Tuesday, 30 April 2024

 
गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की सभी तैयारी पूर्ण कर ली गई है। अक्षय तृतीया के पर्व पर शुभ मुहूर्त में विधिवत पूजा अर्चना के बाद आज वैदिक मंत्रोचारण के साथ 11:30 पर गंगोत्री व 1:15 मिनट पर यमुनोत्री धाम के कपाट देश विदेश के श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये जायेंगे। जहां आगामी छह माह तक श्रद्धालु मां गंगा व यमुना के दर्शन कर सकेंगे। मंगलवार को मां गंगा की डोली गंगोत्री धाम पहुंच चुकी है। जबकि मां यमुना की डोली खरसाली से यमुनोत्री धाम के लिए रवाना हो रही है।
इससे पहले छह माह तक अपने शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव में निवास करने के बाद सोमवार को मां गंगा की डोली अपने शीतकालीन प्रवास स्थल गंगोत्री धाम के लिए रवाना हो गई थी। डोली को पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ सवा मन (50 किलो) का कलेऊ, स्थानीय पकवान देकर दोपहर 12:35 पर मुखबा के ग्रामीणों ने मां गंगा को विदाई दी। सोमवार सुबह विशेष पूजा अर्चना और आरती के बाद गंगा की उत्सव डोली को सजाया गया। इसके बाद तय मुहूर्त के अनुसार 12:35 पर मां गंगा की उत्सव डोली आर्मी बैंड की धुन पर मुखबा से गंगोत्री धाम के लिए रवाना हुई। गंगा की डोली यात्रा में मुखबा के साथ ही धराली, हर्षिल समेत उपला टकनौर के ग्रामीणों तथा कई तीर्थयात्रि शामिल हुए। मार्कण्डेय पुरी स्थित दुर्गा मंदिर में पहुंचने के बाद मां गंगा के साथ भक्तों ने अल्प विश्राम किया। मुखबा के प्राचीन पैदल यात्रा पथ से होते हुए डोली शाम को भैरों घाटी पहुंची।
चारधाम यात्रा के पहले धाम यमुनोत्री के लिए मां यमुना की डोली शनिदेव की अगुवाई में मंगलवार (आज) अपने शीतकालीन प्रवास खरसाली से सुबह 9 बजे यमुनोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी। जो दोपहर 11 बजे यमुनोत्री मंदिर पहुंचेगी। जहां विधिवत पूजा अर्चना एवं हवन के बाद दोपहर 1:15 बजे यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इसके साथ ही प्रदेश में मंगलवार को चारधाम यात्रा का विधिवत शुरू हो जायेगी।

 
 
7 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है. इस तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का भी जन्म हुआ था. परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे. परशुराम भगवान शिव के परमभक्त होने के साथ न्याय के देवता भी माने जाते हैं. उन्होंने क्रोध में न सिर्फ 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया बल्कि भगवान गणेश भी उनके गुस्से का शिकार हो चुके हैं. आइए जानते हैं परशुराम से जुड़ी ऐसी ही 5 खास बातें जो शायद ही अब तक आपने कभी सुनी होंगी.ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, परशुराम एक बार भगवान शिव से मिलने उनके कैलाश पर्वत पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें रास्ते में ही उऩके पुत्र भगवान गणेश ने रोक दिया. इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था. जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाए. त्रेतायुग में सीता स्वयंवर के दौरान टूटने वाला धनुष भगवान परशुराम का ही था. अपने धनुष के टूटने से क्रोधित परशुराम का जब लक्ष्मण के साथ संवाद हुआ तो भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंप दिया था. यह वहीं सुदर्शन चक्र था जो द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पास था । 
महाभारत से जुड़ीं प्रचलित कथाओं के अनुसार भीष्म पितामह परशुराम के ही शिष्य थे. एक बार जब भीष्म ने अपने छोटे भाई से विवाह करवाने के लिए काशीराज की तीनों बेटियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण कर लिया. लेकिन जब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती हैं, तो भीष्म ने उसे छोड़ दिया. लेकिन शाल्व ने अंबा के हरण होने के बाद उससे विवाह करन से इंकार कर दिया. अंबा ने जब यह बात परशुराम को बताई तो उन्होंने भीष्म को उससे विवाह करने का आदेश दिया. लेकिन आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रतिज्ञा लेने वाले भीष्म ने ऐसा करने से मना कर दिया. जिसके बाद परशुराम और भीष्म के बीच युद्ध हुआ. हालांकि बाद में अपने पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए थे । 
भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा के बाद अपनी मां का वध कर दिया था. जिसकी वजह से उन्हें मातृ हत्या का पाप भी लगा. उन्हें अपने इस पाप से मुक्ति भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद मिली. भगवान शिव ने परशुराम को  मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, यही वजह थी कि वो बाद में परशुराम कहलाए.एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना समेत भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनी के आश्रम पहुंचा. मुनि ने अपनी कामधेनु गाय के दूध से पूरी सेना का स्वागत किया लेकिन सहस्त्रार्जुन ने लालचवश मुनि की चमत्कारी कामधेनु को अपने बल का प्रयोग कर छीन लिया. जिसके बाद परशुराम ने इस बात का पता लगते ही सहस्त्रार्जुन को मौत के घाट उतार डालासहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने परशुराम से बदला लेने के लिए उनके पिता का वध कर दिया. जिसके बाद उनकी मां भी अपने पति के वियोग में उनकी चिता पर ही सती हो गईं. मां और पिता की मौत से गुस्साए परशुराम ने शपथ ली कि वह धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर देंगे. उन्होंने एक या दो बार नहीं बल्कि पूरे 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की । 

