K.W.N.S.-वर्ष 2023 लगातार दूसरा ऐसा साल है, जब भारत समय से पहले गर्मी आने की चुनौती का सामना कर रहा है. यह फाल्गुन के खुशनुमा मौसम के आनंद को खराब कर चुका है. इस दौरान 29.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ फरवरी 2023 ने 1901 के बाद सबसे ज्यादा मासिक औसत अधिकतम तापमान का रिकॉर्ड तोड़ दिया. अप्रैल और जून के बीच लू चलना आम बात है, लेकिन मौसम की अस्थिरता के कारण भारत में समय से पहले लू चलने लगी है.
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीइइडब्ल्यू) के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 45 प्रतिशत से ज्यादा जिलों के भू-परिदृश्य के पैटर्न बदल गये हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील यानी सबसे पहले प्रभावित होने वाले क्षेत्र बन गये हैं. भूमि उपयोग में सस्टेनेबिलिटी का ध्यान न रखने वाली पद्धतियों ने, खास तौर पर शहरों में, लू की आक्रामकता को बढ़ा दिया है.
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में भीषण लू के कारण 17 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. वर्ष 2022 में भी समय से पहले और ज्यादा लंबे समय तक लू चली थी, जिससे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विभिन्न फसलों की पैदावार 10-35 प्रतिशत तक गिरने का आकलन है. अत्यधिक गर्मी से बिजली और पानी की अप्रत्याशित मांग पैदा होती है.
भारत में लू का सामना करने की क्षमता पैदा करने के लिए सरकार ने हीट एक्शन प्लान (एचएपी) समेत कई प्रयास किये हैं. ये कदम समय-पूर्व चेतावनी की योजना बनाने व लागू करने, जागरूकता विस्तार व समुदायों तक पहुंचने की रणनीतियां बनाने और सरकारी विभागों में भूमिका व जिम्मेदारी निर्धारित करने की प्रणाली बनाने की रूपरेखा पेश करते हैं.
इनमें कूलिंग सेंटर बनाने, ओआरएस वितरण और पेयजल सुविधा बढ़ाने जैसे उपाय भी शामिल हैं, पर भारत में, विशेष रूप से बुजुर्गों, बच्चों और बाहर काम करने वाले श्रमिकों के लिए लू एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है. चूंकि इस साल अल-नीनो के सक्रिय होने का पूर्वानुमान है, जो सूखे और गर्म मौसम से जुड़ी होती है, भारत को ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है. इसके लिए इन तीन बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है. सबसे पहले, प्रभावी और नवाचारयुक्त सूचना, शिक्षा व संचार को स्थापित करना चाहिए. पूर्व चेतावनी को जोखिम वाले लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रभावी नवाचारयुक्त जागरूकता अभियान चलाना बहुत महत्वपूर्ण है.
वैज्ञानिक चेतावनियों और सुझावों को स्थानीय भाषाओं में प्रसारित करना और सरल व कलर-कोडेड मैसेज का उपयोग करना जीवन बचा सकता है. ऐसे संदेश सोशल मीडिया, ईमेल, रेडियो, टेक्स्ट मैसेज, मोबाइल एप और अन्य प्लेटफॉर्म से आसानी से प्रसारित किये जा सकते हैं. गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट ने स्थानीय भाषा में ट्रेनिंग मॉड्यूल और कॉमिक बुक तैयार किया है. अन्य भाषाओं में ऐसे प्रयास हो सकते हैं.
दूसरा, लचीलापन लाने वाली समावेशी और समुदायों के नेतृत्व वाली रणनीतियों को मजबूत बनाने के लिए क्षमता निर्माण और सामुदायिक स्तर पर जुड़ाव लाना महत्वपूर्ण है. राज्यों को अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों और स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकारियों को गर्मी का मौसम आने से पहले एक वर्कशॉप करनी चाहिए. इसके साथ समुदायों के अंदर से सहायता समूह, युवा स्वयंसेवियों और निजी चिकित्सकों को चिह्नित करना चाहिए, ताकि अत्यधिक गर्मी के समय उनकी मदद मिल सके. युवा स्वयंसेवी और समूह जोखिम वाले समूहों से संवाद करने में मदद करेंगे.
उदाहरण के लिए, ओडिशा की आपदा प्रबंधन रणनीतियों में सूचना प्रसार और लोगों को बाहर निकालने में सामुदायिक स्तर पर जुड़ाव को शामिल किया गया है. इससे राज्य को चक्रवातों का जोखिम घटाने में मदद मिली है. तीसरा, विभिन्न उपायों को तैयार करने में जोखिम की सूक्ष्म जानकारियों और सबसे ज्यादा प्रभावित जगहों के आकलन को शामिल करना चाहिए और एक मानचित्र बनाना चाहिए.
इसके अलावा, स्वास्थ्य पर असर, ऊर्जा व पानी की मांग और फसलों पर प्रभावों के बारे में क्षेत्र-विशेष के लिए पूर्वानुमान मॉडल को सशक्त बनाना भी जरूरी है. यह किसानों और अन्य निर्णय-कर्ताओं को समय से अपनी योजनाएं बनाने में मदद करेगा. बदलती जलवायु और बढ़ते तापमान के साथ, निकट भविष्य में अत्यधिक गर्मी बहुत आम और घातक हो सकती है. भारत को गर्मी से बचाव के लिए लघु, मध्यम और दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान देना चाहिए. कम अवधि के उपायों में प्रभावी जनसंपर्क और क्षमता निर्माण को शामिल करना चाहिए.
मध्यम और दीर्घकालिक रणनीतियों में जोखिम मानचित्रण और गर्मी को सहने लायक बुनियादी ढांचा बनाने पर ध्यान देना चाहिए. जी20 के तहत डिजास्टर रिस्क रिडक्शन ग्रुप के सदस्य के रूप में भारत जोखिम में कमी, सामुदायिक जुड़ाव और क्षेत्रीय स्तर पर योजना निर्माण पर केंद्रित गर्मी के प्रति लचीलापन लाने की रणनीतियां बनाकर दूसरे देशों को राह दिखा सकता है.