम के लिए सदैव चिंतित बने रहें, यह कोई अच्छी स्थिति नहीं। यह स्थिति आम जनता के मनोबल पर असर डालती है।
देश की जनता इसके प्रति तो सुनिश्चित है कि सेना और सुरक्षा बलों के आगे कश्मीर में सिर उठाने वाले आतंकियों की खैर नहीं, लेकिन वह यह जानने के लिए अधीर हो रही है कि आखिर देश के इस हिस्से में कब अमन-चैन कायम होगा? इस सवाल का जवाब देश के समस्त राजनीतिक नेतृत्व को देना होगा। यह अच्छा नहीं कि कश्मीर को शांत करने की कोई पहल होती नहीं दिख रही है। घाटी में एक ओर जहां अलगाव और आतंक के समर्थकों का सख्ती से दमन करने की जरूरत है, वहीं देशभक्त कश्मीरियों को साथ लेने की भी उतनी ही आवश्यकता है। आखिर इस दिशा में कोई ठोस पहल कब होगी? क्या यह सही समय नहीं जब कश्मीर में अलगाव की मानसिकता का पोषण करने वाली धारा 370 खत्म की जाए और वहां के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए हरसंभव उपाय किए जाएं? वास्तव में जितनी जरूरत अमन-चैन पसंद लोगों को हर तरह से आश्वस्त करने की है, उतनी ही इसकी भी कि आतंकियों के बचाव में पत्थरबाजी करने वालों को ऐसा सबक सिखाया जाए कि वे फिर कभी पत्थर उठाने की जुर्रत न कर सकें। सहने की एक सीमा होती है। देश का राजनीतिक नेतृत्व यह समझे तो बेहतर कि कश्मीर के हालात से देश व्यथित है और उसकी व्यथा दूर करने के लिए ठोस कदम उठाना उसकी जिम्मेदारी है।
एक और जख्म
- सम्पादकीय
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