K.W.N.S.-कांग्रेस और राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का मकसद स्पष्ट होने लगा है। एक तरफ इसे 2024 के आम चुनाव से नहीं जोड़ा जा रहा है, लेकिन दूसरी ओर समविचारक दलों के नेताओं को लामबंद करने की कोशिश जारी है। मौजूदा यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर में समाप्त होगी, उससे पहले ही ‘हाथ से हाथ जोड़ो अभियान’ 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के मौके पर, शुरू होगा। उसमें कांग्रेस के चुनाव चिह्न ‘हाथ’ की भी नुमाइश की जाएगी। मंडल, जिला, राज्य स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में राहुल गांधी का पत्र वितरित किया जाएगा, जिसे मोदी सरकार के खिलाफ चार्जशीट कहा जा रहा है। यानी पत्र की विषय-वस्तु प्रधानमंत्री मोदी के विरोध पर ही टिकी होगी। कांग्रेस ‘हाथ अभियान’ के जरिए देश के 6 लाख गांवों, करीब 2.5 लाख पंचायतों और 10 लाख बूथों तक पहुंचने की कोशिश करेगी। इसे ‘मतदाता जोड़ो मिशन’ नाम भी दिया गया है। यह सिर्फ नफरत, हिंसा, डर से लेकर तपस्वी, कौरव-पांडव की सोच का अभियान है अथवा विशुद्ध चुनाव प्रचार…! इसी दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से 23 विपक्षी नेताओं को आमंत्रण भिजवाया गया है कि वे 30 जनवरी, महात्मा गांधी की पुण्य-तिथि पर और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समापन समारोह के साक्षी बनने के लिए श्रीनगर पहुंचें। न्योता भेजने में ही सियासत की गई है, क्योंकि तेलंगाना की ‘भारत राष्ट्र समिति’ के अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव, आंध्रप्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस तथा तेलुगूदेशम पार्टी, ओडिशा के बीजद एवं मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, दिल्ली-पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, असम की कांग्रेस सरकार में घटक पार्टी रही ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट आदि को न्योता नहीं भेजा गया है। क्या ये पार्टियां विपक्ष की मजबूत धुरियां नहीं हैं? क्या उनके नेता विपक्ष का महागठबंधन तैयार करने में महती भूमिका अदा नहीं करेंगे? हम ओवैसी की पार्टी को अलग रखते हैं, क्योंकि वह लोकतांत्रिक नहीं, मुस्लिमवादी पार्टी है। हालांकि वह भी कांग्रेस की सत्ता-साझेदार रह चुकी है। दरअसल इस शुरुआती कोशिश पर ही विपक्ष दरकने लगता है।
यानी कांग्रेस लोकसभा की करीब 100 सीटें तो छोड़ कर चल रही है, जिन पर उसे भरोसा है कि विपक्षी एकता नहीं हो पाएगी! इनके अलावा, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष एवं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जद-यू एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती आदि नेता भी श्रीनगर जाएंगे, फिलहाल यह सवालिया है। हमारे भरोसेमंद सूत्रों की ख़बर है कि विपक्ष के ये धुरंधर चेहरे भी ‘यात्रा’ के समापन-समारोह के साक्षी नहीं बनेंगे। कारण अलग-अलग हैं। मायावती और अखिलेश तो ‘यात्रा’ के उप्र पड़ाव में भी शामिल नहीं हुए थे, हालांकि दोनों ही उप्र में मौजूद थे। फिलहाल वे लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के पक्षधर भी नहीं हैं। इस तरह एक राजनीतिक-चुनावी सत्य बिल्कुल स्पष्ट है कि विपक्ष कांग्रेस और राहुल गांधी की छतरी तले गठबंधन बनाने के पक्ष में नहीं है। यदि 2024 में भाजपा और मोदी के पक्ष में बहुमत नहीं आता है, तो सवाल होगा कि सरकार कौन और कैसे बनाएगा? वर्ष 2004 में जिस तरह कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए बनाया गया था, तो उसमें विभिन्न गैर-भाजपा दलों को गोलबंद करने का प्रयास सीपीएम के तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत ने किया था। तब वामदलों के निर्वाचित सांसदों की संख्या भी करीब 60 थी। आज वाममोर्चा बेहद कमज़ोर स्थिति में है और राहुल गांधी को नेता मानने पर असहमत है। तब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा सांसदों की संख्या भी काफी थी। आज सपा के 3-4 सांसद ही लोकसभा में हैं। यदि यही स्थिति रहती है, तो कांग्रेस के लिए 53 से 100 सांसदों तक पहुंचना ही टेढ़ी खीर होगा। कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने अभी से मुग़ालता पाल लिया है कि 2024 का जनादेश उसके पक्ष में होगा। यात्रा के बाद कांग्रेस की रेटिंग अचानक बढ़ा दी गई है, जबकि इसका कोई औचित्य नहीं है।