कोर्ट ने कहा, मनमानी नहीं चलेगी
इलाहाबाद, 31 अगस्त / hindsat इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से वित्तपोषित ए.बी.के हाईस्कूल में कक्षा एक में प्रवेश के लिए परीक्षा में सफल छात्र को छह सदस्यों की टीम के समक्ष साक्षात्कार के बाद मनमाने ढंग से फेल करने के खिलाफ याचिका को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि एक छोटे बच्चे को कक्षा एक में प्रवेश देने के लिए शैक्षिक योग्यता परीक्षा लेने और साक्षात्कार में 40 फीसदी अंक की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के विपरीत है। हाई को्र्ट ने कहा कि चूंकि कोर्ट को ऐसे मामले की सुनवाई कर मनमानी पर अंकुश लगाने का क्षेत्राधिकार नहीं है इसलिए कोर्ट स्वत: याचिका को जनहित याचिका में बदलते हुए जनहित याचिका की सुनवाई करने वाली पीठ के समक्ष दो हफ्ते में पेश करने का आदेश दे रही है।
यह आदेश जस्टिस संगीता चन्द्रा ने छात्र प्रिन्स के पिता विजय सिंह की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि उनके पुत्र ने कक्षा एक में प्रवेश के लिए परीक्षा उत्तीर्ण की, इसके बाद उससे छह अध्यापकों के पैनल के समक्ष सवाल पूछे गए, जिनके उसने सही जवाब दिया लेकिन जब परिणाम घोषित हुआ तो उसे फेल दिखाया गया। साक्षात्कार में केवल आठ अंक दिए गए। नियम यह है कि, 100 अंक की लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थी को 25 अंक के साक्षात्कार का 40 फीसदी अंक पाना अनिवार्य है। मनमाने तौर पर यह कम अंक देकर फेल कर दिया गया।
आरटीआई में जब कारण पूछा गया तो कोई जवाब नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि, साक्षात्कार लिखित परीक्षा के अंक से 15 फीसदी से नहीं होगा और साक्षात्कार में 33 फीसदी अंक देना अनिवार्य है। विश्वविद्यालय ने इस आदेश का खुला उल्लंघन किया है। कोर्ट ने विश्वविद्यालय के रवैये पर आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसी मनमानी की अनुमति नहीं दी जा सकती।