K.W.N.S.- यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक ऊर्जा संकट और खाद्य संकट का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। ऐसे में गुरुवार से उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरकंद में होने जा रहा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन काफी अहम हो सकता है। आयोजन पर पूरी दुनिया की नजर है। चूंकि सम्मेलन में क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व के सामयिक मुद्दों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है। सम्मेलन भारत के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है। एक बार फिर भारत रूस के समक्ष अपना पक्ष रख सकता है। सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता हो सकती है। एससीओ आठ सदस्य देशों का संगठन है।
क्षेत्रफल के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है। यूरोप और एशिया के क्षेत्रफल का 60 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले देश इसके सदस्य हैं। इस संगठन के अंतर्गत दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी और विश्व जीडीपी का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आता है। क्षेत्रीय और वैश्विक नीतियों को आकार देने, सुरक्षा और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र के रूप में एससीओ की भूमिका बढ़ी है। एससीओ में यूरेशिया के ज्यादातर लोग इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से सक्रिय हैं और वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कर रहे हैं। एससीओ के सदस्य देशों की कुल जीडीपी विश्व की जीडीपी का लगभग 20 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर या 1/5 है। विशेषज्ञों के अनुसार 2030 में यह जीडीपी, विश्व की जीडीपी का 35 से 40 प्रतिशत होगी। शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री की मौजूदगी का इसलिए खास महत्व है क्योंकि सम्मेलन के अंत में भारत एससीओ की अध्यक्षता संभालेगा।
यानि भारत अगले वर्ष 2023 में एससीओ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा जिसमें चीन और पाकिस्तान के नेता शामिल होंगे। इन दोनों देशों के साथ भारत के रिश्ते लगातार मुश्किल भरे रहे हैं। सम्मेलन से ठीक पहले चीन पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गोगरा-हाटस्प्रिंग से अपने सैनिकों को हटा रहा है। चीन के रक्षा मंत्रालय ने इस कदम को शांति बहाली के लिए अनुकूल बताया है तो क्या चीन शांति की राह पर लौट रहा है? दरअसल चीन को ताइवान मुद्दे पर अमरीका और पश्चिमी देशों के साथ घिरने पर आभास होने लगा है कि संकट की इस घड़ी में भारत के साथ रिश्ते बिगाड़ना ठीक नहीं है। दूसरी ओर युद्ध के कारण रूस पश्चिम देशों की ओर से प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। पुतिन, रूस के नेतृत्व वाले 'ग्रेटर यूरेशिया' की अवधारणा पर काम कर रहे हैं और इसके लिए उसे चीन और भारत दोनों के साथ की जरूरत है।