Saturday, 18 May 2024

सवाई माधोपुर। देवी के कई स्वरूप हैं और सभी स्वरूपों में देवी की आराधना और पूजा की जाती है। मां का हर रूप भक्तों के दुखों का हरण कर उनको सुख-समृद्धि का वरदान देता है। ऐसी ही एक देवी चौथ माता है, जिनकी प्राचीन प्रतिमा और मंदिर राजस्थान में सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित है।
संकट चौथ की महिमा
वैसे तो राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित चौथ माता का देवी का स्थान है। इसी के नाम पर इस गांव का नाम ही बरवाड़ा से बदल कर चौथ का बरवाड़ा हो गया है। ये चौथ माता का सबसे प्राचीन और सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर माना जाता है। परंतु चौथ माता मंदिर के अलावा मंदिर परिसर में भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियों से सज्जित भव्य मंदिर और भी है। इसीलिए चौथ के दिन यहां गणेश जी की विशेष पूजा होती है।
इनमें भी संकष्ठी चतुर्थी व्रत की बहुत महिमा सबसे अधिक मानी जाती है। इस व्रत को वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ और तिलकुटा चौथ व्रत के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हिंदु पचांग के अनुसार ये व्रत माघ माह की चतुर्थी को आता है। सकट चौथ का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। राजस्थान में इसी तिलकुटा चौथ के दिन चौथ का बरवाड़ा में विशाल मेला भी लगता है।।
राजस्थानी शैली का खूबसूरत मंदिर
बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी। चौथ का बरवाड़ा, अरावली पर्वत श्रंखला में बसा हुआ मीणा व गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है। बरवाड़ा का नाम 1451 में चौथ माता के नाम पर चौथ का बरवाड़ा घोषित किया गया था। ये मंदिर करीब एक हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर है और शहर से करीब 35 किमी दूर है।
ये स्थान पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है और इसका प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोहने वाला है। इस जगह पर सफेद संगमरमर से बने कई स्मारक हैं। दीवारों और छत पर जटिल शिलालेख के साथ यह मंदिर वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली की झलक प्रस्तुत करता है।

मंदिर में वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली देखी जा सकती है। मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। देवी की मूर्ति के साथ यहां भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी हैं। 1452 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
जबकि मंदिर के रास्ते में बिजली की छतरी और तालाब 1463 में बनवाया गया। किंवदंतियों के अनुसार चौथ माता की प्रतिमा सन 1332 के लगभग चौरू गांव में स्थित थी। 1394 ईस्वी के लगभग चौथ माता मंदिर की स्थापना बरवाड़ा में महाराजा भीम सिंह द्वारा की गई थी, जो पंचाल के पास के गांव से चौथ माता की मूर्ति लाये थे।

अरविंद दुबे। प्रथम पूज्य गणेशजी के दुनिया में कई मंदिर हैं। दोनों पत्नियों, रिद्धि और सिद्धी के साथ वाली भी उनकी कई प्रतिमाएं हैं, लेकिन गुजरात में एक मंदिर ऐसा है, जहां उनका पूरा परिवार है। पूरा परिवार यानि दोनों पत्नियां- रिद्धि-सिद्धी, पुत्री- मां संतोषी, दोनों पुत्र - शुभ और लाभ, दोनों पोते - क्षेम और कुशल। जानिए इनके बारे में -
गुजरात के बनासकांठा जिले में अम्बाजी तीर्थ है। यहां मां अम्बा का भव्य प्राचीन मंदिर है। इसी मंदिर के परिसर में स्थित है सहकुटुंब सिद्धि विनायक मंदिर। यहां गणेशजी अपने पूरे परिवार के साथ विराजे हैं। मंदिर के पुजारी मुकेश भाई के मुताबिक, यह दुनिया में इकलौता मंदिर है, जहां गणेशजी की सहकुटुंब पूजा होती है।
ऐसा है गणेशजी का पूरा परिवार
शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान गणेश का शरीर विशालकाय और मुंह की जगह हाथी का मुख लगा हुआ था तो कोई कन्या उनसे विवाह को तैयार न थी। इस पर भगवान गणेश बिगड़ गये और अपने वाहन मूषक को समस्त देवी-देवताओं के विवाह में विघ्न डालने का आदेश दिया।
अब जहां भी विवाह होता, वहां मूषक पहुंच जाते और विघ्न डाल देते। तंग आकर देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से कोई उपाय करने की गुहार लगाई तब ब्रह्मा ने दो कन्याओं, रिद्धि और सिद्धी का सृजन किया और गणेशजी से उनका विवाह करवाया। इस तरह बुद्धि और विवेक की देवी रिद्धि और सफलता की देवी सिद्धी का विवाह गणेश जी से हुआ जिनसे शुभ और लाभ नामक दो पुत्र भी हुए।
धर्म ग्रंथों में कहीं-कहीं मां संतोषी को गणेशजी की बेटी बताया गया है, जिसका प्रमाण यहां मिलता है। साथ ही गणेशजी के दो पोते - क्षेमे और कुशल भी यहां विराजे हैं।

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