सनातन धर्म में कई वेद-पुराणों का निर्माण ऋषि-मुनियों द्वारा किया गया है। हिन्दू धर्म में चार प्रमुख वेद हैं- ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। बता दें कि इन वेदों में मनुष्य के लिए जीवन का महत्वपूर्ण ज्ञान दिया गया है। जिनका पालन करने से व्यक्ति स्वयं और अपने परिवार को कई प्रकार की समस्याओं से दूर रख सकता है। इन वेदों में कुछ ऐसी बातें श्लोक के माध्यम से बताई गई हैं जिन्हें समझने मात्र से ही जीवन को सफल और सरल बनाने में सहायता मिलती है। इनमें बताया गया है कि व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए, परिवार के साथ कैसे रहना चाहिए, भय से कैसे निपटना चाहिए इन सभी महत्वपूर्ण विषयों के सन्दर्भ में बताया गया है। आइए जानते हैं-
* यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः । एवा मे प्राण मा विभेः ।।
अथर्ववेद के इस श्लोक में बताया गया है कि व्यक्ति को कभी भी किसी भी परिस्थिति से भय नहीं करना चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि भय से न केवल मानसिक रोग उत्पन्न होता है, बल्कि शारीरिक रोग उत्पन्न होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए क्योंकि डरे हुए व्यक्ति का कभी विकास नहीं होता है और जो व्यक्ति संयम व निर्भीक होकर कार्य करता है। उसे हर समय सफलता प्राप्त होती है।
* विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च ।
रुग्णस्य चौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च ।।
इस श्लोक में बताया गया है कि जो व्यक्ति प्रयास करता है और परिश्रम करता है विद्या उसकी मित्र बन जाती है। घर को स्वर्ग बनानें में पत्नी का योगदान सर्वाधिक होता है, इसलिए घर की मित्र पत्नी होती है। मरीजों के लिए औषधि मित्र और मृत्यु के उपरांत धर्म ही आत्मा का मित्र है। इसलिए मनुष्य अपने जीवन काल में सद्कर्म ही करने चाहिए। साथ ही विद्या के लिए कभी भी प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए, साथ ही घर में पत्नी व माता-पिता को सबसे अधिक सम्मान देना चाहिए। यही व्यक्ति का धर्म है।
* मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा ।
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ।।
अथर्ववेद के इस श्लोक में यह बताया गया है कि भाई, भाई को कभी बी द्वेष नहीं करना चाहिए। बहन और बहन में कभी द्वेष नहीं होना चाहिए। एक दुसरे का आदर-सम्मान करने से और मिल-जुलकर काम करने से सभी कार्य सफल होते हैं और परिवार के साथ-साथ कुल की उन्नति होती है। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जिस घर में सभी स्नेहभाव से रहते हैं वहां सदैब देवी-देवताओं का वास होता है। जीवन में आने वाली कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
* बुद्धि कर्मानुसारिणी । बुद्धिर्यस्य बलं तस्य ।।
इस श्लोक में मनुष्य को यह शिक्षा दी गई है कि बुद्धि कर्म का अनुसरण करती है और तलवार से अधिक शक्तिशाली बुद्धि है। इसमें बताया गया है कि व्यक्ति को हर समय अपने बुद्धि को अधिक तीव्र बनाने के क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस प्रकार बुद्धि कार्य करती है, व्यक्ति भी वैसे कर्मों में लिप्त रहता है। इसलिए युद्ध में भी तलवार से अधिक रणनीति और बुद्धि को अधिक मूल्यवान माना जाता है।
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