Tuesday, 21 May 2024

माता के इस दरबार में नेता विजय के लिए करवा रहे हैं ऐसा अनुष्ठान

मल्टीमीडिया डेस्क । सियासत में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए चुनावी अखाड़े में ( Loksabha Election 2019) जोर-आजमाइश जारी है। नेता अपनी जीत के लिए जनता के बीच से लेकर देवी-देवताओं के दरबार तक में हाजिरी दे रहे हैं। हर उम्मीदवार की ख्वाहिश बेहतर प्रदर्शन की है। हर किसी को दरकार एक अदद जीत की है। ऐसे में जीत के पैमाने को हर कसौटी पर कसा जा रहा है। जनता-जनार्दन की मान-मनौव्वल की जा रही है और मंदिरों में मत्था टेका जा रहा है,लेकिन कुछ सिद्धक्षेत्रों में इन दिनों नेताओं का तांता लगा हुआ है। देवी का एक ऐसा ही दरबार मध्य प्रदेश में उज्जैन से करीब 60 किलोमीटर दूर आगर जिले के नलखेड़ा में है। मां पीतंबरा के इस मंदिर में माता बगलामुखी की आराधना से शत्रुनाश और विजय का आशीर्वाद मिलता है।
देवी की सेवा में समर्पित पंडित आत्माराम शर्मा और पंडित सागर शर्मा ने बताया कि माता बगलामुखी के मंदिर में इन दिनों हवन की अग्नि सूर्योदय के साथ ही प्रज्वलित हो जाती है। माता के इस दरबार में रात्रि में हवन का भी प्रावधान है। वैसे तो देश विदेश से यहां लोग मनोकामना सिद्धि और सुख-समृद्धि के लिए शीश झुकाने आते हैं, लेकिन इन दिनों नेता यहां पर बड़ी संख्या में शत्रुनाश और अपनी विजय के लिए हवन करवा रहे हैं।
इस संबंध में पंडित सागर शर्मा ने बताया कि राजनेताओं के यहां आने और हवन करवाने का सिलसिला चुनाव की आहट के साथ ही शुरू हो गया था, जो नवरात्रि के दौरान अपने चरम पर है। चुनाव की वजह से यहां पर पिछले करीब एक साल से हवन करने वाले नेताओं का तांता लगा हुआ है। हवन करने वाले नेताओं में देश के हर कोने के नेता शामिल है। यदि कोई नेता अपनी पहचान छिपाना चाहता है तो वह पंडित के द्वारा या अपने प्रतिनिधि के द्वारा भी हवन का संकल्प छोड़कर हवन की प्रक्रिया को पूर्ण कर सकता है।
विजय का वरदान देती है मां बगलामुखी
पंडित आत्माराम शर्मा का कहना है कि माता बगलामुखी का त्रिशक्ति स्वरूप मंदिर भारत में इसके अलावा कहीं नहीं है। मान्यता है कि मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां महालक्ष्मी और बाएं मां सरस्वती विराजमान हैं। धरती पर माता बगलामुखी तीन स्थानों पर विराजमान है, जो दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं।
द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देश भर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत और भक्तगण तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। आमजन भी अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ-हवन और पूजा-पाठ करवाते हैं। कहा जाता है कि मां भगवती बगलामुखी का यह मंदिर बीच श्मशान में बना हुआ है।
दस महाविद्या में है आठवीं महाविद्या है देवी
मान्यता के अनुसार माता बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इनको माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी आराधना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। ।
माँ बगलामुखी की चमत्कारी और सिद्ध प्रतिमा की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही मिलता है। मान्यता है की यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें माँ बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। उस समय सम्राट युधिष्टिर ने लक्ष्मणा नदी, जो अब लखुंदर नदी कहलाती है के किनारे पर बैठकर मां बगलामुखी की आराधना की थी और कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। माता पितवर्णी है इसलिए माता को पीली चीजों को समर्पित किया जाता है। पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले मिष्ठान्न आदि।

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