अंतरिम बजट में सरकार ने सभी वर्गों को राहत देते हुए खजाने का मुंह तो खोला, लेकिन राजकोषीय घाटे की चिंता भी की।
आम चुनाव का सामना करने जा रही सरकार से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अंतरिम बजट में चुनाव की चिंता न करे। इस पर हैरानी नहीं कि कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल की ओर से पेश अंतरिम बजट के जरिए मोदी सरकार ने समाज के सभी तबकों और खासकर किसानों एवं मजदूरों के साथ वेतनभोगी मध्य वर्ग को खास तौर पर राहत देने की कोशिश की है। जहां दो हेक्टेयर तक खेती की जमीन वाले किसानों को छह हजार रुपए सालाना देने की घोषणा की गई है, वहीं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए तीन हजार रुपए की मासिक पेंशन देने की भी योजना पेश की गई है। इसके अतिरिक्त पांच लाख रुपए तक की कर योग्य आय वाले व्यक्तिगत करदाताओं से आयकर न लेने की व्यवस्था भी की गई है। ये तीनों उल्लेखनीय कदम संबंधित तबकों को राहत देने वाले हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे देश का मूड और माहौल बदलेगा?
यह सवाल इसलिए, क्योंकि किसानों और मजदूरों के संदर्भ में जो बड़ी घोषणाएं की गई हैं, उनके अमल के बाद ही यह पता चलेगा कि मुश्किल हालात से दो-चार हो रहे ये दोनों तबके कितने संतुष्ट हुए? चूंकि किसानों को न्यूनतम आमदनी वाली योजना दिसंबर 2018 से ही लागू मानी जाएगी, इसलिए आम चुनाव तक उन्हें पहली किश्त मिल सकती है। मगर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को हाल-फिलहाल कोई लाभ मिलने की सूरत नहीं दिख रही है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की पेंशन योजना के साथ ही छोटे एवं सीमांत किसानों के खाते में सीधे धन पहुंचाने की योजना पर अमल आसान काम नहीं, क्योंकि इसका आकलन करने में कठिनाई हो सकती है कि किस किसान के नाम वास्तव में कितनी जमीन है या फिर किस मजदूर की आय 15 हजार रुपए महीने से कम है?
यह सही है कि सरकार सीधे धन हस्तांतरण की तकनीक से लैस है और कई कल्याणकारी योजनाओं में उसका सफल प्रदर्शन भी हो चुका है, लेकिन इसका अंदेशा है कि अंतरिम बजट में घोषित कल्याणकारी योजनाओं के जरिए उपलब्ध कराई जाने वाली मदद अपेक्षाओं के अनुरूप न साबित हो। पता नहीं किसानों और मजदूरों को राहत देने वाली योजनाओं में देरी के कोई दुष्परिणाम सामने आएंगे या नहीं, लेकिन इससे इंकार नहीं कि इन तबकों को प्राथमिकता के आधार पर राहत देने की दरकार थी। एक तरह से यह सरकार की नैतिक जिम्मेदारी थी कि वह इन वर्गों और साथ ही मध्य वर्ग की सुध ले।
स्पष्ट है कि ऐसे किसी नतीजे पर पहुंचना सही नहीं कि चुनाव सामने देखकर सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं की झड़ी लगा दी। ऐसा इसलिए भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि खजाने का मुंह खोलने के बावजूद सरकार ने राजकोषीय घाटे की चिंता की है। शायद यही कारण है कि वैसी कोई घोषणा नहीं की गई जिसके लिए दबाव बनाया जा रहा था और इस क्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यहां तक कह दिया था कि उन्होंने तो हर गरीब के खाते में पैसा पहुंचाने का फैसला कर लिया है। कोई भी सरकार हो, उसे चुनाव की चिंता के साथ देश की आर्थिक सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए।
राहत देने की कोशिश
- सम्पादकीय
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