K.W.N.S.-रक्षा मंत्रालय ने अत्याधुनिक हथियारों और साजो-सामान की खरीद के लिए 24 प्रस्तावों को स्वीकृति दी है, जिनका कुल बजट 84,238 करोड़ रुपये का है. इनमें से छह-छह प्रस्ताव थल सेना एवं वायु सेना, 10 नौसेना तथा दो भारतीय तटरक्षक बल के लिए हैं. सरकार कुछ वर्षों से रक्षा उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता घटाने की दिशा में तेजी से काम कर रही है. इन 24 प्रस्तावों में से 21 प्रस्ताव ऐसे हैं, जिनमें उल्लिखित वस्तुओं की खरीद भारतीय निर्माताओं से ही होगी।
ये निर्माता सरकारी कंपनियां भी हो सकती हैं और निजी क्षेत्र के उपक्रम भी. रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश तथा विदेशी निवेश की सीमाओं एवं शर्तों को सरल बनाने से उद्योगों का तीव्र विस्तार हो रहा है. उल्लेखनीय है कि भारत हथियारों और सैन्य वस्तुओं का निर्यात भी बड़े पैमाने पर कर रहा है. वर्ष 2017 और 2021 के बीच हमारा रक्षा निर्यात 1,520 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,435 करोड़ रुपये हो गया।
वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा 14 हजार करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत बनाने के आह्वान की यह बड़ी सफलता है. इस आह्वान में यह संकल्प भी निहित है कि देश की आवश्यकताओं के लिए तो देश में उत्पादन तो होगा ही, साथ ही गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को वैश्विक बाजार में भी उपलब्ध कराया जायेगा. रक्षा उपकरणों के देश में ही निर्मित होने से आयात पर निर्भरता में बड़ी कमी तो आयेगी ही, साथ ही उनकी लागत भी कम होगी।
हम देश के सीमावर्ती क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप हथियार बना पायेंगे. ताजा प्रस्तावों में 354 हल्के टैंक बनाने की योजना है, जिनका वजन अधिकतम 25 टन होगा. अभी भारतीय सेना इससे करीब दोगुना और तिगुना वजन के टैंकों का इस्तेमाल करती है. हल्के टैंकों को नदी क्षेत्र तथा लद्दाख जैसे दुर्गम इलाकों में भी तैनात किया जा सकेगा. चीन और पाकिस्तान की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए इस तरह के हथियारों की जरूरत बढ़ गयी है।
यह जगजाहिर तथ्य है कि चीन ने सीमा पर अत्याधुनिक छोटे टैंकों की तैनाती की है. इस टैंक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन आदि कैसी नवीनतम क्षमताएं होंगी तथा वह भारी टैंकों के बराबर ही मार कर सकेगा. इसी तरह से आधुनिकतम युद्ध वाहनों से संबंधित एक अहम प्रस्ताव पर भी मुहर लगी है. यह तीसरा अवसर है, जब ऐसे भविष्योन्मुखी वाहनों के लिए कोशिश हो रही है. उम्मीद है कि इस बार यह प्रस्ताव कारगर होगा. हिमालयी क्षेत्र ही नहीं, अरब सागर और हिंद महासागर में भी चीन की सक्रियता बढ़ी है. ऐसे में नौसेना के लिए विशेष प्रकार के वाहनों की जरूरत बढ़ गयी है. आशा है कि ये प्रस्ताव शीघ्र साकार होंगे।