वाल्मीकि जयंती हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस साल वाल्मीकि जयंती 9 अक्टूबर के दिन मनाई जाएगी। ऋषि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की थी। वाल्मीकि जयंती के शुभ अवसर पर जगह- जगह झांकी निकाली जाती है।
इस साल पूर्णिमा तिथि 9 अक्टूबर को सुबह 3:00 बजकर 40 मिनट से प्रारंभ होकर 10 अक्टूबर सुबह 2:24 मिनट पर समाप्त होगी।
वाल्मीकि आश्रम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब श्रीराम ने माता सीता का त्याग कर दिया था। उसके बाद किसी वर्षों तक माता सीता ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में रही थी। जहां उनके दोनों पुत्र लव और कुश ने जन्म लिया था।
डकैत से कैसे बने संत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रत्नाकर पहले वन में आने वाले लोगों को लूट कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था। एक बार उसकी मुलाकात पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आएं नारद मुनि से हुई। रत्नाकर ने नारद मुनि को लुटने के इरादे से पकड़ लिया। जिसे देखकर नारद मुनि ने पूछा 'तुम यह क्या और क्यों कर रहे हो' जवाब में रत्नाकर ने कहा- यह मेरी आय का स्रोत है। इसकी मदद से मैं अपने परिवार का भरण पोषण करता हूं। नारद मुनि ने उससे पूछा कि तुम्हें इसके परिणाम के बारे में पता है और क्या तुम्हारे परिवार के सदस्य इस दुष्परिणामों में तुम्हारी मदद करेंगे। जिसके जवाब में रत्नाकर ने बोला - क्यों नहीं वह मेरा परिवार है और वह मेरे साथ हमेशा खड़ा रहेगा। तभी नारद मुनि ने कहा - घर जाकर अपने परिवार के सदस्यों से उनके विचार जानने की कोशिश करो।
घर पंहुचने के बाद रत्नाकर ने परिवार के सभी सदस्यों से पूछा- क्या आप लोग मेरे दुष्कर्म में मेरा साथ देंगे। परिवार के सभी सदस्यों ने साथ देने से इंकार कर दिया।
जिसके बाद रत्नाकर को अपने बुरे कामों के प्रति बहुत ग्लानि महसूस हुई। जिसके बाद रत्नाकर ने सत्कर्म का मार्ग अपनाने का मन बना लिया।
कैसे पड़ा वाल्मीकि नाम
कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए और अपने पापों की क्षमा याचना करने के लिए कठोर तप किया। बाल्मीकि अपने तक में इतने लीन थे। उन्हें इस बात का भी बोध नहीं हुआ कि उनके शरीर पर दीमक की मोटी परत जम चुकी है। जिसे देखकर ब्रह्मा जी ने रत्नाकर का नाम वाल्मीकि रखा दिया।
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