मल्टीमीडिया डेस्क । हनुमान जयंती शुक्रवार को पूरे देशभर में मनाई जा रही है। प्रायः हर घर में हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है। मगर, बहुत कम ही लोग इसके अर्थ को जानते होंगे। आज हम आपको हनुमान चालीसा अर्थ के साथ बता रहे हैं, ताकि आप उसके शब्दों और भावना को भी अच्छी तरह समझ सकें। इसे जानने के बाद अगली बार जब आप हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे, तो आपको निश्चित ही अधिक आनंद मिलेगा।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
अर्थ- गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।
अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥
अर्थ- श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
अर्थ- हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
अर्थ- हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥
अर्थ- आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
अर्थ- हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वंदना होती है।
विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥
अर्थ- आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥
अर्थ- आप श्री राम चरित सुनने मे आनंग रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते हैं।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥
अर्थ- आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥
अर्थ- आपने विकराल रुप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥
अर्थ- आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया, जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥
अर्थ- श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥
अर्थ- श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥
अर्थ- श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥
अर्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥
अर्थ- आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥
अर्थ- आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥
अर्थ- जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥
अर्थ- आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
अर्थ- संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥
अर्थ- श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना॥22॥
अर्थ- जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आनंद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नही रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥
अर्थ- आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
अर्थ- जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥                                                                                    
अर्थ- वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
अर्थ- हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥
अर्थ- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज यानी सरलता से कर दिया।
और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
अर्थ- जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है, जिसकी जीवन मे कोई सीमा नहीं होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
अर्थ- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30
अर्थ- हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
अर्थ- आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते हैं।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
अर्थ- आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अर्थ- आपका भजन करने से श्री रामजी प्राप्त होते हैं, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते हैं।
अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥
अर्थ-अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे, तो भक्ति करेंगे और श्रीराम भक्त कहलायेंगे।
और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
अर्थ- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
अर्थ- हे वीर हनुमान जी! जो भी आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
अर्थ- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥
अर्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥
अर्थ- भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥
अर्थ- हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ- हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलों के स्वरुप हैं। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।

रायपुर ।  हिन्दू समाज में भगवान राम के जन्म स्थल के तौर पर अयोध्या का विशेष स्थान है. यहां श्रीराम की आरती अलग-अलग संप्रदाय अपने-अपने तरीके से करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अयोध्या की तरह ही हमारे छत्तीसगढ़ के एक मंदिर में श्रीराम की आरती की जाती है. बात हो रही है बेमेतरा जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर स्थित चिल्फी के राम जानकी मंदिर की जहां वैष्णव परंपरा के अनुसार श्रीराम की आरती की जाती है ।
बेमेतरा-कवर्धा मार्ग पर स्थित उमरिया से दाढ़ी मार्ग पर स्थित चिल्फी में 1945 के दशक में श्रीराम जानकी मंदिर की स्थापना शीतला कुंवर ने कराई थी, जहां विराजमान राम, लक्ष्मण और सीता के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा वैष्णव परंपरा को मानने वाले रामानुजाचार्य सम्प्रदाय की है. मंदिर में श्रीराम की आरती अयोध्या में की जाने वाली परंपरा के अनुसार सप्त आरती सजाकर की जाती है. इसी बीच भगवान का आचमन कराने के बाद विशेष निराजन आरती की जाती है. इसमें थाली में एक दीया के साथ कपूर को जलाकर सातों आरती का जिक्र करते हुए आरती की जाती है ।
मंदिर के सरवराहकार चंद्रभूषण शुक्ला बताते हैं कि आरती की इस पूरी प्रक्रिया में 40-50 मिनट तक लगता है, लेकिन यह आरती विशेष अवसर रामनवमी एवं जन्माष्टमी पर किया जाता है. रामनवमी पर जहां दोपहर 12 बजे आरती की जाती है, वहीं जन्माष्टमी पर रात 12 बजे. सरवराहकार बताते हैं कि रामनवमी के बाद सातवें दिन छठी पर्व पर नए वस्त्र एवं षट् रस व्यंजन भगवान को भोग लगा कर आरती होती है, फिर ब्राह्मण भोजन कराया जाएगा, इसके साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे. गौरतलब है कि इसी परंपरा से शिवरीनारायण स्थित राम जानकी मंदिर में भी आरती की जाती है ।

Address Info.

Owner / Director - Piyush Sharma

Office - Shyam Nagar, Raipur, Chhattisgarh,

E mail - publicuwatch24@gmail.com

Contact No. : 7223911372

Timeline